अग्निवीर : काले सूरज का रहस्य
संक्षिप्त झलक:
जब देश के कई इलाकों में अचानक दिन में ही अंधेरा छा जाता है और रहस्यमयी “काले सूरज” के दर्शन होते हैं, तब वैज्ञानिक भी असहाय हो जाते हैं। यह कोई प्राकृतिक घटना नहीं, बल्कि एक भयावह प्रयोग का परिणाम है, जो सम्पूर्ण भारत को अंधकार में डुबो सकता है। अग्निवीर को इस बार न केवल अदृश्य शत्रु से लड़ना है, बल्कि अपने विश्वास, संवेदना और अस्तित्व की परीक्षा भी देनी है। यह एक आत्मिक और प्रचंड युद्ध की कथा है — जो अग्निशक्ति के साथ-साथ मनुष्यत्व की भी परीक्षा लेती है।
कहानी
अंधकार की शुरुआत
दिल्ली की सुबह आम दिनों की तरह थी, पर अचानक 9:10 बजे सूरज की रोशनी गायब हो गई। आकाश काले धुएँ से ढक गया, पक्षी चिल्लाने लगे, तापमान गिरने लगा। शहर की लाइटें अपने आप बंद हो गईं।
लोग समझे कि शायद सूर्यग्रहण है, पर वैज्ञानिकों ने साफ कहा — यह कोई प्राकृतिक घटना नहीं है।
ऐसा ही अंधकार महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान और उड़ीसा में भी फैला। जगह-जगह रहस्यमयी आकृतियाँ आकाश में घूमती दिखीं — जिनका रंग सुर्य जैसा था पर वे पूरी तरह काले थे।
लोग डरने लगे। टीवी पर एक आवाज़ गूँजी —
“तैयार हो जाओ, प्रकाश का अंत निकट है। एक नया युग जन्म ले रहा है — ‘काले सूरज’ का युग।”
अग्निवीर की जागृति
यशोधर, जो अब ‘अग्निवीर’ के नाम से गुप्त जीवन जी रहा था, हिमालय की तलहटी में ध्यान कर रहा था। जब आकाश का रंग बदला, उसे भीतर एक ज्वाला ने झकझोरा। वह समझ गया — ये कोई साधारण विपत्ति नहीं, बल्कि अंतरात्मा तक को झुलसा देने वाला संकट है।
उसने अग्निशक्ति को जाग्रत किया और बिना देरी किए दिल्ली की ओर उड़ चला। पर उसे कुछ महसूस हुआ — उसकी अग्निशक्ति कमजोर हो रही थी, जैसे कोई ऊर्जा उसे खींच रही हो।
रहस्यमय ऊर्जा केंद्र
अग्निवीर ने खोजबीन करते हुए पाया कि अंधकार की जड़ें मध्यप्रदेश के घने जंगलों में मौजूद एक गुप्त केंद्र से जुड़ी हैं — जिसे “अरुणपुंज अनुसंधान केंद्र” कहा जाता था।
यह एक गुप्त प्रोजेक्ट था — जहाँ वैज्ञानिक एक ‘नेगेटिव सोलर कोर’ तैयार कर रहे थे, जिससे अनंत ऊर्जा प्राप्त की जा सके। पर उस परियोजना को वर्षों पहले बंद कर दिया गया था क्योंकि उसमें ‘जैविक चेतना’ का प्रवेश हो गया था।
अब वह कोर अपने आप विकसित हो चुका था — और खुद को एक जीवित ‘काला सूरज’ समझने लगा था।
मानव और विज्ञान का विकृत मेल — ‘कृष्णार्क’
कोर को नियंत्रित करने वाले मुख्य वैज्ञानिक ‘प्रो. रूद्रभानु’ ने अपने शरीर को उसी ऊर्जा से जोड़ लिया था और बन गया था — कृष्णार्क।
उसका विचार था — “सूरज ने सदियों से सत्ता का प्रतीक बन कर सबको दबाया है, अब उसकी मृत्यु होगी, और अंधकार में सभी एक समान होंगे।”
कृष्णार्क ने देश के पाँच ऊर्जा बिंदुओं को कब्जे में ले लिया था — जहाँ से काले सूरज अंधकार फैलाते थे। अग्निवीर को इन बिंदुओं को मुक्त करना था।
पहला बिंदु – राजस्थान (रेत की आग)
अग्निवीर ने राजस्थान के थार रेगिस्तान में स्थित केंद्र को नष्ट किया। वहाँ उसे काले अंगारे बरसाने वाले जीव मिले — जो सूरज की ऊर्जा से विकृत होकर जिंदा हो गए थे।
वह अपनी अग्निशक्ति से उन्हें भस्म करता गया, परन्तु जैसे-जैसे वे जलते, अग्निवीर की ऊर्जा भी क्षीण होती गई।
दूसरा बिंदु – उड़ीसा (समुद्र का काला कुंड)
यहाँ केंद्र समुद्र के नीचे था। अग्निवीर को जल में उतरना पड़ा, जहाँ उसकी अग्निशक्ति काम नहीं कर रही थी। वहाँ उसने ध्यान और आत्मिक ऊर्जा से शक्ति पाई और ‘आत्मिक अग्नि’ से ताला तोड़ा।
तीसरा बिंदु – हिमाचल (बर्फ की गुफा)
यहाँ ठंड इतनी तीव्र थी कि अग्निवीर की लौ भी जमने लगी थी। उसे अपने भीतर की अग्नि को महसूस करना पड़ा, अपने अतीत की तपस्या को स्मरण कर। वहाँ उसे अपनी माँ की आवाज़ सुनाई दी —
“बेटा, तू आग नहीं है… तू वह भावना है जो जलाती है अन्याय को।”
इस आत्मस्मरण से उसे शक्ति मिली और उसने बिंदु को राख किया।
आखिरी युद्ध – कृष्णार्क का गढ़
अब अग्निवीर पहुँचा मध्यप्रदेश के उस पुराने अनुसंधान केंद्र में — जहाँ सब कुछ लावे की तरह जल रहा था। वहाँ कृष्णार्क उसे मिला — अब वह एक चलता फिरता काला सूरज था। उसके पास ग्रहों जैसी शक्ति थी।
उनके बीच एक भयंकर युद्ध हुआ — अग्निवीर के अग्निकवच बनाम कृष्णार्क की ग्रैविटी-विकिरण शक्ति।
कृष्णार्क ने कहा —
“आग को बुझाया जा सकता है, पर अंधकार को नहीं रोका जा सकता।”
अग्निवीर मुस्कराया और बोला —
“पर हर अंधकार के पीछे कोई न कोई दीपक जरूर होता है। और मैं वही हूँ।”
अग्निवीर ने अपनी समस्त अग्निशक्ति को एकत्र किया, अपने शरीर को ही अग्नि में बदल दिया और कृष्णार्क के भीतर समा गया।
एक भयंकर विस्फोट हुआ।
पूरा आकाश हिल गया।
काले सूरज की छाया मिट गई।
लोगों ने फिर से सूरज को देखा।
समाप्ति — नायक की परछाई
विस्फोट के बाद अग्निवीर कहीं नहीं मिला। लोगों ने उसकी मृत्यु मान ली।
पर कुछ हफ़्तों बाद, उत्तराखंड की पहाड़ियों में एक युवती ने एक आदमी को देखा — जो जलती लकड़ी की राख पर नंगे पाँव चल रहा था, और उसके पीछे कोई छाया नहीं थी।
जब उसने पूछा — “आप कौन हैं?”
उसने मुस्कराकर कहा —
“जहाँ सूरज नहीं पहुँचता, वहाँ मैं जाता हूँ।”
समाप्त।