काले पन्ने का रहस्य
संक्षिप्त परिचय: यह कहानी एक सुप्रसिद्ध लेखक की मृत्यु के बाद मिली एक रहस्यमयी पांडुलिपि से शुरू होती है। जब लेखक की लिखी हुई ‘काले पन्नों’ की पंक्तियाँ असल ज़िंदगी की घटनाओं से मेल खाने लगती हैं, तो डिटेक्टिव शिवा और उनकी सहयोगी सोनिया इस रहस्य की तह तक पहुँचने का निश्चय करते हैं। क्या एक मृत लेखक ने अपनी कलम से किसी अपराध का पर्दाफ़ाश किया है? या फिर कल्पना और हक़ीक़त के बीच की रेखा ही मिट चुकी है?
राजधानी दिल्ली के पॉश इलाके ‘साउथ एक्स’ में वरिष्ठ लेखक अमरनाथ मेहता का निधन एक सामान्य दिल का दौरा मान लिया गया। उनकी उम्र सत्तर वर्ष थी और वह अपने अंतिम वर्षों में अकेले रहते थे। उनके पुत्र और बहू विदेश में बस चुके थे।
अमरनाथ साहित्यिक जगत का एक जाना-माना नाम थे। उनकी कहानियाँ सामाजिक यथार्थ को गहराई से छूती थीं। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना ‘रंगहीन आत्मा’ को पूरे देश में सराहा गया था।
उनकी मृत्यु के बाद जब घर की सफाई की जा रही थी, तो एक पुरानी लोहे की अलमारी से एक मोटी पांडुलिपि मिली, जिसका शीर्षक था — “काले पन्ने”।
पांडुलिपि के पहले पृष्ठ पर लिखा था:
“यह केवल उपन्यास नहीं है, यह वह सच है जिसे मैं कभी कह नहीं पाया, इसलिए मैंने लिख दिया।”
अमरनाथ के पुराने मित्र और प्रसिद्ध साहित्य समीक्षक ओंकार सिंह, जिन्हें इस पांडुलिपि को संपादित करने का दायित्व दिया गया था, ने इसकी सामग्री पढ़कर दिल्ली पुलिस को सूचित किया। उन्होंने कहा, “इस उपन्यास में एक हत्या का विवरण है, और मुझे पूरा विश्वास है कि यह केवल कल्पना नहीं है।”
पुलिस ने इस केस को पहले ही आत्महत्या के रूप में बंद कर दिया था, लेकिन जब यह मामला मीडिया में आया, तो डिटेक्टिव शिवा और उनकी सहयोगी सोनिया को इसमें हस्तक्षेप करने के लिए बुलाया गया।
शिवा और सोनिया ने सबसे पहले ‘काले पन्ने’ की सामग्री का विश्लेषण किया। उपन्यास में एक वृद्ध लेखक का ज़िक्र था, जिसे अपने पड़ोस में रहने वाली एक महिला की हत्या का संदेह था, लेकिन पुलिस ने उस मामले को आत्महत्या मान लिया था। उपन्यास में नाम बदले हुए थे, लेकिन स्थानों का विवरण हूबहू वास्तविक था — गुलमोहर लेन, पीली दीवार वाला घर, नीले फूलों की बालकनी…
सोनिया ने कहा, “यह तो उसी मोहल्ले का विवरण है, जहाँ अमरनाथ जी रहते थे।”
शिवा बोले, “हमें वहाँ की पुरानी पुलिस रिपोर्ट्स देखनी होंगी… कोई ऐसी महिला जिसकी रहस्यमयी मृत्यु हुई हो।”
दिल्ली पुलिस के रिकॉर्ड में दो वर्ष पूर्व का एक केस दर्ज था — संध्या कपूर, उम्र 36 वर्ष, जो पेशे से चित्रकार थीं। उनकी लाश बाथरूम में मिली थी, दरवाज़ा अंदर से बंद था, और शरीर में ज़हर के अंश पाए गए थे। केस को आत्महत्या मानकर बंद कर दिया गया था।
शिवा को यह केस संदिग्ध लगा। उन्होंने संध्या के पुराने कॉल रिकॉर्ड निकलवाए, जिसमें एक नाम बार-बार सामने आया — राघव मल्होत्रा। वह एक नामी आर्ट गैलरी का मालिक था और संध्या का संरक्षक भी।
उपन्यास के एक हिस्से में भी एक गैलरी मालिक का ज़िक्र था, जो ‘काले पन्नों’ से डरता था — क्योंकि वह जानता था कि उसके काले कारनामे उजागर हो सकते हैं।
शिवा और सोनिया ने राघव से संपर्क किया। वह अब मुंबई में रहता था, लेकिन एक सप्ताह बाद दिल्ली में आयोजित एक आर्ट फेस्ट में आने वाला था। शिवा ने एक योजना बनाई। राघव को उस पांडुलिपि की एक प्रति भेजी गई, साथ में एक चिट्ठी:
“क्या आप जानते हैं कि ‘काले पन्ने’ अब पाठकों के सामने आने वाला है?”
राघव ने उसी शाम फोन किया — “यह सब बकवास है! अमरनाथ पागल हो गया था, मैं उस औरत को ठीक से जानता भी नहीं था!”
अगले दिन राघव दिल्ली पहुँचा और शिवा से मिलने आया। अब उसकी आवाज़ में झिझक थी — “देखिए, संध्या मानसिक रूप से अस्थिर थी। वह मेरी गैलरी में काम करती थी, लेकिन मेरे उसके साथ कोई अनुचित संबंध नहीं थे।”
शिवा ने शांत स्वर में कहा, “तो फिर आपको ‘काले पन्ने’ प्रकाशित होने से कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए?”
राघव का चेहरा सफ़ेद पड़ गया।
तीसरे दिन, शिवा को एक गुमनाम लिफ़ाफ़ा मिला। उसमें संध्या और राघव की एक निजी तस्वीर थी, साथ में एक हस्तलिखित पत्र:
“मैं जानता हूँ कि मैं दोषी हूँ। संध्या मुझे ब्लैकमेल कर रही थी। मैंने उसे सबक सिखाने के लिए ज़हर देने की योजना बनाई थी, लेकिन वह सचमुच मर गई।”
शिवा ने यह सबूत पुलिस को सौंपा। राघव को गिरफ़्तार किया गया। पुराने मेडिकल रिकॉर्ड और अमरनाथ द्वारा संजोए गए दस्तावेज़ों के आधार पर केस को दोबारा खोला गया और हत्या घोषित किया गया।
अमरनाथ मेहता अब इस दुनिया में नहीं थे, लेकिन उनकी लेखनी ने न्याय दिलवाया।
शिवा ने सोनिया से कहा, “हर लेखक अपनी कल्पना में सच्चाई भरता है। लेकिन कभी-कभी, सच्चाई इतनी नंगी होती है कि उसे ढँकने के लिए कहानी की चादर चाहिए होती है।”
सोनिया मुस्कराई, “और काले पन्नों पर ही सबसे गहरे सच लिखे जाते हैं।”
समाप्त