चौथा दरवाज़ा
संक्षेप में
दिल्ली के पॉश इलाके में स्थित एक फ्लैट में एक अधिवक्ता की रहस्यमय हत्या होती है।
हत्या एक ऐसे कमरे में हुई है जहाँ बाहर से कोई घुस नहीं सकता था।
कमरा भीतर से बंद था, खिड़कियाँ लोहे की जालियों से ढकी थीं।
कोई गवाह नहीं, कोई संदिग्ध नहीं।
लेकिन मृतक के मोबाइल पर एक संदेश मिला —
“चौथा दरवाज़ा खुला तो कुछ नहीं बचेगा।”
कहानी की मुख्य पात्र है अन्वी जैन, जो एक स्वतंत्र पत्रकार है।
वह इस मामले की पड़ताल करते हुए ऐसे सच के करीब पहुँचती है,
जिसे सामने लाना उसके अपने जीवन को ही दांव पर लगा देता है।
पहला दृश्य – एक शांत सुबह जो वैसी नहीं थी
सवेरे ७:१० बजे की बात है।
अर्थव मेहरा, उम्र ४९ वर्ष, दिल्ली उच्च न्यायालय में एक प्रसिद्ध आपराधिक वकील था।
उसका नौकर रघुनाथ रोज़ की तरह चाय लेकर आया,
पर अंदर से दरवाज़ा बंद था।
कई बार खटखटाने पर कोई उत्तर नहीं मिला।
आख़िरकार पुलिस बुलाई गई।
ताले तोड़े गए।
और भीतर जो देखा गया — वह सामान्य नहीं था।
अर्थव अपनी कुर्सी पर बैठा था —
आँखें खुली थीं, शरीर सीधा, पर हृदय बंद।
कोई रक्त नहीं, कोई संघर्ष नहीं, कोई गोली नहीं।
बस मेज़ पर रखा उसका मोबाइल,
जिस पर एक आख़िरी संदेश था —
“तुमने तीन दरवाज़े बंद किए,
पर चौथा खुल गया।”
दूसरा दृश्य – पत्रकार जो रुकती नहीं
अन्वी जैन, उम्र ३२ वर्ष, स्वतंत्र खोजी पत्रकार।
वह ‘हक़ीक़त’ नामक ऑनलाइन पत्रिका के लिए काम करती है।
सामान्य मामलों से उसे कोई रुचि नहीं होती,
लेकिन इस बार बात कुछ और थी।
वह अर्थव मेहरा को जानती थी —
तीन वर्ष पहले उसने एक जज के बेटे को हत्या के आरोप से छुड़ाया था,
और तब अन्वी ने ही उस फैसले की सख़्त आलोचना की थी।
अब वही वकील —
अचानक बिना चोट, बिना कारण मृत।
और वो भी इस विचित्र संदेश के साथ।
अन्वी ने मामले की गहराई में जाने का निश्चय किया।
तीसरा दृश्य – तीन दरवाज़े
अन्वी ने पुलिस रिकॉर्ड निकाले।
अर्थव मेहरा ने जिन तीन चर्चित मामलों में बचाव किया था,
उनमें से तीनों ही मामलों में —
-
एक नाबालिग की आत्महत्या
-
एक सड़क दुर्घटना जिसे दुर्घटना नहीं माना जा सकता
-
एक महिला सहकर्मी की रहस्यमय आग से मृत्यु
तीनों मामलों में आरोपी बरी हो चुके थे।
तीनों मामलों में पीड़ित पक्ष की ओर से लगातार यह आरोप लगाया गया था
कि “सच को दरकिनार कर, प्रभावशाली को बचाया गया।”
अब वह संदेश —
“तीन दरवाज़े बंद किए…”
क्या ये वही तीन केस थे?
चौथा दृश्य – चौथा कौन?
अन्वी को अर्थव की पूर्व सहयोगी अदिति घोष से संपर्क हुआ।
अदिति ने बताया:
“वह बदल गया था।
पहले उसमें न्याय के लिए एक आग थी।
फिर उसने कहना शुरू किया — ‘क़ानून जीतने का खेल है, सच तो एक अबूझ पहेली है।'”
अदिति ने एक और बात बताई —
अर्थव पिछले छह महीनों से एक “गुप्त केस” पर काम कर रहा था,
जिसके बारे में उसने किसी को नहीं बताया।
लेकिन वो फाइल अब तक नहीं मिली।
पाँचवाँ दृश्य – एक ईमेल जो बच गया
अन्वी ने अर्थव के निजी कंप्यूटर की जानकारी तलाशी।
उसका लैपटॉप पुलिस ने जब्त कर लिया था,
लेकिन एक पुराना टैबलेट अदिति के पास था।
टैबलेट खोलते ही अन्वी को एक ईमेल मिला —
बिना प्रेषक के।
विषय पंक्ति थी —
“अगर तुमने चौथा दरवाज़ा भी बंद किया,
तो तुम भी खो जाओगे।”
ईमेल में एक लिंक था —
जिसमें एक गवाही की रिकॉर्डिंग थी।
रिकॉर्डिंग में एक महिला की कांपती आवाज़ थी —
“मेरे पति को उन्होंने जलाकर मार दिया।
सब जानते हैं।
पर ये लोग… इनका दरवाज़ा कभी नहीं खुलता।
पर मैंने वो चौथा दरवाज़ा देख लिया है।”
छठा दृश्य – मौत, आत्महत्या या चेतावनी?
अन्वी ने यह फ़ाइल पुलिस को सौंपी,
लेकिन दो दिन बाद उसका लेख प्रकाशित होने से पहले ही
‘हक़ीक़त’ वेबसाइट हैक हो गई।
जब वह वापस घर लौटी —
उसके दरवाज़े पर एक नोट चिपका था:
“तुम भी दरवाज़े गिनने लगी हो?”
अब वह समझ चुकी थी —
यह कोई आत्महत्या नहीं,
बल्कि एक चेतावनी थी उन सभी के लिए जो सच्चाई के चौथे दरवाज़े तक पहुँचते हैं।
अंतिम दृश्य – चौथा दरवाज़ा फिर खुला
तीन महीने बीत चुके हैं।
मामला अब पुलिस ने बंद कर दिया है —
“कार्डियक अरेस्ट”, रिपोर्ट में लिखा गया।
लेकिन अन्वी अब अपने नए लेख में बस एक पंक्ति लिखती है:
“अगर आप इसे पढ़ रहे हैं,
तो जानिए —
दरवाज़े चार होते हैं।
पहला कानून का,
दूसरा पैसे का,
तीसरा रिश्तों का,
और चौथा… सन्नाटे का।
मैं अब चौथे में हूँ।”
समाप्त