आंतरिक शून्य का रहस्य
संक्षिप्त विवरण:
यह कहानी आधुनिक भारत के एक महानगर में रहने वाले 22 वर्षीय युवक ‘वीरांश’ की है, जो बाहर से एक स्मार्ट, आत्मविश्वासी डिजिटल कलाकार है, लेकिन भीतर एक गहरे शून्य से जूझ रहा है। उसकी ज़िंदगी उस समय बदल जाती है जब एक अजीब ऐप उसके फ़ोन में अपने-आप इंस्टॉल हो जाती है — “तत्त्व: आत्मा का गणित”। इस ऐप के माध्यम से वह अपनी आत्मा की परछाइयों को देखने लगता है — डर, असुरक्षा, पाखंड, और वह सब कुछ जिसे वह हमेशा नज़रअंदाज़ करता रहा। लेकिन ये सिर्फ़ दर्शन नहीं, एक यात्रा है, जिसमें वीरांश को उन गहराइयों से गुज़रना होगा जहाँ कोई भी सहज नहीं होता। क्या वह इस रहस्य से बाहर आ पाएगा? या वही शून्य उसे निगल जाएगा?
कहानी
१. स्क्रीन के पीछे का वीरांश
वीरांश सक्सेना — इंस्टाग्राम पर 4 लाख फॉलोअर्स, NFT आर्ट की एक सफल श्रृंखला, और कॉलेज ड्रॉपआउट जो अब मेटावर्स डिजाइनिंग में कंसल्टिंग करता है। लेकिन असल में?
रात के तीन बजे, टेलीग्राम की स्क्रीन पर खाली घूरता हुआ, किसी पुराने स्कूल ग्रुप में अपने बचपन के दोस्तों की तस्वीरें देखते हुए वह सोचता था — “किसे फ़र्क़ पड़ता है कि मैं कौन हूँ? मुझे ही नहीं पता…”
उसी रात, जब वह गहरी नींद में था, उसका फ़ोन एक हल्की नीली रौशनी से चमका। स्क्रीन पर एक लाइन उभरी —
“शेष तुम्हारे भीतर है, वीरांश। गणना शुरू हो रही है।”
और फ़ोन में एक ऐप दिखाई दिया — “तत्त्व”।
२. पहला गणित – भय का सूत्र
सुबह वीरांश को ऐप याद था, पर इंस्टॉल नहीं दिख रही थी। जैसे वो कभी थी ही नहीं। लेकिन जब उसने कैमरा खोला, उसमें एक नया फ़िल्टर था — “असली चेहरा”।
उत्सुकतावश उसने फ़िल्टर लगाया और अपनी तस्वीर ली।
स्क्रीन पर एक तस्वीर उभरी — वही चेहरा, लेकिन आँखों में एक खोखलापन, और पीठ पर एक परछाईं — डर की।
तभी एक लाइन आई —
“तुम अभी भी उस हादसे से भाग रहे हो। उम्र नौ वर्ष, समय रात 1:13, स्थान – कोलकाता”
उसकी धड़कन रुक गई। वह हादसा जो उसने कभी किसी को नहीं बताया — जब दादी की मौत हुई थी और उसने उनकी साँसें अपनी गोद में टूटी हुई देखी थीं।
३. दूसरा गणित – आत्मसम्मान का झूठ
अगले दिन ऐप की अगली परत खुली — “रैंकिंग टेस्ट”।
एक आभासी टेस्ट लिया गया — सवाल अजीब थे:
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“तुम दूसरों की तारीफ़ में क्या सुनना चाहते हो, जो खुद के बारे में नहीं मानते?”
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“कितनी बार तुम्हारा आत्मविश्वास, किसी और की विफलता से पैदा हुआ?”
टेस्ट के अंत में एक रिपोर्ट आई:
“तुम्हारा आत्मसम्मान उधार का है। तुम सफलता के मुखौटे पहनते हो, क्योंकि भीतर एक टूटा बच्चा है।”
वह हँसना चाहता था, लेकिन उसकी आँखें भर आईं। पहली बार उसने अपने सबसे करीबी दोस्त को फोन लगाया — “क्या मैं झूठा इंसान हूँ?”
दूसरी तरफ़ कुछ सेकंड की चुप्पी रही, फिर दोस्त ने कहा — “तू कभी था, पर अब पूछ रहा है — इसका मतलब है कि अब नहीं है।”
४. तीसरा गणित – प्रेम का मूल
तीसरे दिन ऐप एक नोटिफिकेशन भेजता है —
“जिसे तुमने सबसे ज़्यादा चाहा, उसी से तुमने सबसे ज़्यादा झूठ बोला।”
और स्क्रीन पर नाम उभरता है — “रावी”
रावी — उसकी कॉलेज प्रेमिका, जिससे उसने ‘करियर के लिए’ ब्रेकअप कर लिया था। लेकिन असल में डर था — रावी जैसी सच्ची आत्मा के सामने खुद को नंगा देखने का।
अब ऐप ने एक विकल्प दिया:
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“माफ़ी भेजो”
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“भूल जाओ”
वीरांश ने काँपते हाथों से “माफ़ी भेजो” पर क्लिक किया।
मैसेज खुद टाइप हुआ —
“माफ़ करना, मैंने तुम्हें इसलिए छोड़ा क्योंकि मुझे तुम जैसी रोशनी डराती थी। मुझे अपनी अंधेरे की आदत थी।”
एक घंटा बीता, जवाब आया —
“धन्यवाद। अब मैं जानती हूँ, मैं क्या हूँ — और तुम भी। यही काफ़ी है।”
५. अंतिम गणना – स्वयं का शून्य
अब ऐप के अंदर केवल एक चैम्बर बचा था —
“शून्य”
जब वीरांश ने उसे खोला, उसका पूरा कमरा अँधकार में डूब गया।
एक आभासी संसार खुला — वीरांश को खुद से मिलवाने। लेकिन वहाँ उसका चेहरा नहीं था। वह कोई नहीं था, न नाम, न पहचान।
आवाज़ आई —
“जब तू सब छोड़ देता है, तभी तू पूर्ण होता है।”
और वही वक्त था जब वीरांश पहली बार रोया, ज़ोर से — बिना किसी शर्म के।
६. ऐप का अंत, यात्रा की शुरुआत
अगली सुबह फ़ोन में कोई ऐप नहीं था। कैमरा सामान्य हो चुका था।
लेकिन वीरांश नहीं।
उसने अपनी प्रोफ़ाइल से सारे डिजिटल मास्क हटा दिए।
NFT बेचने बंद किए।
मेटावर्स से अलग होकर असली चित्र बनाना शुरू किया —
उन चित्रों का जो उसके भीतर से आए।
और पहली प्रदर्शनी का नाम रखा —
“तत्त्व – मैं, तुम्हारे भीतर”
लोगों को चित्र देखकर रोना आया।
यह कहानी आज के युवाओं की है — जो बाहर की दुनिया में चमक रहे हैं, पर भीतर से चुपचाप टूट रहे हैं। ‘आंतरिक शून्य का रहस्य’ एक ऐसी आत्मिक साइकोलॉजिकल यात्रा है जो यह नहीं बताती कि तुम कौन हो, बल्कि यह दिखाती है कि तुम अपने भीतर छिपे हर टुकड़े को स्वीकार कर सकते हो — और वहीं से पुनर्जन्म होता है।