गुमनाम खून
एक बस्ती में मिली अज्ञात लाश, उस लाश की जेब में मिला सिर्फ़ एक नंबर, और एक पुलिस अफसर जो समझ नहीं पा रहा कि असली क़ातिल कौन है और असली मरा कौन — यह कहानी है एक ऐसे अपराध की, जो दिखता सीधा है, पर असल में है जालों से भरा हुआ।
भाग 1 – भोर का सन्नाटा
सुभाष नगर, मुंबई के एक गंदे नाले के किनारे बसी एक झोपड़पट्टी। सुबह पांच बजे, जब लोग अपने घरों से बाहर निकलने लगे, तब एक झुग्गी के पीछे कूड़े के ढेर के पास एक लाश पड़ी मिली — खून से लथपथ, चेहरे पर गंभीर चोट के निशान और सिर पूरी तरह फटा हुआ।
लाश के बदन पर कोई जेवर नहीं था, जेब में सिर्फ़ एक मुड़ा-तुड़ा कागज़ का टुकड़ा मिला — जिस पर लिखा था:
“9930XXXXXX – आखिरी बार यहीं देखा था।”
बस्ती वालों ने तुरंत पुलिस को बुलाया। मामला पहुंचा इंस्पेक्टर रेखा सिंह के पास, जो हाल ही में क्राइम ब्रांच से ट्रांसफर होकर थाने आई थीं। रेखा, जो अपने तेज़ फैसलों के लिए जानी जाती थीं, लाश के पास झुकीं और फौरन कहा —
“ये सिर्फ़ मर्डर नहीं, कुछ छिपाने की बहुत गहरी कोशिश है।”
भाग 2 – मृतक की पहचान
पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि मौत सिर पर किसी भारी चीज़ से वार करने के कारण हुई है। लाश के पास कोई आईडी नहीं थी, पर फिंगरप्रिंट से पहचान मिली — सलीम मिर्जा, उम्र 38, एक प्राइवेट ड्राइवर, जो पिछले तीन महीने से लापता था।
रेखा ने सलीम के पुराने रिकॉर्ड खंगाले। पता चला कि वो एक अमीर बिल्डर के घर काम करता था — विकास बंसल, जो हाल ही में मुंबई की सबसे ऊंची इमारत ‘क्राउन विस्टा’ का निर्माण करवा रहा था।
जब विकास से पूछताछ की गई, उसने कहा —
“हाँ, सलीम हमारे यहाँ ड्राइवर था, पर तीन महीने पहले बिना बताए चला गया। मैंने सोचा नौकरी बदल ली होगी।”
लेकिन बात कुछ हज़म नहीं हुई। सलीम के घर जाने पर रेखा को पता चला कि उसकी पत्नी, फरजाना, रोज़ पुलिस में रिपोर्ट डालने के लिए जाती थी, पर हर बार उसे टाल दिया गया।
“मैडम, वो कहकर गया था कि एक ‘स्पेशल ड्राइव’ पर जा रहा है, मालिक के लिए। पर फिर लौटकर नहीं आया।”
रेखा को पहली बार लगा कि इस मर्डर के पीछे एक बड़ा राज़ है।
भाग 3 – मोबाइल नंबर की कड़ी
जेब से मिला मोबाइल नंबर था — 9930XXXXXX। पुलिस ने नंबर ट्रेस किया — वो एक सिम कार्ड था, जो रोहित देशमुख नामक व्यक्ति के नाम से निकला था। रोहित की उम्र 27 वर्ष, एक फोटोग्राफर, जो अब तक एक केस में वांछित था — वो केस था ‘गायब मॉडल्स’ का, जिसमें तीन अलग-अलग लड़कियाँ शूट के नाम पर बुलाकर लापता हो गई थीं।
रेखा को समझ में नहीं आया — सलीम मिर्जा और इस फोटोग्राफर का क्या कनेक्शन?
रोहित को लोकेट किया गया और एक रात के ऑपरेशन में पकड़ा गया। पहले तो उसने कहा, “मैं किसी सलीम को नहीं जानता,” पर जब उसे सलीम की फोटो दिखाई गई, तो वो चुप हो गया।
“हाँ… एक बार वो मेरे साथ एक शूट लोकेशन तक गया था। मुझे लगा वो कोई प्रोडक्शन स्टाफ है।”
रेखा समझ गई — रोहित झूठ नहीं बोल रहा, पर पूरी बात भी नहीं बता रहा।
भाग 4 – नकली पहचान
जैसे-जैसे छानबीन आगे बढ़ी, रेखा को पता चला कि सलीम का असली नाम शायद कुछ और था। उसके बैंक अकाउंट्स की डिटेल्स में गड़बड़ थी। एक अकाउंट दिल्ली में था, एक कोलकाता में — दो अलग-अलग पहचान, लेकिन दोनों में एक ही फोटो।
और सबसे चौंकाने वाली बात — दोनों जगहों पर एक ही आदमी ने पैसे ट्रांसफर किए थे — विकास बंसल।
रेखा को लगा कि कहीं सलीम, विकास के लिए कोई ‘काला काम’ तो नहीं कर रहा था?
सलीम का पुराना मोबाइल रिकवर हुआ और उसमें कुछ डिलीटेड फोटोज़ वापस लाए गए — उनमें एक फोटो ऐसा था जिसमें विकास एक युवती के साथ दिख रहा था — वो युवती उन्हीं में से एक थी जो ‘गायब मॉडल्स’ केस में लापता थी।
भाग 5 – बांसुरी क्लब
फोटो की लोकेशन को डिकोड करने पर पता चला — वो जगह थी ‘बांसुरी क्लब’, एक हाई-प्रोफाइल बार जो बाहर से सिर्फ़ एक रेस्टोरेंट लगता था, लेकिन अंदर वीआईपी सेक्शन में गैरकानूनी गतिविधियाँ चलती थीं।
रेखा ने उस क्लब पर एक छापा मारा। वहां मौजूद एक बार गर्ल ने नाम न बताने की शर्त पर कहा —
“विकास साहब कभी-कभी नई लड़कियाँ लेकर आते थे। उन्हें पीछे के कमरे में ले जाते थे। सब कैमरे बंद हो जाते थे उन घंटों में।”
और एक चौंकाने वाली बात सामने आई — विकास के साथ अक्सर जो आदमी आता था, वो वही था — सलीम, यानी उसका ड्राइवर, मगर शायद असली काम था ‘डीलिंग’ का।
भाग 6 – सलीम की बगावत
अब तस्वीर साफ़ हो रही थी। सलीम सिर्फ़ ड्राइवर नहीं था। वो विकास के काले धंधों में उसका साथी बन गया था, लेकिन जब बात हद पार करने लगी — शायद लड़कियों की तस्करी या शोषण तक, तो सलीम ने धमकी दी कि वो सब उजागर कर देगा।
मोबाइल में एक वॉयस रिकॉर्डिंग भी मिली —
“अगर मुझे कुछ हो गया, तो ये रिकॉर्डिंग पुलिस के पास जाएगी। मैं अब और चुप नहीं रहूंगा।”
ये आवाज़ थी सलीम की।
पर वो रिकॉर्डिंग कहीं गई नहीं — यानी उसे मारने से पहले उसकी सारी व्यवस्था कर ली गई थी।
भाग 7 – विकास का जाल
रेखा ने कोर्ट से वॉरंट लिया और विकास को गिरफ्तार करवाया। पूछताछ में उसने सब कबूल किया —
“मैंने उसे नहीं मारा, लेकिन हाँ, मैंने शेखर को पैसे दिए थे। उसने कहा था कि वो उसे सबक सिखा देगा। मुझे नहीं पता था वो जान से मार देगा।”
शेखर को पकड़ा गया — वो बांसुरी क्लब में सिक्योरिटी हेड था। उसने मारपीट के बाद सलीम का सिर फोड़कर उसका मोबाइल और सारा डेटा मिटा दिया था।
पर एक गलती कर दी — सलीम के पास एक पुराना बटन कैमरा भी था, जिसे वो कोट में लगाकर चलता था। वही कैमरा अब सबूत बन गया।
भाग 8 – न्याय का दिन
कोर्ट में मामला पेश हुआ — सलीम अब ‘गवाह’ नहीं, बल्कि ‘गुनाह का शिकार’ था। विकास और शेखर, दोनों को उम्रकैद हुई।
सलीम की पत्नी को सरकार ने सहायता दी और उनकी बेटी को स्कॉलरशिप दी गई।
रेखा सिंह को पूरे राज्य में सम्मानित किया गया — और उन्होंने वो रिकॉर्डिंग एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सुनाई, जो सलीम ने बनाई थी।
उस आवाज़ में सिर्फ़ एक बात थी —
“मैंने गलत किया, पर अब और चुप नहीं बैठूंगा। अगर मुझे कुछ हो जाए, तो ये सच्चाई ज़रूर सामने लाना।”
अंतिम पंक्तियाँ
एक गुमनाम लाश, एक कागज़ पर लिखा नंबर, और एक बटन कैमरे ने ऐसा सच उजागर किया, जिसे पैसों, ताक़त और डर से सालों से दबाया जा रहा था। अपराध तब मरता है, जब कोई बिना डरे उस पर उंगली उठाता है — जैसे सलीम ने किया।
समाप्त
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