अंधेरे से उजाले तक
अंधेरे से उजाले तक भाग 1: टूटे सपनों का घर मयंक राठौर का जीवन एक थके हुए चलचित्र की तरह चल रहा था — जहाँ हर फ्रेम धुंधला था, हर सीन अधूरा। वह एक किराए के दो कमरे के मकान में रहता था, जिसकी दीवारों पर पपड़ी उतर चुकी थी और खिड़कियाँ बंद तो नहीं थीं, लेकिन उनमें देखने लायक कुछ भी नहीं बचा था। हर सुबह वह एक ही...