छाया की परछाई
संक्षिप्त भूमिका
मुंबई की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी के बीच एक शांत-सी गली में बसे “गगनदीप रेसिडेंसी” अपार्टमेंट में एक सुबह, प्रसिद्ध वकील समीर माथुर अपनी बालकनी से गिरकर मृत पाए जाते हैं। पहली नजर में यह एक स्पष्ट आत्महत्या लगती है। पर जब पुलिस निरीक्षक सौम्या जोशी इस केस की जांच शुरू करती हैं, तो उन्हें कुछ ऐसे सुराग़ मिलते हैं जो बताते हैं कि यह महज़ एक हादसा नहीं था। यह कहानी हर इंसान के भीतर पल रहे डर, छिपे अपराध और उन रिश्तों की है जो दिखते कुछ हैं, होते कुछ और हैं।
पहला दृश्य — छठी मंज़िल से गिरा सच
4 मई की सुबह, करीब 6:40 बजे, कॉलोनी के गार्ड विजय यादव ने एक ज़ोर की आवाज़ सुनी। जब वह दौड़कर अपार्टमेंट के पिछले हिस्से में पहुँचा, तो देखा कि समीर माथुर का शरीर खून से लथपथ ज़मीन पर पड़ा था। कुछ ही देर में लोग इकट्ठा हो गए।
समीर, उम्र 49, महाराष्ट्र उच्च न्यायालय में नामी आपराधिक वकील थे। उनकी छवि तेज़, ईमानदार और अप्रत्याशित फैसलों के लिए प्रसिद्ध थी। उनकी पत्नी नीला माथुर एक मनोचिकित्सक थीं, और बेटा अद्विक, 21 वर्षीय, पुणे से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था।
नीला ने बताया कि सुबह वह जॉगिंग के लिए गई थीं। लौटने पर देखा कि दरवाज़ा खुला है, लेकिन समीर घर में नहीं थे। तभी कॉलोनी से फोन आया।
पुलिस पहुँचती है। प्रथम दृष्टया आत्महत्या लगती है — लेकिन सौम्या जोशी की आँखें एक छोटी सी चीज़ पर अटक जाती हैं: बालकनी की रेलिंग के पास गिरा एक सफेद दस्ताने — बस एक। दूसरा नहीं।
दूसरा दृश्य — अदालत से परे का जीवन
समीर एक केस पर काम कर रहे थे — राजीव खन्ना बनाम राज्य सरकार, जिसमें उन्होंने एक बिल्डर के खिलाफ 84 करोड़ के धोखाधड़ी के केस में सरकार का पक्ष लिया था। वह केस बहुत संवेदनशील था, और समीर पर दबाव भी था।
लेकिन समीर की डायरी में कुछ और भी था —
अंतिम प्रविष्टि थी:
“अब खेल मेरे कमरे से शुरू हो रहा है। जिसे मैं सच मानता था, वही शायद सबसे बड़ा झूठ निकले…”
सौम्या को यह अजीब लगा।
तलाशी के दौरान कमरे की एक अलमारी में एक चिट्ठी मिली —
छुपाकर रखी गई, और बिना लिफ़ाफ़े के।
“तुम जो कर रहे हो, उसका अंत अच्छा नहीं होगा। हर रिश्ता, हर सफाई, तुम्हारे चेहरे की एक और परत उधेड़ रही है। खुद को देखना बंद कर दो, वरना कोई और तुम्हें गिरा देगा।”
कोई हस्ताक्षर नहीं।
तीसरा दृश्य — परिवार के भीतर की परछाइयाँ
नीला माथुर से जब पूछताछ की गई, तो उन्होंने कहा:
“वो पिछले कुछ महीनों से चिड़चिड़े हो गए थे। ज़रा-सी बात पर गुस्सा करते, रात को देर से आते, कभी-कभी बिना खाना खाए ही सो जाते। मैंने सोचा, केस का तनाव होगा।”
सौम्या ने पूछा:
“क्या उनके किसी से व्यक्तिगत विवाद थे?”
नीला एक क्षण के लिए रुकी, फिर बोलीं:
“कुछ दिन पहले, समीर ने मुझसे पूछा था कि ‘क्या तुम मुझसे कुछ छुपा रही हो?’ मुझे नहीं पता उन्होंने किस संदर्भ में पूछा, लेकिन वो सवाल आंखों में ठहर गया था।”
बेटा अद्विक जब पुणे से आया, तो उसने बताया:
“पापा ने पिछले हफ्ते मुझसे वीडियो कॉल पर पूछा था — ‘तू अपने दोस्त आर्यन से अब भी मिलता है?’ आर्यन? हाँ, मिलता हूँ। लेकिन… उस सवाल का मतलब मैंने नहीं समझा।”
सौम्या को अब लगने लगा — यह आत्महत्या नहीं थी। यह एक ऐसा जाल था जिसमें परिवार, अतीत और संबंध उलझे हुए थे।
चौथा दृश्य — अधूरी तस्वीर
सीसीटीवी फुटेज की जाँच हुई।
5:51 AM पर एक व्यक्ति अपार्टमेंट में प्रवेश करता है — चेहरा मास्क से ढका हुआ, हाथ में दस्ताने, काले जूते, और बैग।
लेकिन मुख्य बात — वह व्यक्ति अपार्टमेंट की छठी मंज़िल तक सीढ़ियों से जाता है, और 6:18 AM पर निकलता है।
जैसे ही फुटेज को ज़ूम किया गया, एक पल के लिए चेहरा दिखता है — और वह कोई और नहीं, डॉ. मृदुल रॉय, नीला माथुर का काउंसलिंग क्लिनिक पार्टनर।
जब मृदुल से पूछताछ की गई, तो उन्होंने पहले कहा:
“मैं उस दिन घर पर ही था।”
लेकिन जब फुटेज दिखाई गई —
वो चुप हो गया।
काफी देर बाद बोला:
“मैं नीला से मिलने गया था… समीर को नीला और मेरे बारे में शक हो गया था। वो मुझे धमका रहा था। कह रहा था कि मेरा करियर खत्म कर देगा, मेरा लाइसेंस रद्द करवा देगा।”
सौम्या ने पूछा:
“क्या तुमने उसे मारा?”
“नहीं। मैं मानता हूँ कि हम लड़े थे, लेकिन मैं उसे धक्का नहीं दिया। मैं चुपचाप निकल आया।”
पाँचवां दृश्य — दूसरी परछाई
लेकिन मामला यहीं नहीं रुका।
पुलिस को बालकनी की दीवार पर एक हल्का सा फुटप्रिंट मिला —
छोटा, शायद महिला का।
उस पर डस्ट टेस्ट हुआ — और जो निकला, वह चौंकाने वाला था।
नीला माथुर का DNA।
जब नीला से दोबारा पूछताछ हुई, तो उसने लंबे मौन के बाद कहा:
“हाँ, मैं लौट आई थी। जब समीर और मृदुल का झगड़ा हुआ, मैं वहीं थी। मैंने छुपकर सब सुना।
समीर ने मुझे देखा — और कहा, ‘अब ये दिखावा बंद करो।’
मुझे लगा, मैं खो रही हूँ।
मैंने सिर्फ़ उसे धक्का दिया — बहुत हल्का।
लेकिन उसका पैर फिसल गया… और वो गिर गया…”
निष्कर्ष — एक धक्का, जो हर रिश्ते को गिरा देता है
समीर की मृत्यु तकनीकी रूप से ‘दुर्घटनात्मक हत्या’ में आती थी —
जिसमें न हत्या की मंशा थी, न आत्महत्या का इरादा।
नीला और मृदुल पर ‘साज़िश छिपाने’, ‘झूठी गवाही’, और ‘गोपनीयता के उल्लंघन’ की धाराएं लगीं।
लेकिन जो सबसे बड़ा अपराध हुआ था,
वह था भरोसे का टूटना।
सौम्या ने अपनी रिपोर्ट में लिखा:
“समीर एक ईमानदार वकील था। लेकिन वह अपने घर में न्याय नहीं पा सका।
उसने दूसरों को बचाया, पर अपने रिश्तों को नहीं बचा पाया।
और एक दिन, जब वह गिरा — तो किसी ने रोका नहीं।
क्योंकि सबने सोचा — वो तो पहले ही गिरा हुआ था।”
समाप्त