चांदनी चौक का ख़तरनाक शतरंज
संक्षिप्त परिचय: पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक की भीड़भाड़ और संकरी गलियों के बीच एक वृद्ध वकील की रहस्यमयी हत्या ने सबको हैरान कर दिया। एक पुराना शतरंज का सेट, जिसमें कुछ मोहरे गायब थे, इस अपराध की इकलौती निशानी बनकर उभरा। पुलिस ने इसे सामान्य चोरी-हत्या मान लिया, पर जब केस डिटेक्टिव शिवा और सोनिया के हाथों में पहुँचा, तो उन्होंने शतरंज की चालों में छिपे उस रहस्य को खोज निकाला, जो एक सदियों पुरानी जायदाद और एक डूबते परिवार के इतिहास से जुड़ा था।
कहानी:
दिल्ली की गलियों में सुबह का समय था। हलवाई की दुकानें खुल रही थीं, और मसाले की महक से पूरा इलाका गूंज रहा था। लेकिन उसी समय, जवाहरलाल अग्रवाल, 78 वर्षीय अनुभवी वकील, अपने घर में मृत पाए गए। पुलिस ने मौके पर पहुँचकर रिपोर्ट दर्ज की — कमरे में उलझन का माहौल था, पर ज़बरदस्ती का कोई संकेत नहीं। बस, मेज़ पर पड़ा एक शतरंज का अधूरा सेट ध्यान खींचता था।
अग्रवाल साहब के पड़ोस में रहने वाली उनकी भतीजी रुचिका अग्रवाल ने बताया, “दादाजी पिछले कुछ दिनों से बहुत बेचैन थे। वह रोज़ शतरंज खेलते थे, लेकिन अकेले। कहते थे, कोई अदृश्य व्यक्ति उनसे चाल चल रहा है।”
डिटेक्टिव शिवा और सोनिया को इस कथन में दिलचस्पी हुई। सोनिया ने कहा, “शतरंज के मोहरे अगर किसी विशेष क्रम में रखे हों, तो शायद ये संकेत हों — किसी पहेली के।”
शिवा ने शतरंज की बिसात की तस्वीरें खींचीं और घर की तलाशी शुरू की। उन्हें पुराने काग़ज़ों के बीच एक हस्तलिखित काग़ज़ मिला, जिस पर सिर्फ़ एक पंक्ति लिखी थी:
“राजा जब क़िले में फँसे, तो पैदल सैनिकों ने युद्ध पलट दिया।”
शिवा ने पुरानी जायदाद की फ़ाइलें निकलवाईं। अग्रवाल साहब पुराने समय में एक विवादित ज़मीन केस पर काम कर रहे थे, जिसमें चांदनी चौक की एक प्राचीन हवेली को लेकर दो परिवारों में लंबे समय से झगड़ा चला आ रहा था। यह हवेली आज खाली थी, और सरकारी रजिस्टर में विवादग्रस्त घोषित हो चुकी थी।
पर एक नोटरी फाइल में मिला एक नक्शा, जिस पर शतरंज की बिसात जैसा डिज़ाइन बना था — हवेली के कमरों का लेआउट वैसा ही था। सोनिया ने अनुमान लगाया, “क्या हवेली ही वह शतरंज है, और हर कमरा एक मोहरा?”
टीम ने हवेली का निरीक्षण शुरू किया। हवेली की दीवारों पर शतरंज के मोहरों की आकृतियाँ उकेरी हुई थीं। सबसे अंतिम कमरे में एक बंद संदूक मिला, जिस पर ‘रानी’ का चिन्ह बना था। उसे खोलने पर एक प्राचीन दस्तावेज़ मिला — एक असली वसीयतनामा, जिसमें लिखा था:
“जो व्यक्ति शतरंज के नियमों से हवेली में प्रवेश करेगा, वही असली उत्तराधिकारी कहलाएगा।”
अब सवाल था — क्या अग्रवाल साहब इस दस्तावेज़ को किसी को सौंपने वाले थे? और किसने उन्हें रोकने की कोशिश की?
शिवा ने CCTV फुटेज खंगाली, तो पाया कि मृत्यु से एक रात पहले एक युवक हवेली के आस-पास मंडरा रहा था — मोहित गुप्ता, जो उस हवेली पर दावा कर रही दूसरी पार्टी का पोता था।
पूछताछ में मोहित ने स्वीकार किया कि वह वसीयतनामा चुराना चाहता था, पर जब वह अग्रवाल साहब के पास पहुँचा, तो उनमें हाथापाई हुई और गलती से उन्होंने वृद्ध को धक्का दे दिया।
मगर शिवा को यकीन नहीं था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में किसी भारी वस्तु से सिर पर चोट का ज़िक्र था। मोहित के हाथ में चोट थी, लेकिन वह चोट एक सप्ताह पुरानी निकली।
सोनिया ने घर में दोबारा जांच की और पाया कि शतरंज का एक मोहरा — घोड़ा — किचन के मर्तबानों में छुपा हुआ था। उसके भीतर एक माइक्रोचिप लगी थी, जिसमें अग्रवाल साहब की अंतिम रिकॉर्डिंग थी:
“अगर मैं न रहूं, तो जान लेना कि मेरी मृत्यु आकस्मिक नहीं होगी। वह व्यक्ति जो मेरी पीठ पीछे चालें चलता रहा है — वही मेरा सबसे भरोसेमंद शागिर्द था — संदीप वर्मा।”
संदीप, अग्रवाल साहब का जूनियर था। उसने ही शतरंज सेट रखा था, हवेली के दस्तावेज़ छुपाए थे, और जानता था कि वसीयतनामा जल्द ही अदालत में जमा किया जाने वाला है। उसका उद्देश्य था मोहित को दोषी दिखाकर खुद संपत्ति का गुप्त उत्तराधिकारी बन जाना।
शिवा ने एक जाल बिछाया — उन्होंने फर्जी खबर फैलाई कि वसीयतनामा का असली मालिक अदालत से हवेली की चाबी लेने वाला है। रात को हवेली में संदीप चोरी से दाख़िल हुआ और उसी संदूक को खोलने लगा। पुलिस ने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया।
अदालत में वसीयतनामा पेश किया गया और असली उत्तराधिकारी रुचिका को घोषित किया गया, क्योंकि दस्तावेज़ों के अनुसार वह अंतिम जीवित उत्तराधिकारी थीं।
रुचिका ने कहा, “मैं इसे म्यूज़ियम बना दूँगी — ताकि दादाजी की विरासत, चालें और बुद्धिमत्ता सबके सामने रहे।”
शिवा बोले, “शतरंज सिर्फ़ खेल नहीं, रणनीति, विश्वास और समय की परीक्षा है — जिसे खेलने वाले भूल जाते हैं कि मोहरे बदलते देर नहीं लगती।”
समाप्त