जीवंत कला
जीवंत कला एक अहंकारी मूर्तिकार एक रहस्यमयी 'जीवंत मृण्मय' की तलाश में निकलता है, जिससे वह अपनी कला को अमर बना सके। उसकी यात्रा उसे एक क्रूर राजा के राज्य में ले जाती है, जहाँ एक नेत्रहीन कुम्हार उसे सिखाता है कि सच्ची कला और जीवन का सार मिट्टी में नहीं, बल्कि उसे छूने वाले हाथों की करुणा और हृदय की पवित्रता में निहित है। पाषाणपुर का गर्व बहुत समय...