छाया हवेली का रहस्य
संक्षेप:
यह कहानी एक वीरान और बदनाम हवेली “छाया हवेली” के इर्द-गिर्द घूमती है, जहाँ वर्षों से कोई नहीं गया। जब एक युवा पत्रकार रचना, एक रहस्यमय पत्र के संकेत पर उस हवेली में पहुँचती है, तो वह एक ऐसे रहस्य से पर्दा उठाती है जो मौत और आत्माओं की दुनिया से जुड़ा है। हवेली के सन्नाटे में छुपा है एक ऐसा सच जो किसी के सामने नहीं आना चाहिए था… लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है।
कहानी:
शहर के बाहरी इलाके में एक घने जंगल के बीच एक पुरानी हवेली खंडहर जैसी खड़ी थी — “छाया हवेली”। कहते हैं, वहां रात में लोगों की चीखें सुनाई देती हैं, पर कोई नहीं जानता कि वहां सच में क्या हुआ था।
रचना, एक निर्भीक और जिज्ञासु पत्रकार, हमेशा ऐसे रहस्यों के पीछे भागती थी जिन्हें कोई हाथ नहीं लगाता। एक दिन उसे एक बिना नाम वाला लिफ़ाफ़ा मिला। उस लिफ़ाफ़े में एक तस्वीर थी — एक युवती की जिसकी आँखों में डर जम गया था, और पीछे हवेली का वही दरवाज़ा। नीचे लिखा था: “सच बाहर मत लाना, वो जाग जाएगी!”
रचना ने यह चुनौती समझी और उसी शाम कैमरा, टॉर्च और अपनी डायरी लेकर निकल पड़ी हवेली की ओर।
जब वह हवेली पहुँची तो अजीब सी खामोशी उसके स्वागत में थी। दरवाज़ा धीरे से चरचराता हुआ खुला, मानो किसी ने भीतर आने की इजाज़त दी हो। अंदर हर चीज़ पर धूल की मोटी परत थी, पर ऐसा लगा जैसे कोई हर रोज़ सफाई करता हो — दीवारों पर ताज़ा खून के छींटे, और जमीन पर ताज़ा कदमों के निशान।
रचना ने हवेली के हर कमरे की तस्वीरें लीं, लेकिन एक कमरा बंद था — ऊँचाई पर बना एक कोठरीनुमा कमरा, जिसमें जाने के लिए लकड़ी की पुरानी सीढ़ी चढ़नी पड़ती थी। जैसे ही वह ऊपर चढ़ी, हवा अचानक भारी हो गई।
कमरे का दरवाज़ा खुलते ही एक तेज़ ठंडी हवा ने उसे पीछे धकेल दिया, लेकिन वह हटी नहीं। कमरे में एक पुराना झूला था जो खुद-ब-खुद हिल रहा था। उसके पास एक लकड़ी की अलमारी थी, जिसकी दराज अधखुली थी। रचना ने झिझकते हुए दराज खोली और अंदर एक डायरी मिली — “गौरांगी की डायरी”।
डायरी के पहले पन्ने पर लिखा था:
“जो भी इसे पढ़े, वो जान ले… मैं मरी नहीं हूँ, मैं यहाँ क़ैद हूँ।”
रचना के रोंगटे खड़े हो गए। पन्ना पलटते ही हवा और तेज़ हो गई, और झूले से एक चीख गूँजने लगी — एक स्त्री की करुण पुकार।
“मुझे निकालो… मुझे इस चुप्पी से बाहर निकालो…”
रचना के हाथ काँपने लगे लेकिन उसने पढ़ना जारी रखा। गौरांगी हवेली के मालिक की बेटी थी। जब वह 19 वर्ष की थी, तब हवेली में पूजा के नाम पर एक तांत्रिक आया, जिसने उसे बलि देने की कोशिश की। पर गौरांगी ने आत्महत्या कर ली, और उसी दिन से उसकी आत्मा इस हवेली में क़ैद हो गई।
रचना जैसे-जैसे डायरी पढ़ती गई, हवेली के कमरे बदलने लगे। दीवारों पर बनी पुरानी पेंटिंग्स में हलचल होने लगी। उसमें गौरांगी की आँखें हिलने लगीं।
अचानक झूला बंद हो गया। झूले के पास एक साया खड़ा था — लहराते बाल, सफेद लहंगा, और आँखें जिनमें गहराई नहीं, सिर्फ़ शून्यता थी।
“तुमने पढ़ा… अब तुमसे उम्मीद है…” — आवाज़ गौरांगी की थी।
रचना के हाथ से डायरी गिर गई। गौरांगी का साया अब पास आ चुका था। उसने रचना के हाथ में कुछ रखा — एक लोहे की चाबी।
“इससे तहखाने का द्वार खुलेगा… वहीं मेरा सच दफ़्न है…”
रचना ने डर के बावजूद तहखाने की ओर बढ़ना शुरू किया। जैसे ही उसने चाबी घुमाई, ज़मीन हिली और एक अंधेरा सुरंग खुल गया। सुरंग में उतरते ही उसे चारों तरफ़ दीवारों में नाखूनों के निशान दिखे, और उनमें खून की ताज़ी गंध।
अंत में उसे मिला एक कंकाल — हाथ में जंजीरें और गले में वही हार जो तस्वीर में दिखा था। एक कोने में पड़ा था तांत्रिक का शव — गला कटा हुआ, लेकिन चेहरा अब भी डरावना था।
रचना समझ चुकी थी — गौरांगी ने मरने के बाद भी बदला लिया था। लेकिन उसकी आत्मा अब भी क़ैद थी।
रचना ने अपने कैमरे से सब कुछ रिकॉर्ड किया और जैसे ही बाहर निकलने लगी, एक अंतिम आवाज़ आई:
“सच बाहर मत ले जाना… नहीं तो मैं फिर जाग जाऊँगी…”
रचना ने हवेली से बाहर निकलते ही डायरी और कैमरा जलाने का निर्णय लिया, लेकिन शहर लौटते ही उसने अपनी रिपोर्ट प्रकाशित कर दी।
रात के ठीक 12 बजे उसके घर की लाइट बंद हुई। शीशे पर कुछ लिखा था —
“तूने चेतावनी नहीं मानी…”
सुबह अखबार में एक खबर थी:
“प्रसिद्ध पत्रकार रचना अपने फ्लैट में रहस्यमय हालात में मृत पाई गई — चेहरे पर वही डर जैसा उस तस्वीर में था…”
छाया हवेली अब फिर वीरान थी…
पर हर रात, कोई और पत्र पहुँचता है…
कोई और रिपोर्टर खिंचता है…
क्योंकि हवेली अब अपने रहस्य खुद चुनती है।
अंत।