सूर्यकेतु का छल-लोक
सूर्यकेतु का छल-लोक एक नगरी, जहाँ हर चेहरे पर थी झूठी हँसी की छटा, स्मृति-लोप ने हर नागरिक को बना दिया था एक पुतला। जब सब कुछ था एक भयंकर भ्रम, एक विकृत जाल, सूर्यकेतु ने तोड़ा था छल-तंत्र का वह काला पाश। सूर्यकेतु ने अपने प्रज्ञा-कवच के न्यूरल-विश्लेषक को सक्रिय किया। उसकी दृष्टि के सामने 'माया-नगर' का विशाल, चमकदार शहर फैला हुआ था, जो एक विशाल, पारदर्शी क्वांटम-जाल के...