🕵️♂️ छठी मंज़िल का दरवाज़ा
(एक अनसुलझा क़त्ल, एक ग़ायब वसीयत, और एक बंद दरवाज़े के पीछे छिपा सच)
डिटेक्टिव शिवा और सोनिया केस फ़ाइल #17
शनिवार, सुबह 7:15 | दिल्ली – करोल बाग | अर्जुन हाइट्स अपार्टमेंट – फ्लैट नंबर 6A
छठी मंज़िल पर सफ़ाई कर्मचारी राघव ने देखा — फ़्लैट 6A का दरवाज़ा आधा खुला था।
“मेहता साब?” उसने आवाज़ दी।
कोई जवाब नहीं आया।
अंदर झाँका तो फ़र्श पर एक अधेड़ उम्र का आदमी पड़ा था — एक हाथ ज़मीन पर, दूसरा एक मोमबत्ती की ओर फैला हुआ।
कमरे में कोई खून नहीं, कोई चीख नहीं, कोई टूटी हुई चीज़ नहीं।
लेकिन उसकी आँखें खुली थीं — और चेहरा स्थिर, भावहीन।
प्रभाकर मेहता, 63 वर्षीय रिटायर्ड इनकम टैक्स अफ़सर, मृत पाए गए।
🔍 जाँच शुरू
पुलिस ने प्रारंभिक रिपोर्ट में कहा —
“कोई संघर्ष नहीं, शायद हार्ट अटैक।”
लेकिन फ्लैट में जो मिला वो सामान्य नहीं था —
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एक जलती हुई मोमबत्ती
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एक मेज जिस पर चार चाय के कप थे
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और दीवार पर एक पुरानी पेंटिंग — जिसमें छठी मंज़िल के उसी फ़्लैट का दरवाज़ा बना था… और दरवाज़े पर खून के छींटे थे।
मेहता जी के बेटे अविनाश मेहता ने कहा,
“पापा किसी से मिल नहीं रहे थे कई दिनों से। लेकिन कल रात उन्होंने अचानक सबको बुलाया था — कुछ ‘महत्वपूर्ण’ बताने के लिए।”
किसे बुलाया था?
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खुद अविनाश
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मेहता जी की भतीजी प्रियंका
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पुराने पारिवारिक मित्र रघुवीर वर्मा
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और… किसी चौथे मेहमान का कोई नाम नहीं।
“कौन था चौथा कप वाला?”
🧠 केस पहुँचता है डिटेक्टिव शिवा और सोनिया तक
मेहता परिवार के वकील ने डिटेक्टिव शिवा को बुलाया।
“प्रभाकर मेहता के पास एक पुरानी वसीयत थी, लेकिन उन्होंने हाल ही में उसे बदलने की बात कही थी। वो वसीयत अब कहीं नहीं है।”
शिवा और सोनिया फ्लैट में पहुँचे।
सोनिया ने सबसे पहले टेबल की चाय के कपों को स्कैन किया —
तीन कपों पर अलग-अलग फिंगरप्रिंट्स थे, लेकिन चौथे पर कोई नहीं।
“या तो दस्ताने पहने थे… या वो कप किसी और के लिए था, जो आया ही नहीं,” शिवा बोला।
🧩 परिवार में दरार
शिवा ने अविनाश से बात की —
“आपके पिता क्या बताने वाले थे?”
“उन्होंने कहा कि वो एक ‘सच’ उजागर करेंगे… और किसी को कुछ देने वाले हैं जो सभी को चौंका देगा।”
प्रियंका बोली —
“वो पापा के बड़े भाई के बेटे को याद करते थे, जो अब इस शहर में नहीं है। क्या उसी के लिए कुछ था?”
शिवा:
“अगर उन्होंने वसीयत बदली थी, तो नया उत्तराधिकारी कौन?”
📦 सुराग – पुरानी अलमारी, नया राज़
सोनिया ने स्टडी रूम में एक पुरानी अलमारी के पीछे खरोंच देखी —
पीछे एक पतली सी दरार थी।
अंदर मिला — एक छोटी सी तिजोरी, जिसे जब खोला गया तो उसमें था —
एक लिफ़ाफ़ा।
उस पर लिखा था:
“मेरी अंतिम इच्छा — पढ़ा जाए मेरी अनुपस्थिति में, और केवल उनके सामने जिनका चेहरा मैंने खुद देखा हो।”
वसीयत में नाम था:
शुभम सिंह – मेहता जी के बचपन के दोस्त का बेटा, जिसे उन्होंने गुपचुप गोद लिया था, और जो इस समय बेंगलुरु में एक छोटे एनजीओ में काम करता था।
🕵️♂️ लेकिन मौत अचानक क्यों?
डॉक्टरी रिपोर्ट में मौत का कारण सामान्य कार्डियक अरेस्ट बताया गया,
लेकिन सोनिया ने ध्यान दिया —
मेहता जी की उंगली में चाय की हल्की दाग थी, जबकि वो मधुमेह से पीड़ित थे और बिना शक्कर की चाय ही पीते थे।
शिवा ने कहा —
“ये एक शांत हत्या है। ज़हर धीरे-धीरे दिल को रोकता है, लेकिन ऐसा ज़हर जो कुछ ही मिनटों में असर करता है… और कोई आवाज़ तक नहीं छोड़ता।”
🧠 कैमरे का खेल
सोनिया ने सोसायटी का CCTV खंगाला।
चारों अतिथि ऊपर गए, लेकिन 10:52 बजे एक छाया सी आकृति सीढ़ियों से नीचे उतरती दिखाई दी —
चेहरे पर साफ कुछ नहीं, लेकिन उसने दस्ताने पहने थे।
शिवा ने फ़्लैट की पेंटिंग को देखा —
वो पेंटिंग जिसमें छठी मंज़िल का वही दरवाज़ा बना था, और उस पर खून के छींटे थे।
वो नया नहीं था…
लेकिन हाल ही में उसी के कोने में पेंसिल से कुछ लिखा गया था —
“एक गवाह ही काफी है”
💥 खुलता है रहस्य
शिवा ने सभी को फिर एकत्र किया।
अविनाश, प्रियंका, रघुवीर… सब सामने।
“प्रभाकर मेहता को ज़हर दिया गया,” शिवा बोला,
“और वो ज़हर चाय में था — जिसे उन्होंने सबसे पहले अविनाश को थमाई।”
अविनाश घबरा गया।
“लेकिन पापा ने खुद बनाई थी चाय…”
“नहीं,” सोनिया बोली —
“आपने बनाई थी। चाय के डिब्बे पर आपकी उंगलियों के नीचे रबर के दस्तानों के अंश मिले। और वही कप आपने टेबल से बाद में उठाकर धोया भी — सिर्फ़ एक कप!”
अविनाश चुप।
शिवा ने अंतिम वाक्य कहा —
“आपको डर था कि वो वसीयत किसी और को दे देंगे — आपको कुछ नहीं मिलेगा।
और वसीयत के पहले पढ़ने से पहले आपने खेल खत्म कर दिया।”
🎯 अंत
अविनाश को गिरफ्तार किया गया।
वसीयत के अनुसार शुभम को फ्लैट और स्टूडियो सौंपा गया।
प्रियंका को आर्ट स्कॉलरशिप दी गई।
रघुवीर ने अपना हिस्सा दान कर दिया।
जब शिवा और सोनिया वापस लौट रहे थे, सोनिया ने पूछा,
“वो पेंटिंग का खून वाला दरवाज़ा क्या था?”
शिवा मुस्कुराया,
“शायद मेहता जी ने खुद ही वो संकेत छोड़ दिया था…
कभी-कभी मरने वाले मरने से पहले अपराधी का नाम नहीं, परछाईं छोड़ जाते हैं।”
✅ समाप्त