अग्नितल – अमर पर्वतों की शपथ
कहानी का संक्षिप्त विवरण:
इस कहानी की पृष्ठभूमि एक आधुनिक भारत है, जहाँ विज्ञान और आध्यात्म एक साथ चल रहे हैं, लेकिन कुछ रहस्य अब भी समय से परे छिपे हुए हैं। ‘अग्नितल’ – एक विस्मृत पर्वतीय क्षेत्र, जहाँ न तो कोई पगडंडी जाती है, न ही कोई मानचित्र दिखाता है। और एक 21 वर्षीय युवती, अलीना, जो अपनी माँ की गुमशुदगी के पीछे के रहस्य को जानने की जिद में वहाँ पहुँच जाती है। इस यात्रा में उसे मिलते हैं अज्ञात शत्रु, चमत्कारी मिथक, और आत्मा की परख करने वाली अग्निपरीक्षा। यह कहानी केवल शरीर से नहीं, आत्मा से भी लड़ने की है।
कहानी
१. वह पत्र
दिल्ली के पुराने कश्मीरी गेट के एक जर्जर मकान में अलीना बैठी थी। उसके सामने उसकी माँ का पुराना संदूक खुला पड़ा था। माँ को गए चार साल हो चुके थे — अचानक, बिना किसी सूचना के गायब हो गई थी। सबने मान लिया था कि वह मर चुकी है, लेकिन अलीना के दिल में एक गूंज बार-बार उठती — माँ ज़िंदा है।
संदूक में पुराने कागज़, एक टूटी हुई अँगूठी और एक लिफ़ाफ़ा मिला — “मेरे लहू से बंधी अग्नितल की शपथ”।
अलीना की साँसें रुक गईं।
लिफ़ाफ़े में एक पत्र था — माँ के हाथों से लिखा गया:
“अगर मैं कभी वापस न आऊँ, तो अग्नितल को ढूँढना। मैं वहाँ गई हूँ। अगर तुम वहाँ पहुँची, तो वही तुम्हें बताएगा कि तुम कौन हो।”
अलीना ने पहली बार माँ की गूढ़ भाषा को समझने की कोशिश की। “तुम कौन हो” — मतलब? क्या वह उसकी बेटी नहीं?
२. रहस्य की पहली परत
अलीना ने अग्नितल का नाम इंटरनेट पर खोजा, लेकिन कहीं कुछ नहीं मिला। बस एक पुराना वैज्ञानिक आलेख मिला, जिसमें 1962 में हिमालय के उत्तर में एक ‘अग्नि-केंद्रीय चुंबकीय क्षेत्र’ की चर्चा की गई थी। वह क्षेत्र बाद में भारतीय सेना द्वारा प्रतिबंधित घोषित कर दिया गया।
अलीना ने एक भूगोल विशेषज्ञ से संपर्क किया — प्रोफेसर अनिरुद्ध सेन। 63 वर्षीय प्रोफेसर जो अब किसी से बात नहीं करते थे। लेकिन जब अलीना ने अपनी माँ का नाम लिया — “अनामिका दत्ता” — तो अनिरुद्ध के चेहरे पर भय का साया आ गया।
“तुम्हारी माँ ही थी जिसने अग्नितल को खोला था,” अनिरुद्ध फुसफुसाया।
“और वही थी जिसने फिर उसे बंद किया… तुम्हें वहाँ नहीं जाना चाहिए।”
लेकिन यह चेतावनी अलीना के लिए चिंगारी बन गई।
३. अमर पर्वतों की ओर
हफ्तों की तैयारी, नकली पहचान, और सेना की निगरानी से बचते हुए अलीना ने उत्तराखंड के मुनस्यारी से एक पुराने पथ का पीछा किया। उसे स्थानीय एक गूंगे व्यक्ति — ‘तारा’ — से सहायता मिली, जो इशारों से अग्नितल का रास्ता जानता था।
रास्ते में एक क्षत-विक्षत बोर्ड मिला:
“आगे जाना निषिद्ध है — यह क्षेत्र जीवित नहीं रहने देगा”
लेकिन अलीना अब पीछे नहीं हट सकती थी।
ऊँचाई बढ़ती गई। हवा में अजीब सी गंध थी — धातु, राख, और प्राचीनता की।
तीसरे दिन एक ऐसा क्षण आया जब तारा लौट गया, और अलीना अकेली हो गई।
उसने देखा — सामने पर्वत खुले थे, लेकिन आकाश अंधेरा। और बीच में — एक झील, जिसमें अग्नि जल रही थी।
“यह है अग्नितल।”
४. अग्निपरीक्षा
झील के किनारे एक पत्थर पर उसे माँ का स्कार्फ़ मिला। वह दौड़ पड़ी। पर झील के पास पहुँचते ही उसका शरीर काँपने लगा।
झील के मध्य से एक आवाज़ आई — गहरी, प्रतिध्वनित होती हुई।
“क्या तू अग्नि के योग्य है?”
“मैं अपनी माँ को ढूँढने आई हूँ,” अलीना चिल्लाई।
“माँ? या सत्य?”
अचानक, झील जलने लगी, और चार अलग-अलग छवियाँ निकलकर अलीना के चारों ओर घूमने लगीं।
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पहली छवि — एक लड़की, जो बचपन में अलीना से ईर्ष्या करती थी, और जिसकी आत्महत्या का कारण कभी उजागर नहीं हुआ।
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दूसरी — उसका पिता, जिसे वह एक दुर्घटना मानती थी, लेकिन अब सामने आया कि वह असल में माँ से लड़ाई के बाद लापता हुआ।
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तीसरी — स्वयं अलीना, रक्त से सना चेहरा लिए, झील में झाँकती हुई।
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चौथी — एक स्त्री, अग्नि में नहाई हुई — अनामिका, उसकी माँ, जो चुपचाप देख रही थी।
“कौन सच है? कौन झूठ?” — झील ने पूछा।
अलीना बेहोश हो गई।
५. अग्निज्ञान
होश आने पर वह एक गुफा में थी। सामने बैठी थी अनामिका — बूढ़ी, झुलसी हुई, पर जीवित। उसने धीरे से कहा —
“मैं तुझे छोड़ कर नहीं गई थी, मैं अग्नि को बाँधने आई थी। क्योंकि मेरा खून इस झील से जुड़ा है। मैं अग्निवंश की अंतिम रक्षक हूँ। और तू… अंतिम उत्तराधिकारी।”
“क्यों?” अलीना ने रोते हुए पूछा।
“क्योंकि अग्नितल वो शक्ति है जो आत्मा को सजीव कर सकती है। झूठ, भ्रम, मोह — सबको जलाकर राख कर देती है। लेकिन अगर यह गलत हाथों में गई, तो दुनिया अपने सत्य से पागल हो जाएगी।”
“तो अब?”
“अब तू तय करेगी — इस शक्ति को बंद कर दे, या जगत को सौंप दे।”
६. निर्णय
अलीना वापस झील पर गई। उसने सब देखा — अपने पाप, अपनी माँ की असलियत, अपने वंश का भार।
झील ने फिर पूछा:
“सत्य या मौन?”
और अलीना ने उत्तर दिया —
“सत्य, लेकिन चयनित। मैं इसे सुरक्षित रखूँगी, इसे उपयोग नहीं बनने दूँगी।”
झील फिर शांत हो गई।
वह जलती रही — पर अब उसकी अग्नि तप नहीं देती, केवल चेतावनी देती है।
७. लौटना
तीन महीने बाद, दिल्ली के उसी मकान में अलीना बैठी थी। पास में एक छोटी सी अग्निप्याली थी — अग्नितल की अग्नि, अब केवल एक धूप जैसी सजीव, पर बंद।
उसने माँ को हमेशा के लिए वहीं छोड़ दिया, अग्नितल की रक्षक के रूप में।
लेकिन अब वह जान चुकी थी —
वह कौन है।
कहाँ से आई है।
और उसके भीतर की अग्नि क्या कर सकती है।
अग्नितल – अमर पर्वतों की शपथ
एक रहस्य नहीं, एक परिभाषा है।
एक ऐसी खोज, जो हर युवा को खुद से कराने की ज़रूरत है —
जहाँ सत्य डराता है, पर मुक्त भी करता है।