जलप्रलय के योद्धा
संक्षिप्त परिचय
वर्ष २०६८ — जलवायु परिवर्तन ने पृथ्वी को बदल दिया है। समुद्र तटवर्ती शहर जलमग्न हो चुके हैं, और हिमनदों के पिघलने से संपूर्ण विश्व में जलस्तर नियंत्रण से बाहर हो चुका है। किंतु यह आपदा केवल प्रकृति की देन नहीं। एक रहस्यमयी निगम — हाईड्रोक्स ग्रुप, गुप्त तकनीकों से समुद्र की लहरों को नियंत्रित कर रहा है, और जिनके पास यह तकनीक नहीं, उन्हें नष्ट किया जा रहा है। भारत के पश्चिमी तट पर स्थित एक डूबते शहर धरणीपुर की रक्षा के लिए गठित किया गया है एक गुप्त विशेष दस्ता — जलप्रलय योद्धा। नेतृत्व संभालता है एक अपदस्थ जलविज्ञानी अधिकारी अद्वय राठौड़, जिसके पास है महासागरों की भाषा पढ़ने की दुर्लभ कला। यह गाथा है एक असंभव युद्ध की — समुद्र, विज्ञान और शोषण के विरुद्ध; साहस और विश्वास की वह अंतहीन यात्रा जो आने वाली पीढ़ियों के लिए साँस का कारण बनेगी।
भाग १: डूबता धरणीपुर
धरणीपुर, महाराष्ट्र की सीमाओं पर स्थित एक समृद्ध विज्ञाननगर हुआ करता था। एक समय था जब इसे “भारत का जलशोध केंद्र” कहा जाता था। यहाँ पर महासागरों से जल उठाकर उसे मीठे जल में परिवर्तित करने की प्रणाली विकसित की गई थी। परंतु अब वहाँ चारों ओर पानी ही पानी था — पर वह पानी जीवन नहीं, मृत्यु लेकर आया था।
प्रतिदिन नगर की गलियों में एक-एक मुहल्ला जल में समाता जा रहा था। सरकार ने नागरिकों को पलायन के आदेश दे दिए, परंतु कुछ लोग अभी भी वहाँ जमे थे — क्योंकि वे जानते थे कि भागना समाधान नहीं।
नगर के पुराने जलसंयंत्र के नियंत्रणकक्ष में छुपकर बैठा था एक व्यक्ति — अद्वय राठौड़, जो एक दशक पूर्व इस जलसंयंत्र का प्रमुख हुआ करता था, परंतु एक दुर्घटना के बाद उसे ‘राजद्रोही वैज्ञानिक’ घोषित कर सेवा से हटाया गया था।
वह जानता था — यह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं, यह मानव द्वारा रची गई जल-षड्यंत्र है।
भाग २: अद्वय की वापसी और टीम का गठन
जब लगातार चार तटीय शहर जल में समा गए, और समुद्र के नीचे किसी कृत्रिम हलचल की पुष्टि हुई, तब केंद्रीय सरकार ने एक आपात बैठक में ‘जल-उपद्रव’ की बात मानी। परंतु सच्चाई तक पहुँचने के लिए उन्हें चाहिए था एक ऐसा व्यक्ति जो समुद्र की गहराइयों को सुन सके।
“अद्वय राठौड़ को वापस लाओ,” यह आदेश था।
जब अधिकारी अद्वय से मिलने पहुँचे, वह समुद्र के किनारे एक यंत्र से पानी की लहरों का संगीत सुन रहा था।
“समुद्र शोर नहीं करता, वह चेतावनी देता है,” अद्वय ने कहा।
“तुमने बहुत देर कर दी।”
परंतु वह तैयार था, एक शर्त पर —
“इस बार मुझे अपनी टीम स्वयं चुननी होगी, बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के।”
सरकार सहमत हुई।
अद्वय ने चुना —
आकृति सिंह — एक समंदर गोताखोर, जो महासागरीय गुफाओं में सटीकता से काम करती थी।
शौर्य मेहता — पूर्व नौसेना कमांडो, जल युद्ध विशेषज्ञ।
इरा नांदेश्वर — उपग्रह प्रणाली और सागर-मानचित्रण तकनीकीविद्।
विशाल धामणे — एक पूर्व पर्यावरण पत्रकार, जो अब गुप्त सूचनाओं का संग्राहक था।
टीम को नाम मिला — जलप्रलय योद्धा।
भाग ३: हाईड्रोक्स ग्रुप का रहस्य
विशाल ने सूचना दी कि एक वैश्विक निगम ‘हाईड्रोक्स ग्रुप’ समुद्र की तरंगों को नियंत्रित करने वाली तकनीक विकसित कर चुका है, जिसे वेव-कोर कहा जाता है। यह एक विशाल चुम्बकीय प्रणाली है जो समुद्र की जड़ से तरंगों को निर्देशित कर सकती है।
यह सिस्टम भारत की पश्चिमी सीमा से मात्र ४२ किलोमीटर दूर, समंदर की गहराई में स्थापित किया गया था — एक अज्ञात ‘ब्लैक ज़ोन’ में, जहाँ कोई भी नौसैनिक उपग्रह काम नहीं करता।
“जब तक वेव-कोर सक्रिय रहेगा, समुद्र का कोई भाग सुरक्षित नहीं,” इरा ने स्पष्ट किया।
“हमें उसे ढूँढकर निष्क्रिय करना होगा।”
पर वह एक सीधा युद्ध नहीं था — यह एक जल-अभियान था, जिसमें मृत्यु कहीं भी गहराई से उठ सकती थी।
भाग ४: सागर-मार्ग की खतरनाक यात्रा
अभियान का आरंभ हुआ ‘जल-प्रवेश यान’ से — एक विशेष जलयान जिसे अद्वय ने वर्षों पहले स्वयं डिज़ाइन किया था। यह पाँच हफ्तों के अंदर समुद्र की सबसे कठिन परतों में भी प्रवेश कर सकता था।
पाँचों सदस्य उस जलयान में बैठ समुद्र की ओर बढ़े। पहले कुछ घंटे शांत थे — फिर ‘ब्लैक ज़ोन’ में प्रवेश करते ही यान के सभी दिशा-निर्देशक बंद हो गए। केवल अद्वय का पुराना ध्वनि-तरंग सुनावक कार्य कर रहा था।
उसने लहरों के सुरों से मार्ग की दिशा पहचानी —
“दक्षिण-पश्चिम की लहरें टकराकर लौट रही हैं — वहाँ कुछ अवरोध है।”
आकृति ने गोता लगाकर समुद्र की सतह के नीचे एक कृत्रिम सुरंग खोजी, जिससे जाकर वे गहराई में छिपे केंद्र की ओर पहुँचे।
भाग ५: वेव-कोर का घातक केंद्र
गहराई में उतरते ही उन्हें दिखा एक चमचमाता नीला केंद्र —
वेव-कोर, जो न केवल जल तरंगों को नियंत्रित कर रहा था, बल्कि महासागरीय तापमान में कृत्रिम वृद्धि कर रहा था।
उसके चारों ओर स्वचालित हथियार, बिजली से चलने वाले सर्प और ऊर्जा-कवच से सुरक्षित द्वार था।
शौर्य ने अपने जल-युद्ध कौशल से कई सुरक्षाओं को भेद डाला। इरा ने उपग्रह दिशा का पुनः संपर्क स्थापित किया। आकृति ने बाहर के जल-दबाव को यंत्रों द्वारा नियंत्रित किया।
लेकिन जब अद्वय वेव-कोर तक पहुँचा, तब देखा कि उसका कोर किसी जीवित मस्तिष्क से संचालित हो रहा था — मानव-मशीन संलयन का एक भयावह प्रयोग।
विशाल के अनुसार, हाईड्रोक्स ग्रुप अपहृत वैज्ञानिकों का उपयोग कर यह तकनीक चला रहा था। अब वहाँ बंद थे बीस वैज्ञानिक।
“हम न केवल सिस्टम को नष्ट करेंगे, इन्हें भी बचाएंगे,” अद्वय ने संकल्प लिया।
भाग ६: प्रलय और पुनर्जन्म
दल ने एक यंत्र तैयार किया — जल-शून्य तरंग — जो वेव-कोर की ऊर्जा को उल्टा फेंक सकती थी, परंतु उसे चालू करने के लिए किसी को उस यंत्र को भीतर से सक्रिय करना था, और फिर वापस आना संभव नहीं था।
शौर्य ने स्वयं को आगे बढ़ाया, पर अद्वय ने उसे रोका —
“जिसने यह युद्ध शुरू किया, उसका दायित्व है उसे समाप्त करना।”
अद्वय भीतर गया, वैज्ञानिकों को मुक्त किया और यंत्र को सक्रिय किया। जैसे ही तरंग फैलनी शुरू हुई, वेव-कोर का प्रकाश मंद पड़ने लगा, और चारों ओर का जल स्तर नीचे उतरने लगा।
अंततः एक महाविस्फोट हुआ, और समुद्र शांत हो गया।
दल अद्वय को खोजता रहा, पर वह कहीं नहीं मिला। समुद्र उसे अपने भीतर ले गया।
भाग ७: बाद की दुनिया
धरणीपुर अब फिर से उभर रहा था। जल घट रहा था, और समुद्र पहले जैसा शांत होने लगा।
इरा, आकृति, शौर्य और विशाल ने मिलकर जलसंरक्षण एवं समुद्र नियंत्रण संस्थान की स्थापना की, जिसका नाम रखा गया — “अद्वय समुद्र विज्ञान केंद्र”।
सरकार ने अद्वय को मरणोपरांत ‘भारत जलवीर सम्मान’ से सम्मानित किया।
और फिर एक दिन, महासागर के बीच एक पुराना ध्वनि-संकेत मिला — अद्वय की आवाज़ —
“जब भी समुद्र फिर चीखेगा, मैं लौट आऊँगा। जल मेरा पथ है, और पृथ्वी मेरा वचन।”
अंतिम समापन
‘जलप्रलय के योद्धा’ केवल एक विज्ञान कथा नहीं, यह मनुष्य की उस क्षमता का चित्रण है जो विपत्तियों में भी उम्मीद खोजता है। यह उन लोगों की गाथा है जो समुद्र की क्रूरता में भी जीवन की राह निकाल लेते हैं। और यह संदेश है आने वाली पीढ़ियों के लिए — कि जो प्रकृति को मित्र समझते हैं, वही अंततः उसकी गहराइयों से लौट पाते हैं।
समाप्त।