अंतरिक्ष योद्धा वायुमंत और कालग्रह का तांडव
संक्षिप्त विवरण:
वायुमंत — एक भारतीय अंतरिक्ष योद्धा, जिसे ‘ब्रह्म-मिशन’ के तहत विशेष प्रशिक्षण और प्राचीन भारतीय वैदिक तकनीकों से युक्त अंतरिक्ष कवच प्राप्त हुआ है। जब एक रहस्यमय ग्रह ‘कालग्रह’ अचानक अंतरिक्ष में उभरता है और उसकी छाया ब्रह्मांड के संतुलन को डगमगाने लगती है, तब वायुमंत को भेजा जाता है उस रहस्य की तह तक पहुँचने और उस भयावह शक्ति को समाप्त करने के लिए जो अंतरिक्ष की समस्त ऊर्जा को निगलने पर आमादा है।
कहानी:
प्रस्तावना:
वर्ष 3071। भारत का अंतरिक्ष संगठन ‘भारतीय अंतर्ग्रह अनुसंधान परिषद’ (भाअअंस) मंगल के बाहर के क्षेत्रों तक पहुँच चुका है। ब्रह्म-स्टेशन नामक एक गुप्त अंतरिक्ष अड्डे पर एक अलार्म बजता है — एक नया ग्रह सौरमंडल के किनारे उभर आया है, जिसका अस्तित्व पहले कहीं दर्ज नहीं था। यह ग्रह धीरे-धीरे काले धुएँ के बादलों से घिरा, समस्त सिग्नलों को निगल रहा है। वैज्ञानिक इसे ‘कालग्रह’ कहते हैं।
वायुमंत का परिचय:
वायुमंत — जिसका जन्म उत्तराखंड की वायुनगरी में हुआ था, एक सामान्य बालक था, जिसे अंतरिक्ष ऊर्जा के प्रति विशेष आकर्षण था। उसे चुन लिया गया था ‘ब्रह्म-मिशन’ के लिए, जिसमें भारतीय योग, प्राचीन आयुधों और उच्च तकनीकी प्रशिक्षण से एक ऐसा योद्धा तैयार किया गया जो न केवल हथियारों से, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक ऊर्जा से भी युद्ध कर सकता था।
वायुमंत का कवच — ‘त्रिनेत्र कवच’ — उसे ब्रह्मांड की अदृश्य तरंगों को देखने और अनुभव करने की शक्ति देता है। उसकी तलवार ‘सौरद्वीप’ सूर्य की किरणों से चार्ज होती है और वह ‘शून्य-गति’ की शक्ति से पलभर में किसी भी दिशा में गति कर सकता है।
कालग्रह की ओर प्रस्थान:
ब्रह्म-स्टेशन के अध्यक्ष रवींद्रनाथ वर्मा ने आदेश दिया:
“वायुमंत, यह ग्रह ब्रह्मांडीय संतुलन के लिए खतरा बन रहा है। वहाँ जाने वाला केवल वही हो सकता है जो शरीर और चित्त दोनों से ब्रह्मांड से जुड़ा हो — और वह केवल तुम हो।”
वायुमंत ने ‘प्राची रथ’ नामक अंतरिक्षयान में प्रवेश किया, जो योगिक ऊर्जा से संचालित था। जैसे ही वह कालग्रह की सीमा में पहुँचा, यान की सभी प्रणालियाँ अस्थिर होने लगीं। उसके त्रिनेत्र कवच ने एक अदृश्य तरंग को पकड़ा — यह ग्रह स्वयं में जीवित था!
कालग्रह का रहस्य:
यह कोई साधारण ग्रह नहीं था। वहाँ की सतह पर गहरे नीले रंग की झिल्ली फैली हुई थी, मानो उसमें स्मृतियाँ बसी हों। वायुमंत ने एक गुहा में प्रवेश किया, जहाँ उसे एक विशाल, जीवित मस्तिष्क के समान संरचना मिली। तभी एक काली आकृति प्रकट हुई — “अंधक्रांत”।
अंधक्रांत ब्रह्मांड का प्राचीन शत्रु था, जो वैदिक काल में ‘नष्ट’ मान लिया गया था। परंतु उसकी चेतना इस ग्रह में समा गई थी और अब वह ब्रह्मांड की समस्त ऊर्जा निगलने की योजना बना रहा था।
वायुमंत ने उसे चेताया —
“यदि तुमने यह तांडव रोका नहीं, तो मैं तुम्हें उसी शून्य में विलीन कर दूँगा जहाँ से तुम आए थे।”
महायुद्ध:
एक भयानक युद्ध आरंभ हुआ। अंधक्रांत के ऊर्जा-कणों से वायुमंत का रथ जलने लगा। उसकी सौरद्वीप तलवार भी निष्क्रिय हो गई। तब वायुमंत ध्यान मुद्रा में गया और ‘शिव-त्रिकोण’ नामक अंतर्ग्रह ऊर्जा को जाग्रत किया। उसकी आँखें जलने लगीं, शरीर प्रकाश से भर उठा।
वायुमंत ने ‘नाद-कंपन अस्त्र’ चलाया, जिससे पूरे कालग्रह में ऐसी ध्वनि गूँजी कि अंधक्रांत की चेतना चीत्कार कर उठी। उसके बाद एक आकाशीय चक्र वायुमंत के चारों ओर उत्पन्न हुआ जिसने अंधक्रांत को जकड़ लिया।
अंत और मोक्ष:
अंधक्रांत हार चुका था, लेकिन उसने एक प्रस्ताव दिया —
“मेरी चेतना को समाप्त मत कर, वायुमंत। मुझे कालग्रह की आत्मा में बंद कर दो, मैं वहीं रहूँगा, मौन, परन्तु जीवित।”
वायुमंत ने अंततः उसे उसी ग्रह में एक ‘शांति-मंडल’ में बंद कर दिया, जिससे वह न किसी को हानि पहुँचा सके, न स्वयं बाहर आ सके।
पृथ्वी पर वापसी:
वायुमंत वापस लौटा तो पूरी मानवता ने उसका स्वागत किया। परंतु उसने केवल यही कहा —
“अंतरिक्ष की शांति तब तक स्थिर नहीं रह सकती, जब तक चेतनाएँ लालच से मुक्त न हो जाएँ। मैं लौटूँगा… जब अगली बार कोई छाया ब्रह्मांड की शांति को ललकारेगी।”
अंतिम वाक्य:
“वह कोई साधारण योद्धा नहीं था — वह था अंतरिक्ष का प्रहरी — वायुमंत।”