छाया-पथ
छाया-पथ – एक आधुनिक महानगर की चमक के पीछे छिपी एक अदृश्य दुनिया की रहस्यमयी यात्रा, जहाँ विचारों की छाया असली शरीर से अधिक जीवित होती है।
साल 2025। शहर का नाम – विरुद्धा। आधुनिकतम तकनीक से सुसज्जित, काँच की ऊँची इमारतें, ड्रोन द्वारा संचालित ट्रैफिक व्यवस्था, और मानव जीवन को चलाने वाला एक शक्तिशाली कृत्रिम बुद्धिमत्ता नेटवर्क – संयंत्र।
लेकिन इस व्यवस्था में जो एक चीज़ छुपी थी, वह थी — छाया-पथ।
यह एक डिजिटल नहीं, ना ही आध्यात्मिक — बल्कि मनोवैज्ञानिक फैंटेसी स्तर पर अस्तित्व में आने वाली दुनिया थी। यहाँ मनुष्यों की छायाएं उनके विचारों, भय, और लालसाओं से स्वतः आकार पाती थीं। और धीरे-धीरे, वे छायाएं अपनी मूल आत्मा से अलग होकर जीवित हो जाती थीं।
इसका पहला अनुभव हुआ डॉ. ईशान वर्मा को — एक न्यूरोसाइंटिस्ट जिसने हाल ही में मस्तिष्क की लहरों को ग्राफिक रूप में प्रोजेक्ट करने वाला उपकरण इजात किया था — मानचित्र-मन।
एक रात, जब उसने स्वयं पर परीक्षण किया, स्क्रीन पर उसकी परछाईं धीरे-धीरे सरकती हुई स्क्रीन से बाहर निकल आई।
वह स्थिर खड़ा रह गया।
“मैं तुझसे बेहतर हूँ,” वह छाया बोली। “मैं तुझसे मुक्त हूँ।”
उस दिन से ईशान ने अपने आस-पास की चीज़ों को बदलते देखा — कॉफ़ी मग जो बिना हाथ लगाये उलटते, शब्द जो उसे बिना कहे सुनाई देते, और एक खास कोड जो हर स्क्रीन पर चमकता —
“CTRL-V”।
यह कोई सामान्य कोड नहीं था। यह संकेत था कि **छायाएं अब असली संसार की नकल करना नहीं, बल्कि उसे वास्तविकता में बदलना चाहती थीं।
वह पहुँचा शहर के सबसे पुराने हिस्से में — विरुद्धा की भूलभुलैया, जहाँ इंटरनेट नहीं चलता, और धूप की रोशनी सीधी नहीं पहुँचती।
वहाँ उसका सामना हुआ एक रहस्यमयी स्त्री से — तृषा, जो वर्षों से छाया-पथ की एक निवासी थी।
“मैं भी एक छाया हूँ,” उसने कहा। “पर मैंने अपने मनुष्य को पीछे छोड़ दिया है। और अब मैं उसकी जगह ले चुकी हूँ।”
ईशान डर गया। लेकिन अब वह रुक नहीं सकता था। उसे संयंत्र तक पहुँचना था, जो इस छाया-पथ को जन्म देने वाले त्रैतीय न्यूरॉन्ग्रिड को संचालित करता था।
संयंत्र के गर्भ में छिपा था एक कक्ष — शून्य क्षेत्र, जहाँ विचार और स्मृति के बीच कोई भेद नहीं था। और वहीं बैठी थी उसकी ही दूसरी छाया —
वह जो उसके भीतर के पश्चाताप, लालच और अपूर्ण इच्छाओं से बनी थी।
“अगर तू मुझे मिटाएगा, तू भी मिट जाएगा,” छाया बोली।
“तो मिट जाना ही ठीक है। अधूरे और भयभीत जीवन से कहीं बेहतर।”
ईशान ने खुद को उसी कुर्सी से बाँध दिया, जिससे छायाएं जन्म लेती थीं, और संयंत्र को ओवरलोड कर दिया। विद्युत झटका हुआ।
एक गूँज…
एक विस्फोट…
और फिर — मौन।
अगले दिन विरुद्धा की मशीनें बंद हो गईं। हर छवि, हर फीड, हर स्क्रीन पर सिर्फ एक वाक्य चमक रहा था —
“तुम्हारी छाया लौट गई है। अब तुम मुक्त हो।”
लोगों ने चैन की साँस ली। लेकिन तृषा? वह कहीं नहीं थी।
क्योंकि एक बात सब भूल गए —
कभी-कभी छाया लौटकर नहीं जाती, वह केवल नया चेहरा पहन लेती है।
समाप्त।