काले सिक्के का रहस्य
संक्षिप्त परिचय:
पश्चिम बंगाल के एक ऐतिहासिक नगर, विष्णुपुर में, एक पुरानी हवेली से जुड़ी हुई हत्या की गुत्थी सामने आती है। एक इतिहासकार की रहस्यमयी मौत के बाद वहाँ से प्राप्त होता है एक दुर्लभ ‘काला सिक्का’, जो मुग़लकालीन धरोहर माना जाता है। जब पुलिस की जाँच विफल हो जाती है, तो यह मामला डिटेक्टिव शिवा और उनकी सहयोगी सोनिया को सौंपा जाता है। जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ती है, वैसा-वैसा हवेली के तहखानों, पुरानी किताबों और शतरंज के खेल की तरह उलझे हुए संकेतों से एक प्राचीन साजिश का पर्दाफ़ाश होता है।
पहला दृश्य: मृत्यु की छाया में इतिहास
विष्णुपुर के ‘मालवीय हवेली’ में 58 वर्षीय इतिहासकार डॉ. हरिप्रसाद मुखर्जी मृत पाए जाते हैं। शव हवेली के पुस्तकालय में उनके अध्ययन कक्ष में मिला, उनके हाथ में एक काला, धातु का सिक्का जकड़ा हुआ था। उनकी आँखें खुली थीं, जैसे मृत्यु से पहले कुछ अत्यंत भयावह देखा हो। पोस्टमॉर्टम में ज़हर का संकेत नहीं मिला, और मृत्यु का कारण ‘स्नायविक आघात’ बताया गया — जैसे मस्तिष्क ने अचानक काम करना बंद कर दिया हो।
उनके पोते, 19 वर्षीय ईशान ने पुलिस को बताया कि उन्होंने अपने दादा को दो दिन पहले ‘गुप्त दरवाज़े’ के बारे में बात करते सुना था, जो हवेली में कहीं था और ‘शत्रु के सिक्के’ से खुलता था। पहले किसी ने ध्यान नहीं दिया, लेकिन अब यह बात गंभीर लग रही थी।
पुलिस असमंजस में थी। मामला डिटेक्टिव शिवा को सौंपा गया।
शिवा और सोनिया की यात्रा विष्णुपुर की ओर
शिवा और सोनिया ट्रेन से विष्णुपुर पहुँचे। स्टेशन पर उनका स्वागत किया ईशान ने, जिसकी आँखों में भय था पर साथ ही उम्मीद भी। उन्होंने हवेली का पूरा नक्शा और दादा की डायरी उन्हें दी। डायरी के एक पृष्ठ पर लिखा था:
“अगर मैं ग़लत नहीं, तो वह सिक्का वही है… सम्राट औरंगज़ेब की ‘काली मुद्रा’, जिसे मुहर-ए-साया कहा जाता था। जिसे छूने वाला या तो राजा बनता था, या मृत्यु को पाता था।”
हवेली की दीवारों पर बारीक नक्काशियाँ थीं — बाघ, हाथी, और शेरों के चित्रों के बीच एक ऐसा प्रतीक भी था जो मुग़ल वास्तुकला से मेल खाता था। सोनिया ने फ़ौरन उसका फोटो लिया।
हवेली के नीचे का रहस्य
हवेली की निचली मंज़िल में एक ऐसा कक्ष था, जहाँ केवल पुराने नौकर ‘रघुनंदन’ को जाने की अनुमति थी। वह अब 75 वर्ष का बुज़ुर्ग था, लेकिन उसकी याददाश्त तेज़ थी। उसने बताया, “बाबूजी ने कहा था कि अगर कभी हवेली में शेर की आँख चमक उठे, तो समझना कि इतिहास जाग गया है।”
रात में शिवा और सोनिया उस दीवार के पास पहुँचे, जहाँ शेर की आकृति थी। जब उन्होंने काले सिक्के को शेर की आँख के पास स्पर्श कराया, तो दीवार धसककर एक पतली गुफा खुल गई। अंदर एक सीढ़ी नीचे जाती थी।
गुफा में छिपा सच
सीढ़ियाँ हवेली के पुराने तहखाने में पहुँचती थीं। वहाँ एक लोहे की संदूक थी, जिस पर उर्दू में लिखा था: “मुहर-ए-साया के रक्षक”। अंदर रखे थे:
- तीन और काले सिक्के
- एक खंजर
- एक काग़ज़ — जिस पर लिखा था:
“जिसने भी इन सिक्कों को सत्ता के लिए छुआ, वह नष्ट हुआ। यह शक्ति नहीं, शाप है।”
इसी संदूक के बगल में एक और शव था — जिसकी उम्र लगभग 45 वर्ष रही होगी, पर उसकी पहचान किसी से मेल नहीं खा रही थी।
केस का मोड़
शिवा ने ज़मीन की मिट्टी और शव के अवशेषों की जांच करवाई। रिपोर्ट से पता चला कि दूसरा शव लगभग दो दिन पुराना था — यानी डॉ. मुखर्जी की मृत्यु से ठीक पहले।
ईशान की माँ, यानी डॉ. मुखर्जी की बहू, अनुराधा, ने स्वीकार किया कि हवेली में पिछले कुछ दिनों से एक विदेशी व्यक्ति आ रहा था — नाम था डैनियल रहमान — जो लंदन की एक नीलामी संस्था से था और उस सिक्के में रुचि रखता था।
शिवा बोले, “तो संभवतः डैनियल ने ही डॉ. मुखर्जी से सिक्का लेने का प्रयास किया, लेकिन सिक्के के प्रभाव या किसी संघर्ष में उसकी मौत हो गई — और वह तहखाने में छिपा रहा।”
लेकिन सवाल था: डॉ. मुखर्जी की मौत क्यों और कैसे हुई?
अंतिम रहस्योद्घाटन
सोनिया ने अंततः डॉ. मुखर्जी की डायरी में एक और पन्ना पढ़ा, जहाँ उन्होंने लिखा था:
“मैंने आज डैनियल से संघर्ष किया। उसने मुझे मारना चाहा, लेकिन मैं बच गया। लेकिन जब मैंने सिक्के को हाथ में लिया… तो जैसे मेरे भीतर कुछ टूट गया। मुझे अब नींद नहीं आती। शेर की आँखें हर रात चमकती हैं। शायद यह अंत है।”
शिवा ने निष्कर्ष निकाला: “यह सिक्का महज़ एक धातु नहीं, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव है — जो व्यक्ति को भीतर से तोड़ देता है। शायद उसमें लेड (सीसा) का अंश है जो स्नायविक असर डालता है।”
न्याय और निष्कर्ष
सिक्कों को अब भारतीय पुरातत्व विभाग के हवाले कर दिया गया। हवेली को राष्ट्रीय विरासत घोषित किया गया और गुप्त तहखाने को संरक्षित किया गया। ईशान को डॉ. मुखर्जी की लाइब्रेरी और उनके कार्यों की देखरेख सौंपी गई।
शिवा ने अंतिम रिपोर्ट में लिखा:
“हर सिक्का दो पक्ष रखता है — एक जो चमकता है, और एक जो जलाता है। डॉ. मुखर्जी ने अंधकार को उजागर करने का साहस किया, पर वह शिकार हो गए उसी अंधकार के, जिसे वह समझने निकले थे।”
समाप्त