अग्निवीर : राख से जन्मा रक्षक
संक्षिप्त झलक:
जब पूरे भारत में आतंक, भ्रष्टाचार और अदृश्य अपराधों की छाया फैलती है, तब राख से जन्म लेता है एक रहस्यमय योद्धा — ‘अग्निवीर’। उसकी पहचान, उसका अतीत, और उसकी शक्तियाँ — सबकुछ एक रहस्य है। पर उसका लक्ष्य एक ही है — अन्याय का अंत। यह कहानी है उस भारतीय सुपरहीरो की जो केवल दुश्मनों से नहीं, बल्कि अपने अंदर की आग से भी लड़ता है।
कहानी
प्रारंभ
राजस्थान की तपती रेत में बसे एक छोटे-से कस्बे ‘धूलपुर’ में, एक युवक था — ‘यशोधर’। उसका जीवन साधारण था, एक साधारण परिवार में जन्मा, संघर्षों में पला। दिनभर मजदूरी करता और रात में अपने पिता की पुरानी लाइब्रेरी में किताबें पढ़ता। उसे रहस्यों, पुराणों और शास्त्रों का शौक था। बचपन से उसे सपने आते थे — आग में जलता कोई योद्धा, जिसने अपनी आत्मा को अग्नि में तपाया था।
यशोधर का मानना था कि इस धरती पर सिर्फ विज्ञान नहीं, बल्कि कुछ ऐसी शक्तियाँ भी हैं जो आंखों से नहीं, आत्मा से देखी जाती हैं। वह खोज में लग गया — ऐसी शक्ति की जो उसे बदलाव लाने की ताकत दे।
अग्नि में तपन
एक दिन पुरानी पहाड़ियों में खुदाई के दौरान उसे एक प्राचीन ‘हवनकुंड’ मिला, जो अब भी गर्म था। उसके पास जाने पर उसे ऐसा प्रतीत हुआ कि कोई पुकार रहा है। अचानक एक चमकदार अग्निशिखा भड़की और यशोधर को निगल गई। लोग समझे वो जलकर मर गया।
परंतु सच्चाई कुछ और थी।
वह अग्निशिखा कोई साधारण अग्नि नहीं थी। वह ‘अग्निशक्ति’ थी — एक प्राचीन रक्षक की आत्मा, जो युगों तक सोई रही और अब यशोधर को अपना पात्र चुन चुकी थी। अग्नि से निकला वह युवक अब यशोधर नहीं रहा। वह बन चुका था — अग्निवीर।
उसका शरीर अब लौह से भी कठोर था, उसकी आँखें अग्नि जैसी दमकती थीं। वह हवा में उड़ सकता था, उसकी मुट्ठियों से ज्वालाएँ निकलती थीं, और सबसे अद्भुत — वह झूठ और अधर्म को महसूस कर सकता था।
शत्रु का आगमन — ‘कालसर्प’
उधर दूसरी ओर, एक रहस्यमय अपराधी उभर रहा था — ‘कालसर्प’। एक वैज्ञानिक जिसने रेडिएशन और विषैली ऊर्जा से अपने शरीर को शक्तिशाली बना लिया था। उसका उद्देश्य था — मानव सभ्यता को विष में डुबो देना और नये विष-युग की शुरुआत करना।
उसने भारत के कई शहरों में अंधेरे का जाल बिछा दिया। पुलिस, सेना, सिस्टम — सब असहाय थे। लोगों ने उम्मीद छोड़ दी थी। तभी एक रात जयपुर में जब एक फैक्ट्री में भीषण आग लगी, एक जलता हुआ योद्धा आसमान से उतरा — अग्निवीर।
अग्निवीर बनाम कालसर्प
अग्निवीर ने कालसर्प के जैविक हथियारों को अपनी अग्निशक्ति से राख कर दिया। पर कालसर्प बच निकला और बोला — “अब असली खेल शुरू होगा, अग्निवीर। मैं तेरे अतीत से हूँ, और अंत तक तेरे साथ रहूँगा।”
यह बात यशोधर को भीतर तक हिला गई। वह अपने अतीत की खोज में लग गया।
अतीत का रहस्य
बड़ी खोजबीन के बाद यशोधर को एक पांडुलिपि मिली जिसमें उल्लेख था — “अग्निशक्ति केवल उसी को प्राप्त होती है जिसका रक्त रक्षक के वंश से हो।” यशोधर समझ गया — उसके पूर्वज कोई साधारण लोग नहीं थे, बल्कि वे भी ‘रक्षक वंश’ के सदस्य थे, जो युगों से धरती की रक्षा करते आए थे।
और कालसर्प?
वह निकला उसका सौतेला चाचा — ‘विश्वजीत’, जिसने रक्षक वंश की शक्ति चुराकर अपने प्रयोगों से खुद को विकृत बना लिया था।
युद्ध का पहला अध्याय
मुंबई की गगनचुंबी इमारतों के बीच अग्निवीर और कालसर्प का पहला बड़ा युद्ध हुआ। आग और विष की भयंकर टक्कर। आम लोग घबराए, शहर थर्रा गया, लेकिन अग्निवीर ने लोगों की जान बचाई।
कालसर्प एक बार फिर भाग गया, पर इस बार उसके साथ था — एक ‘त्रिनेत्र बम’, जो तीन शहरों में एक साथ विस्फोट कर सकता था।
शौर्य की परीक्षा
अग्निवीर को तीनों शहरों में जाकर बम को निष्क्रिय करना था — दिल्ली, कोलकाता और बेंगलुरु। समय सीमित था — केवल तीन घंटे। वह एक जगह से दूसरी जगह गया, अग्निवेग से उड़ता, अपने शरीर की ऊर्जा से बम को जला देता, और अंततः अंतिम शहर बेंगलुरु में उसने आखिरी सेकंड में बम निष्क्रिय किया।
पर उसी वक्त कालसर्प ने उसकी माँ को अगवा कर लिया।
अग्नि का प्रचंड रूप
अब अग्निवीर की शक्ति को कोई सीमा नहीं रही। उसका शरीर पूरी तरह अग्निपुंज बन गया। उसने कालसर्प के गढ़ में घुसकर उसकी सेना को भस्म किया।
अंत में कालसर्प और अग्निवीर का अंतिम युद्ध हुआ — कश्मीर की बर्फीली घाटी में, जहाँ अग्नि और विष का अंतिम टकराव हुआ।
अग्निवीर ने कालसर्प को पराजित किया, पर उसे मारा नहीं। उसने उसे अग्निकुंड में डाल दिया, ताकि वह अग्निशुद्ध हो जाए — यही रक्षक वंश की परंपरा थी।
नवयुग की शुरुआत
अब अग्निवीर का अस्तित्व सबको पता था, पर उसका चेहरा कोई नहीं जानता। वह रात में आता, मदद करता, और चला जाता।
लोग कहते — “जब कोई अत्याचार बढ़ता है, तो कहीं न कहीं अग्निवीर जाग जाता है।”
और यशोधर?
वह अब एक पुस्तकालय चलाता है — जिसमें केवल एक पुस्तक को ताला लगा है।
पुस्तक का नाम है — “अग्निवीर : आत्मा की अग्निशक्ति”