तिमिरशक्ति का उदय
वायुमंत का सामना एक ऐसी अदृश्य शक्ति से होता है जो प्रकाश को निगलने के लिए समय और अंतरिक्ष दोनों को उलटने पर तुली है। यह कथा एक विचित्र अंतरिक्ष छाया की है, जो ऊर्जा को खा जाती है और उसकी प्यास कभी खत्म नहीं होती। वायुमंत को न केवल इस शक्ति का रहस्य जानना है, बल्कि उसे ब्रह्मांड से मिटाना भी है — परंतु इसकी कीमत उसकी आत्मा हो सकती है।
तिमिरशक्ति का उदय: वर्ष 3082। पृथ्वी अब पांच अंतरिक्ष मंडलों से सीधे जुड़ चुकी है। ‘भाअअंस’ यानी भारतीय अंतर्ग्रह अनुसंधान परिषद ने ‘अद्वय झरोखा’ नामक नई अंतरिक्ष दृष्टि प्रणाली तैयार की है जो केवल गुरुत्वीय कंपन और अदृश्य स्पंदनों को पकड़ सकती है।
एक दिन, अचानक, सभी झरोखाओं में एक अजीब संकेत दिखाई देता है — एक ऐसा क्षेत्र जहाँ कोई प्रकाश नहीं है, परंतु वह स्थिर भी नहीं है। उस क्षेत्र को नाम दिया गया — तिमिर-क्षेत्र। यह क्षेत्र लगातार फैल रहा था, और वहाँ जाने वाले सभी अंतरिक्ष यान बिना किसी संकेत के विलीन हो जाते थे।
भाअअंस ने फैसला लिया — इस रहस्य को सुलझाने और संभावित खतरे को रोकने के लिए केवल एक ही व्यक्ति योग्य है — अंतरिक्ष योद्धा वायुमंत।
वायुमंत की तैयारी
वायुमंत हिमालय के ‘ध्रुव केंद्र’ में गहन ध्यान में लीन था, जहाँ वह शून्य-शक्ति और वैदिक कंपन से अपने शरीर और चेतना को संतुलित कर रहा था। उसके कवच ‘त्रिनेत्र कवच’ को अद्यतन किया गया — अब उसमें तिमिर-विरोधी तरंगे उत्पन्न करने की क्षमता जुड़ चुकी थी। उसकी तलवार ‘सौरद्वीप’ में अब एक नया आयाम था — नाद-आग्नि, जो ध्वनि से आग पैदा कर सकती थी।
उसका यान ‘दीप्तिवाहन’ तैयार था — यह ब्रह्मांड के अंधतम भागों में चलने वाला पहला पूर्ण चेतन यान था, जो चालक के मन और इरादों से संचालित होता था।
तिमिरक्षेत्र में प्रवेश
जैसे ही दीप्तिवाहन तिमिरक्षेत्र के निकट पहुँचा, समस्त उपकरण बंद हो गए। कोई संकेत, कोई प्रकाश नहीं। केवल मौन। केवल अंधकार। वायुमंत ने ध्यानावस्था में जाकर अपने त्रिनेत्र से दिशा पहचानने की कोशिश की, और तभी उसे दिखी एक आकृति — कोई गहरी, तरल जैसी छाया, जो हर ऊर्जा स्रोत को सोख रही थी।
उसने एक शब्द कहा — “मैं तिमिरशक्ति हूँ, जो पहले थी, जब कोई ब्रह्मांड नहीं था। अब जब ऊर्जा फैल चुकी है, मैं उसे पुनः समेटने आई हूँ।”
वायुमंत ने चेतावनी दी —
“प्रकाश जीवन है, और तिमिर केवल विश्राम का नाम है। तू यदि उसे निगलेगी, तो तू जीवन को ही मिटा देगी।”
तिमिरशक्ति हँसी —
“मैं मृत्यु नहीं लाती, मैं ब्रह्मांड की नींद हूँ।”
मानसिक युद्ध का आरंभ
तिमिरशक्ति ने वायुमंत की चेतना को उसके ही भय से भर दिया। उसकी माँ की मृत्यु की स्मृति, उसके पूर्वजों की हार, युद्ध में देखे गए अपनों की चीखें — सबकुछ उसके त्रिनेत्र के सामने जीवित हो उठा।
परंतु वायुमंत ने ‘मौनस्त्रोत’ का पाठ किया — एक वैदिक मन्त्र जो चेतना को स्थिर करता है और स्मृति के तूफानों को समाहित करता है।
अब युद्ध केवल अस्त्रों का नहीं था — यह युद्ध चेतना और छाया का था।
तिमिरशक्ति ने उसके तलवार को सोखने की कोशिश की, लेकिन सौरद्वीप ने नाद-आग्नि उत्पन्न कर दी, जिससे छाया जलने लगी।
पर तिमिरशक्ति समाप्त नहीं हुई। उसने ब्रह्मांड के कणों को उलटकर वायुमंत को समय के प्रारंभ में भेज दिया — जहाँ कुछ भी नहीं था, न आकार, न चेतना।
समय का उलटाव और ब्रह्मिक ज्ञान
वायुमंत ने वहाँ ध्यान लगाया। उसने देखा कि कैसे अंधकार ने ही ऊर्जा को जन्म दिया, और कैसे वह ऊर्जा जब अहंकार में बदली तो विनाश आया। तभी उसे समझ आया — तिमिरशक्ति कोई दुष्ट शक्ति नहीं, बल्कि एक संतुलन की माँग है।
उसे समाप्त नहीं किया जा सकता। उसे केवल उस सीमा तक बाँधा जा सकता है जहाँ वह निर्माण को रोके नहीं।
वायुमंत ने ‘ब्रह्ममुद्रा’ की स्थापना की — एक ऐसा ऊर्जा-मंडल जो तिमिरशक्ति को बंधन नहीं, समर्पण देता है। उसने अपनी चेतना का एक अंश उस मंडल में समर्पित कर दिया — और तिमिरशक्ति वहाँ स्थिर हो गई।
वापसी और मौन
जब वायुमंत वापस आया, उसकी आँखों में अंधकार नहीं, लेकिन गहराई थी। उसके सौरद्वीप में अब एक शून्य चमकता था — एक स्थिरता का चिह्न।
भाअअंस ने पूछा —
“क्या तिमिरशक्ति नष्ट हो गई?”
वह मुस्कराया —
“नहीं। वह अब मेरे भीतर है — जाग्रत नहीं, परंतु उपस्थित। और जब अगली बार ब्रह्मांड असंतुलन में डगमगाएगा, वह फिर जागेगी। तब मैं फिर लौटूँगा।”
यह कथा केवल प्रकाश की विजय नहीं, बल्कि अंधकार की समझ की गाथा है। वायुमंत ने यह साबित किया कि हर शक्ति को पराजित करना आवश्यक नहीं — कभी-कभी उसे केवल स्वीकारना पड़ता है, ताकि ब्रह्मांड संतुलन में रह सके।
समाप्त
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