काँच की दीवार
संक्षिप्त भूमिका
दिल्ली के पॉश इलाके ‘साउथ एक्सटेंशन’ में स्थित एक कॉर्पोरेट अपार्टमेंट में, एक युवा सॉफ्टवेयर इंजीनियर विनायक श्रीवास्तव एक सुबह अपने बेडरूम में मृत पाया जाता है। कमरा अंदर से बंद, खिड़कियाँ जालीदार, कोई तोड़फोड़ नहीं। पुलिस इस मृत्यु को सामान्य आत्महत्या मानकर केस बंद करने को तैयार होती है। लेकिन जब क्राइम ब्रांच की विशेष जांच अधिकारी तन्वी रावल केस की गहराई में जाती हैं, तो सामने आता है एक ऐसा रहस्य जिसमें तकनीक, रिश्तों की दरारें, और खामोश मन की भयावहता जुड़ी होती है। एक ऐसी सच्चाई, जो हर किसी को सोचने पर मजबूर कर देती है — कि आज का सबसे खतरनाक हथियार बंदूक नहीं, बल्कि डिजिटल मौन है।
पहला दृश्य — बंद दरवाज़ा, खुला रहस्य
12 दिसंबर, सुबह 9:40 बजे, फ्लैट नंबर A-706 के बाहर नौकरानी माधुरी घंटी बजा रही थी। रोज़ की तरह अंदर से कोई उत्तर नहीं आया। उसने बिल्डिंग मैनेजर को बुलाया। दरवाज़ा अंदर से लॉक था, पर खिड़की की जाली से देखा गया कि अंदर विनायक की देह बिस्तर पर पड़ी है, आँखें अधखुली, शरीर जकड़ा हुआ।
पुलिस को सूचना दी गई। जब अधिकारी भीतर पहुँचे, तो कमरा एकदम व्यवस्थित था। कोई ज़बरदस्ती नहीं, कोई संघर्ष नहीं, मोबाइल पास ही था — बंद। पास में लैपटॉप टेबल पर पड़ा था — खुला हुआ, लेकिन स्क्रीन ऑफ़।
रसोई में रात की बची हुई चाय थी, और वॉशरूम में टूथब्रश की नमी अभी बाकी थी — यानी विनायक की मृत्यु उसी सुबह हुई थी।
दूसरा दृश्य — एक आदर्श युवक की परछाई
विनायक, उम्र 29, एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में सीनियर सॉफ्टवेयर डेवलपर था। कुंवारा, कोई स्पष्ट मानसिक बीमारी का रिकॉर्ड नहीं। ऑफिस में उसका व्यवहार संतुलित था, लेकिन कुछ सहयोगियों ने बताया:
“पिछले दो हफ्तों से वो चुप था। मीटिंग में जवाब नहीं देता था। एक बार लंच में फूट-फूटकर रो पड़ा… लेकिन बताया नहीं क्यों।”
विनायक की बड़ी बहन अनामिका, जो गुड़गांव में रहती थी, ने कहा:
“वो मुझे रोज़ रात वीडियो कॉल करता था… लेकिन पिछले पाँच दिन से वो टाल रहा था। मैंने सोचा, ऑफिस के काम में व्यस्त होगा।”
पर अब जब वो आई, तो उसका मोबाइल लॉक था, लैपटॉप भी पासवर्ड-प्रोटेक्टेड।
सब कुछ सामान्य, और फिर भी असामान्य।
तीसरा दृश्य — स्क्रीन की खामोशी
क्राइम ब्रांच की तन्वी रावल को यह मामला ‘अस्वाभाविक आत्महत्या’ लगा।
किसी भी आत्महत्या में कम से कम कोई संकेत, कोई भावनात्मक अवशेष होता है — यहाँ कुछ नहीं।
डिजिटल फॉरेंसिक टीम ने विनायक का लैपटॉप खोला —
पासवर्ड 6 अंकों का था, पर आसानी से पता लग गया: “080894” — यानी उसकी जन्मतिथि।
लैपटॉप खुलते ही एक असाधारण बात सामने आई:
डेस्कटॉप पर कोई फाइल नहीं थी, बस एक मात्र फोल्डर —
“Clear_Mirror” — जिसमें पासवर्ड लगा था।
पासवर्ड ट्रेसिंग से फोल्डर खुला — और उसमें 14 वीडियो रिकॉर्डिंग्स थीं।
हर एक विनायक ने खुद बनाई थी —
शायद रात को देर से, या सुबह जल्दी, कैमरे के सामने अकेले बैठकर।
पहली वीडियो में वह कहता है:
“शायद मैं डरपोक हूँ। लेकिन मैं सच का सामना नहीं कर पा रहा। वो मेरी स्क्रीन से बाहर नहीं जाता। हर क्लिक एक छाया बन गया है…”
एक-एक करके वीडियो में विनायक टूटता दिख रहा था —
मानसिक रूप से, भावनात्मक रूप से।
आखिरी वीडियो में वह फुसफुसा रहा था:
“मुझे नहीं पता वो कौन है… लेकिन वो मुझे देख रहा है… हर बार जब मैं किसी से बात करता हूँ… कोई तो बीच में आ जाता है… कोई नाम नहीं, कोई चेहरा नहीं… सिर्फ एक खिड़की… और उसमें एक चुप रहने वाली प्रोफ़ाइल…”
चौथा दृश्य — डिजिटल पीछा
जांच टीम ने विनायक के सोशल मीडिया प्रोफाइल खंगाले।
LinkedIn, Instagram, Reddit, और एक अज्ञात डार्क वेब लॉगिन, जहाँ वह अक्सर देर रात एक्टिव होता था।
Reddit पर उसका एक गुप्त नाम था — “MirrorWatch_09”
जहाँ वो अक्सर मेंटल हेल्थ और साइबर-बुलिंग पर लिखता था।
लेकिन वहाँ एक यूज़र लगातार उसे जवाब देता था —
“ShadowFilter77” — जो उसकी हर पोस्ट पर सिर्फ एक पंक्ति लिखता:
“ये कहानी अधूरी है। तुम्हारा सच मेरी स्क्रीन पर है।”
IP ट्रेस किया गया — और वो लोकेशन निकली…
उसी इमारत की आठवीं मंज़िल से।
पाँचवां दृश्य — ऊपर की मंज़िल, नीचे की साज़िश
A-806 में रहने वाला व्यक्ति था — प्रशांत सेन, उम्र 34,
एक फ़्रीलांस डिजिटल कलाकार, जो घर से ही काम करता था।
जब उससे पूछताछ हुई, तो उसने साफ़ मना किया:
“मैं विनायक को जानता भी नहीं। मैं बस नीचे से ऊपर आता-जाता देखता था।”
पर पुलिस के पास स्क्रीनशॉट थे —
Reddit के उसी ShadowFilter77 अकाउंट से जुड़े IP लॉग्स।
प्रशांत को जब सामने किया गया, तो वह धीरे-धीरे टूटने लगा।
“मैं बस एक प्रयोग कर रहा था… एक सोशल एक्सपेरिमेंट।
मैं देखना चाहता था कि कोई व्यक्ति डिजिटल निगरानी से कितना टूट सकता है…
विनायक टारगेट नहीं था — वो ‘सब्जेक्ट’ था।
मैं जानबूझकर उसकी पोस्ट्स पर जवाब देता, उसे ट्रैक करता,
और फिर सोशल मीडिया के ज़रिए उसे महसूस कराता कि कोई हर समय उसे देख रहा है।”
तन्वी ने पूछा:
“क्या तुमने कभी आमने-सामने मुलाकात की?”
“नहीं। मैंने कभी उससे बात नहीं की।
लेकिन एक बार… मैंने उसकी विंडो में खुद की परछाईं देखी थी।
और मुझे लगा — अब मेरा एक्सपेरिमेंट पूरा है।”
निष्कर्ष — पर्दे के पीछे की हिंसा
विनायक की मौत ‘साइबर मनोवैज्ञानिक उत्पीड़न’ का नतीजा थी।
कानून में ऐसी परिभाषा अब तक स्पष्ट नहीं थी —
लेकिन पुलिस ने प्रशांत सेन पर ‘साइबर स्टॉकिंग’, ‘मानसिक उत्पीड़न’, और ‘गोपनीयता के उल्लंघन’ की गंभीर धाराओं में केस दर्ज किया।
तन्वी रावल ने अपनी रिपोर्ट में लिखा:
“आज का अपराध हथियार से नहीं होता —
यह स्क्रीन से होता है।
जब कोई खामोश दर्शक बनकर,
किसी की ज़िंदगी को नज़र से निगलता है —
और पीड़ित को ऐसा महसूस कराता है कि
वह अकेला नहीं, बल्कि एक दिखने वाली छाया में कैद है।”
समाप्त