काली किताब का रहस्य
एक पुरानी हवेली, एक बंद कमरा और एक काली किताब जिसने तीन लोगों की जान ले ली। यह कहानी है उस रहस्य की, जिसे जानना सब चाहते हैं… पर जो जान गया, वह बचा नहीं। हत्या की परतों में छुपा है वह सच, जो इंसान को हैवान बना देता है।
कहानी
बनारस के पास एक कस्बा था – शंखेश्वर। गंगा से थोड़ी दूर, वहाँ खड़ी थी एक पुरानी, खंडहर हो चुकी हवेली – ठाकुर हवेली। सौ साल पुरानी वह हवेली अब वीरान थी, पर सालों पहले वहाँ हुआ करता था शोर, रौब और रोशनी।
पर एक हादसे ने सब बदल दिया।
पंद्रह साल पहले, हवेली में तीन लोगों की जलती हुई लाशें मिली थीं – ठाकुर रघुवीर सिंह, उनकी पत्नी माधवी और उनके नौकर रामशरण। उस रात हवेली में आग लगी थी, और कहा गया – ठाकुर ने सबको मारकर खुद आत्महत्या कर ली।
मामला बंद हो गया।
पर पंद्रह साल बाद, उसी हवेली के अंदर से फिर आवाज़ें आने लगीं। पहले कुछ बच्चों ने कहा कि रात को वहाँ किसी के रोने की आवाज़ आती है। फिर एक स्थानीय पत्रकार – करण मेहरा – वहाँ रिपोर्टिंग करने गया और कभी वापस नहीं लौटा। दो दिन बाद उसकी लाश हवेली के पीछे एक पेड़ से लटकी मिली – आँखें खुली हुईं, मुँह से झाग निकल रहा था।
उसके हाथ में थी – एक पुरानी काली किताब।
पुलिस ने केस दोबारा खोला।
जाँच के लिए बुलाए गए क्राइम स्पेशलिस्ट – इंस्पेक्टर समर प्रताप। तेज़, गुस्सैल, और अपने फैसलों में अडिग। उसके साथ थी एक शांति से भरी पर बेहद बुद्धिमान सहयोगी – सब-इंस्पेक्टर नीता चौहान।
समर ने हवेली का मुआयना किया। अंदर घुसते ही उसे अजीब सी ठंडक और एकदम भारी खामोशी का अहसास हुआ। फर्श टूटा हुआ, दीवारों पर पुरानी तस्वीरें, और हवेली के बीचोंबीच एक कमरा – जो बंद था।
उसी कमरे के बाहर एक पीतल की पट्टी जड़ी थी – “इस दरवाज़े को मत खोलना”
“मतलब ज़रूर कुछ है इसमें,” समर बोला।
नीता ने गौर किया कि किताब में करण ने कुछ पन्ने चिन्हित किए थे – एक नक्शा था, जो हवेली के नीचे बने तहखाने की ओर इशारा करता था।
उसी रात, समर और नीता ने तहखाने का दरवाज़ा तोड़ा। अंदर घुसते ही उन्हें मिला – राख से भरा एक लोहे का संदूक। उसमें जल चुकी तस्वीरें, ज़मीन के काग़ज़ और एक और किताब – जिसमें सिर्फ एक वाक्य लिखा था –
“इस किताब का हर शब्द एक शाप है”
समर ने आगे जांच की तो पता चला – ठाकुर रघुवीर सिंह पुरानी तांत्रिक विद्या के गहरे जानकार थे। उन्होंने एक बार किसी दुर्लभ ग्रंथ को प्राप्त किया था, जिसे ‘काली किताब’ कहा जाता था। उसके बारे में मान्यता थी कि उसमें लिखे मन्त्रों से इच्छाएं पूरी होती हैं… लेकिन हर इच्छा की कीमत एक जान होती है।
पंद्रह साल पहले ठाकुर ने हवेली को बचाने, पैसे बढ़ाने और अपना नाम अमर करने के लिए उस किताब का प्रयोग किया। लेकिन मंत्र ने उल्टा असर किया – उसकी पत्नी और नौकर की मौत हो गई। और अंत में, ठाकुर ने खुद को भी मार डाला।
“यानी ये हत्या नहीं, किताब के प्रयोग की सज़ा थी?” नीता ने पूछा।
“नहीं,” समर बोला, “मुझे यकीन है… कोई इस किताब को फिर से इस्तेमाल करना चाहता है। और करण उसकी राह में आ गया।”
पुलिस ने किताब को सील कर दिया और हवेली को बंद करवा दिया।
पर उसी रात, चौकीदार लक्ष्मी प्रसाद की लाश हवेली के अंदर मिली – उसका खून सूख चुका था, और उसके माथे पर लिखा था – “द्वार फिर खुला है”
अब समर और नीता ने चारों ओर से खोज शुरू की। गाँव के एक वृद्ध ने बताया – “पंद्रह साल पहले एक लड़का था – चिराग, ठाकुर का भतीजा। सबको लगता है वो हादसे में मारा गया था, पर सच्चाई कुछ और है… वो तभी से गायब है।”
चिराग को खोजने पर पता चला – वह अब एक साधारण से नाम ‘विनय’ से कस्बे में ही एक पुस्तकालय में काम कर रहा था।
उससे जब समर ने सीधा सवाल किया – “किताब कहाँ है?” तो वह काँपने लगा।
“मैंने कुछ नहीं किया… मैं सिर्फ जानना चाहता था कि मेरे चाचा की मौत कैसे हुई… इसलिए मैं लौट आया… करण से मिला… और जब उसने किताब पढ़ना शुरू किया, तो सब बदल गया।”
“तुमने उसे पढ़ने दिया?” नीता ने पूछा।
“हाँ… पर फिर कुछ ऐसा हुआ, जो मैंने सोचा भी नहीं था… वो किताब खुद बोलने लगी… करण उसे बंद नहीं कर पाया… उसने उसे अपनी डायरी बना लिया…”
समर ने करण की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मंगवाई – उसमें साफ़ लिखा था – उसकी मौत ज़हर से नहीं, मानसिक तनाव से हुई थी। जैसे उसका दिमाग किसी अनदेखी चीज़ से लड़ रहा हो।
किताब की असली कॉपी अब पुलिस के पास थी – पर उसके दो पन्ने गायब थे।
समर और नीता अब समझ चुके थे – कोई तीसरा है… जो किताब को पढ़ चुका है… और अब अगला प्रयोग करना चाहता है।
अंतिम रात, हवेली में छुपकर दोनों ने निगरानी की।
रात के तीसरे पहर एक परछाईं उस बंद कमरे की ओर बढ़ी – दरवाज़ा खुद खुला। एक आदमी अंदर गया – हाथ में वही दो पन्ने।
जब समर ने ललकारा – “कौन है?” – तो वह पलटा… और निकला – थाना प्रभारी राजेश मिश्रा!
“तुम? तुम क्यों?” नीता बोली।
राजेश हँस पड़ा – “क्योंकि मैं थक गया हूँ… सालों से एक कमरे में, एक वर्दी में, एक ज़िंदगी में… मैं भी अमर होना चाहता हूँ… बस दो पन्ने… दो मंत्र… और फिर कोई मुझे नहीं रोक सकेगा…”
समर ने गोली चलाई – लेकिन राजेश ने किताब को खोल लिया था।
कमरा अचानक धुँए से भर गया। समर और नीता को ऐसा लगा जैसे चारों ओर से चीखें गूंज रही हैं। किताब जलने लगी… और राजेश की आँखों से खून बहने लगा।
“ये किताब सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं… समझने के लिए होती है…” वह चीखा, और वहीं ज़मीन पर गिर गया।
सुबह तक हवेली का वह कमरा राख हो चुका था।
किताब के जो बचे पन्ने थे, उन्हें सरकार ने सील कर विशेष सुरक्षा में भेजा।
और हवेली को हमेशा के लिए गिरा दिया गया।
समर ने अंत में नीता से कहा –
“कुछ रहस्य किताबों में रहने के लिए होते हैं… उन्हें जानना नहीं, छोड़ देना ज़्यादा बुद्धिमानी है।”
समाप्त