झूठी मुस्कानें
संक्षिप्त सारांश:
यह कहानी है ‘रिया वर्मा’ की — एक इन्फ्लुएंसर, लाइफ कोच और मोटिवेशनल स्पीकर, जिसकी हर सोशल मीडिया पोस्ट में मुस्कानें, पॉज़िटिविटी और सफलता झलकती है। लाखों लोग उसे फॉलो करते हैं, लेकिन खुद रिया अपने भीतर एक खोखलेपन से जूझ रही होती है। उसका हर वीडियो, हर सलाह, हर शब्द दिखावे की दीवार पर टंगा होता है, जिसे वह मजबूरी में मुस्कराकर निभा रही होती है। लेकिन जब एक अजनबी लड़की उसे एक बेहद निजी सवाल भेजती है — “क्या आप वाकई खुश हैं?” — तब वह खुद की दुनिया को नए सिरे से देखती है। यह कहानी उस दोहरे जीवन की है, जो आज के सोशल मीडिया युग में कई लोग जी रहे हैं। और यह सिखाती है कि सच्चाई की ज़मीन चाहे नंगी हो, पर वहाँ खड़े होने का संतोष दिखावे की महलनुमा ऊँचाई से कहीं गहरा होता है।
कहानी:
रिया वर्मा, उम्र 31, मुंबई में रहने वाली एक जानी-मानी सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर थी।
उसका इंस्टाग्राम खाता रोज़ हज़ारों नई फॉलोअर्स को जोड़ता था। सुंदर वेशभूषा, ध्यान से चुनी गईं लाइटिंग्स, हर सुबह की मोटिवेशनल रील — “सकारात्मक सोचो”, “जीवन में मुस्कराओ”, “जो बीत गया, वह सिखाता है” — उसके शब्द थे।
कंपनियाँ उसे अपने ब्रांड्स का चेहरा बनाती थीं। किताबें छप चुकी थीं, इंटरव्यूज़ हो चुके थे, TEDx टॉक तक दे चुकी थी।
लेकिन इन सबके बीच, रिया के कमरे में एक कोना था — जहाँ उसका असली चेहरा रहता था।
हर दिन सुबह 5 बजे उठकर वह अपनी स्क्रिप्ट बनाती थी —
“आज कैसे मुस्कराना है?”
“कैसी बात कहनी है जो लोगों को लगे कि मेरी ज़िंदगी परफेक्ट है?”
असलियत यह थी कि रिया के जीवन में कोई दोस्त नहीं था, कोई परिवार नहीं था जिससे वह खुलकर बात कर सके। कॉलेज में एक दर्दनाक घटना के बाद उसने खुद को “ताक़तवर” दिखाने की ठान ली थी — और वही ताक़त अब उसका बोझ बन चुकी थी।
उसकी माँ की मृत्यु के बाद जब रिया रोई भी, तो वह रोना भी कैमरे के सामने रिकॉर्ड किया गया — “माँ के बिना भी मुस्कराना सीखिए।”
उस दिन वह रोई नहीं, उसने ‘कंटेंट’ बनाया।
एक दिन, उसके इंस्टाग्राम पर एक निजी संदेश आया —
“मैम, मैं 17 साल की हूँ, और मैं डिप्रेशन से जूझ रही हूँ। सबको लगता है मैं खुश हूँ क्योंकि मैं हँसती हूँ। पर अंदर से सब खत्म हो रहा है। जब मैं आपकी प्रोफाइल देखती हूँ, तो सोचती हूँ — क्या आप सच में खुश हैं?”
रिया कई पलों तक स्क्रीन देखती रही।
क्या वह सच में खुश थी?
कितने समय से उसने खुद से यह सवाल नहीं पूछा था।
वह खामोश हो गई। उस रात उसने कुछ पोस्ट नहीं किया। पहली बार उसके प्रोफाइल पर ‘साइलेंस’ था।
अगली सुबह वह कैमरे के सामने बैठी — बिना मेकअप, बिना लाइट, बिना स्क्रिप्ट।
उसने कैमरा ऑन किया और कहा —
“आज मैं झूठ नहीं बोलूँगी।”
वह बोली —
“मैं एक मोटिवेशनल स्पीकर हूँ, पर मैं खुद कई बार टूटी हूँ। मैं हर दिन मुस्कराती हूँ, पर अंदर से कई बार ख़ाली हूँ। मैं हज़ारों लोगों को सलाह देती हूँ, पर खुद से बात करना भूल गई हूँ।”
उसका वीडियो वायरल हो गया — लेकिन इस बार वजह उसकी सुंदरता या शब्द नहीं थे, बल्कि उसकी सच्चाई थी।
लोगों ने कहा —
“आपने पहली बार दिल से बात की।”
“अब आप हमारी तरह लगती हैं।”
“अब आप इंसान लगती हैं, आदर्श नहीं।”
उस लड़की ने भी फिर एक जवाब भेजा —
“मैम, आपने आज मेरी जान बचा ली। मुझे अब अकेला महसूस नहीं होता।”
उसके बाद, रिया ने एक नया सफ़र शुरू किया।
उसने अपने अकाउंट का नाम बदल दिया — “Real Riya”।
अब वह सिर्फ़ सुंदर रील्स नहीं, सच्चे अनुभव साझा करती थी — कभी वह थकी हुई होती, कभी चुप, कभी गुस्से में — और लोग उससे ज़्यादा जुड़ने लगे।
उसने ऑनलाइन एक ‘सपोर्ट सर्कल’ शुरू किया — जहाँ हर कोई एक-दूसरे से बिना मुखौटे बात कर सकता था।
रिया को अब ब्रांड्स कम मिलते थे, लेकिन दोस्त ज़्यादा मिलते थे।
उसने अपने जीवन को परफेक्ट दिखाना छोड़ दिया था — अब वह जीवन को बस जिया करती थी।
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि मुस्कराहटें दिखाने के लिए नहीं, महसूस करने के लिए होती हैं। सोशल मीडिया की दुनिया में हम बार-बार दूसरों की ज़िंदगी से तुलना करते हैं, बिना यह जाने कि उनके पीछे कितनी अधूरी कहानियाँ हैं। सच्ची ताक़त दूसरों को खुश दिखाने में नहीं, बल्कि खुद से ईमानदार रहने में है। और जब हम अपने भीतर झाँकना सीख लेते हैं, तब ही हम किसी और को सच्चा सहारा दे सकते हैं।
समाप्त
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