झूठ का तीसरा क़दम
संक्षिप्त परिचय
यह कहानी है एक अकेली विधवा महिला की रहस्यमय मृत्यु,
जिसे सभी ‘स्वाभाविक’ कह रहे हैं,
लेकिन एक निजी जासूस को यक़ीन है —
यह एक “चालाक हत्या” है,
जिसका मक़सद सिर्फ़ पैसा नहीं,
बल्कि एक पुराने अपमान का बदला है।
हर पात्र सच बोलता है —
लेकिन सभी ने एक सच छुपा रखा है।
पहला दृश्य – खिड़की जो खुली थी, पर कोई आया नहीं
दिल्ली के शांत किनारे बसे महरौली के प्राचीन कोठी क्षेत्र में एक सुबह ६:३० बजे एक हाउसकीपर ने पुलिस को फ़ोन किया —
“मैडम बोल नहीं रही हैं… लगता है नींद में ही चली गईं।”
वह महिला थीं वसुधा वर्मा, उम्र लगभग ६२ वर्ष,
जो पिछले बारह वर्षों से अकेली रह रही थीं।
पति का निधन एक दशक पूर्व हो चुका था, और एकमात्र बेटी नैना बंगलौर में काम कर रही थी।
पुलिस जब पहुँची, तो वसुधा बिस्तर पर चुपचाप पड़ी थीं —
चेहरे पर कोई तनाव नहीं, कमरे में कोई संघर्ष नहीं,
सिर्फ़ तकिये के पास एक टूटी हुई चूड़ी,
और हाथ में एक हल्की-सी नीली छाया।
डॉक्टर ने कहा — हृदयगति रुक गई होगी।
लेकिन आरव मेहरा, एक निजी जासूस जो पहले दिल्ली पुलिस में था,
अब मामलों की परछाइयों में काम करता है —
उसे यह मौत इतनी सरल नहीं लगी।
दूसरा दृश्य – एक दरवाज़ा जो बंद नहीं होता
आरव को यह केस वसुधा की पुरानी मित्र और वकील माला रस्तोगी ने सौंपा था।
माला का कहना था कि वसुधा की मृत्यु स्वाभाविक नहीं थी —
क्योंकि दो दिन पहले ही उन्होंने अपनी वसीयत बदली थी,
जिसमें बेटी नैना को सारी संपत्ति की जगह केवल २० प्रतिशत हिस्सा दिया गया,
और शेष संपत्ति एक व्यक्ति के नाम कर दी गई —
निखिल सेन, जो वसुधा का ‘देखभाल करने वाला पड़ोसी’ कहलाता था।
निखिल की उम्र वसुधा से तीस वर्ष कम थी —
परंतु वह पिछले चार वर्षों से नियमित रूप से उनके घर आता था,
उन्हें दवाइयाँ दिलवाता, बिजली के बिल भरता, और त्योहारों पर साथ तस्वीरें भी खिंचवाता।
वसुधा ने कई बार कहा था — “निखिल मेरे बेटे जैसा है।”
लेकिन माला ने देखा था —
वसुधा के स्वभाव में पिछले कुछ महीनों में एक डर आ गया था।
वह अब मस्ती से बात नहीं करती थीं।
उनकी आँखों में हमेशा एक सावधानी-सी होती थी।
और मृत्यु से एक सप्ताह पहले उन्होंने माला से कहा था —
“अगर मुझे कुछ हो जाए, तो मेरे कमरे की खिड़की को एक बार ज़रूर देखना।”
तीसरा दृश्य – उस रात की शांति जो चिल्ला रही थी
आरव ने उस कमरे की जाँच की।
दरवाज़ा भीतर से बंद था।
कोई खिड़की टूटी नहीं थी।
बाहर का गेट भी बंद।
सीसीटीवी फुटेज में भी कोई व्यक्ति नज़र नहीं आया।
परंतु जब आरव ने वसुधा के कमरे की खिड़की खोली,
तो पाया कि लोहे की जाली के पीछे दीवार पर बाहर की ओर एक छोटा निशान था —
एक चमकता-सा रसायन, जो केवल पराबैंगनी प्रकाश में दिखाई देता था।
यह कोई साधारण दवा नहीं थी —
बल्कि वह निशान पोटेशियम सायनाइड युक्त पदार्थ का संकेत था,
जो एक निश्चित तापमान में वाष्पित होकर सांस से शरीर में प्रवेश कर सकता था।
दूसरे शब्दों में — वसुधा को ज़हर दिया गया था,
पर यह ज़हर उन्हें पीने को नहीं दिया गया… बल्कि साँसों से दिया गया।
चौथा दृश्य – सच जो सबसे ज़्यादा शांत होता है
अब सवाल था —
कौन? क्यों? और कैसे?
निखिल सेन ने कहा —
“मैं तो माँ जैसा मानता था उन्हें।
उन्होंने ही कहा था कि बेटी तो दूर चली गई है,
तुम ही मेरा सहारा हो।”
परंतु आरव ने एक पुराना फ़ोन रिकवर किया,
जो वसुधा ने उपयोग करना बंद कर दिया था —
उसमें एक रिकॉर्डिंग थी।
“निखिल, मुझे डर लगने लगा है।
मैंने तुम्हारे इरादों को अब समझा है।
मैं वसीयत बदल रही हूँ।
तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा।”
आरव समझ गया —
निखिल जान चुका था कि संपत्ति अब उसे नहीं मिलने वाली।
इसलिए उसने वसीयत बदलने से पहले ही
एक ऐसा ‘दुर्घटनावश’ ज़हर रचा,
जो कभी पकड़ में न आता —
यदि वसुधा ने संकेत न छोड़े होते।
पाँचवां दृश्य – बेटी जो देरी से आई
जब नैना को माँ की मौत की ख़बर मिली,
तो उसने उड़ान पकड़ी।
वह रोई नहीं,
बस स्तब्ध रही।
और बोली —
“माँ को हमेशा डर था कि वो जिनसे प्यार करती हैं, वही उन्हें धोखा देंगे।”
नैना ने माँ से कई बार कहा था कि वो उनके साथ बंगलौर चलें —
पर माँ ने हर बार मना कर दिया।
अब उसे समझ आया —
माँ अकेली नहीं थीं,
वो फँसी हुई थीं।
अंतिम दृश्य – झूठ का तीसरा क़दम
निखिल को सबूतों के आधार पर गिरफ़्तार किया गया।
वह चुप रहा —
कोई जवाब नहीं दिया।
मीडिया ने इसे “गोल्ड डिगर हत्या मामला” कहा।
परंतु आरव की डायरी में आख़िरी पंक्ति थी:
“हर झूठ के तीन क़दम होते हैं —
पहला, विश्वास।
दूसरा, लाभ।
और तीसरा, हत्या।
लेकिन हर झूठ को रोकने के लिए ज़रूरी है —
कोई एक चुप न रहे।”
समाप्त