खामोशी का दस्तावेज़
संक्षिप्त भूमिका
एक प्रसिद्ध पत्रकार और समाचार वाचक की अचानक मृत्यु को सामान्य हृदयगति रुकने का कारण मान लिया जाता है।
पर जब उसकी बेटी को एक अधूरी रिपोर्ट और एक रहस्यमयी रिकॉर्डिंग मिलती है,
तो एक ऐसी सच्चाई सामने आती है जो न केवल पत्रकारिता की दुनिया को,
बल्कि राजनीतिक संबंधों और पारिवारिक परतों को भी हिलाकर रख देती है।
क्या वह वास्तव में स्वाभाविक मृत्यु थी?
या एक ऐसा षड्यंत्र, जो शब्दों के माध्यम से ही रचा गया था?
पहला दृश्य — उस रात की ख़ामोशी
राजधानी दिल्ली के चाणक्यपुरी क्षेत्र के एक भव्य कोठी में,
देश के सबसे प्रतिष्ठित समाचार विश्लेषकों में से एक — विक्रम देवगन —
रात्रि को अपने शयनकक्ष में मृत अवस्था में पाए गए।
उनकी पत्नी शालिनी जब प्रातःकाल की चाय लेकर कमरे में पहुंचीं,
तो देखा कि विक्रम निश्चल पड़े हैं, उनकी नाड़ी बंद थी।
पास ही उनकी लेखनी वाली डायरी खुली पड़ी थी,
जिसमें लिखा था:
“कुछ चुप्पियाँ शब्दों से अधिक भारी होती हैं।”
पुलिस पहुँची, चिकित्सकों ने परीक्षण किया —
“हृदयगति रुकना,” यह निष्कर्ष दिया गया।
ना तो कोई विष मिला, ना ही कोई बाहरी आघात।
समाचार पत्रों में दो दिन चर्चा रही, फिर सब शांत हो गया।
परंतु एक व्यक्ति इस मौन को स्वीकार नहीं कर सकी —
नयना देवगन, जो विक्रम की बेटी थी और स्वयं एक खोजपरक लेखिका थी।
दूसरा दृश्य — जो नज़रें खोजती रहीं
नयना ने बचपन से ही अपने पिता की लेखनी, उनके दस्तावेज़ों और हर समाचार प्रस्तुति की तैयारी देखी थी।
पिता की मृत्यु के दो दिन बाद, जब वह उनके अध्ययन कक्ष की अलमारी व्यवस्थित कर रही थी,
उसे एक पुराना ध्वनि रेकॉर्ड यंत्र मिला।
उसमें अंतिम ध्वनि फ़ाइल थी —
जिसकी तिथि थी: विक्रम की मृत्यु से एक दिन पूर्व।
ध्वनि रेकॉर्ड की शुरुआत सामान्य वार्तालाप से होती है —
एक परिचर्चा के अभ्यास की ध्वनि,
परंतु एक स्थान पर विक्रम की आवाज़ गंभीर हो उठती है:
“यदि कल मैं समाचार में उपस्थित नहीं रहूं,
तो समझ लेना कि वे लोग अब अंतिम चेतावनी पर आ गए हैं।
जो रिपोर्ट मैं कल सार्वजनिक करने वाला हूँ,
वह कुछ लोगों के लिए केवल एक समाचार नहीं —
अपमानजनक रहस्य है, जो उन्हें समाप्त कर सकता है।”
नयना स्तब्ध रह गई।
कौन लोग?
कौन-सी रिपोर्ट?
तीसरा दृश्य — अधूरी फ़ाइल, अधूरे इरादे
नयना ने अपने पिता के लेखन यंत्र की स्मृति इकाई को खंगाला।
वहाँ एक गुप्त फ़ोल्डर था —
“लाल लिफ़ाफ़ा” —
जिसे खोलने के लिए संकेतांक पूछा गया।
बहुत प्रयासों के बाद नयना ने अपने पिता की अंतिम प्रकाशित पुस्तक का नाम डाला:
“अपूर्ण सत्य” — और फ़ोल्डर खुल गया।
अंदर एक दस्तावेज़ था:
“कल्पतरु — सुर्खियों के पार छुपा सच”
यह लेख भारत की एक सबसे बड़ी निर्माण परियोजना संस्था कल्पतरु समूह के विरुद्ध था —
जिसने पिछले दस वर्षों में अनेक बहु-करोड़ परियोजनाएँ पूर्ण की थीं,
किन्तु इस लेख में यह बताया गया था कि संस्था के अध्यक्ष राकेश मल्होत्रा
और नगरीय विकास मंत्रालय के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों के बीच
कई गुप्त और अनुचित अनुबंध हुए थे।
इस लेख में कुछ सरकारी निविदाओं की प्रतियाँ, बैंक लेनदेन के प्रमाण और पत्राचार के अंकित चित्र भी थे,
जो यदि सार्वजनिक किए जाते,
तो न केवल सरकार के लिए,
बल्कि समाचार संस्थानों के लिए भी अत्यंत हानिकारक सिद्ध होते —
क्योंकि उनमें दो बड़े समाचार संस्थानों की चुप्पी भी उजागर होती।
चौथा दृश्य — जो मौन रहे, वे भी दोषी थे
नयना ने अपने पिता के पुराने सहयोगी और आत्मीय मित्र अभिजीत मिश्रा से संपर्क किया,
जो स्वयं वरिष्ठ पत्रकार थे और अब एक स्वतंत्र समाचार मंच संचालित कर रहे थे।
अभिजीत ने पूरा लेख पढ़ा और बोले:
“मुझे ज्ञात था कि विक्रम यह सब उजागर करने वाला है।
परंतु उससे पूर्व ही उसे चुप करा दिया गया।”
नयना ने प्रश्न किया:
“यदि यह षड्यंत्र था, तो मृत्यु में विष का कोई चिन्ह क्यों नहीं मिला?”
अभिजीत बोले:
“हर हत्या शारीरिक नहीं होती —
कुछ हत्याएँ भय, मानसिक दबाव और लगातार मिल रही धमकियों से होती हैं।
मुझे पूर्ण विश्वास है, उस रात विक्रम को कोई अंतिम धमकी दी गई होगी।
और उसी भय ने उसका अंत कर दिया।”
नयना अब इस सत्य को गुप्त नहीं रख सकती थी।
अंतिम दृश्य — मौन को शब्द मिलते हैं
नयना ने निश्चय किया कि वह इस दस्तावेज़ को
तीन स्वतंत्र और प्रतिष्ठित समाचार मंचों को एक साथ भेजेगी —
जो सत्य की अभिव्यक्ति के लिए समर्पित थे।
यह लेख प्रकाशित होते ही देशभर में हलचल मच गई।
कल्पतरु समूह ने इन तथ्यों को “झूठा और मनगढ़ंत” कहा,
किन्तु प्रवर्तन निदेशालय ने औपचारिक जाँच आरंभ कर दी।
तीन समाचार समूहों पर छापे पड़े,
और एक वरिष्ठ मंत्री ने तत्काल त्यागपत्र दे दिया।
विक्रम देवगन को मरणोपरांत “सत्य की निःस्वार्थ आवाज़” का पुरस्कार प्रदान किया गया।
उनकी मृत्यु को फिर एक बार “स्वाभाविक” कह दिया गया,
किन्तु अब वह एक अंत नहीं,
बल्कि एक आरंभ बन चुकी थी।
नयना ने अपने पिता की समस्त रिकॉर्डिंग, लेखन और दस्तावेजों को एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया:
“खामोशी का दस्तावेज़”
उसके प्रथम पृष्ठ पर लिखा था:
“मेरे पिता ने कभी कोई शस्त्र नहीं उठाया —
पर उनके शब्द हर अस्त्र से अधिक प्रभावशाली थे।
यह उनकी अंतिम लेखनी नहीं,
यह उस सत्य की शुरुआत है, जो भय से कहीं अधिक बलवान होता है।”
समाप्त