🔓 भाग 2 – दरवाज़ा फिर खुला
🧩 कहानी का संक्षिप्त सारांश:
लाल हवेली के रहस्य को सुलझाए कई महीने बीत चुके हैं, लेकिन दरवाज़ा की परछाई अभी भी ज़िंदा है। इस बार वह दिल्ली नहीं, रायगढ़ नाम के एक दूर-दराज़ शहर में फिर से प्रकट होता है — एक पुरानी लाइब्रेरी में, जहाँ एक कर्मचारी की रहस्यमयी मौत से सब कुछ शुरू होता है। जब शिवा और सोनिया को रायगढ़ बुलाया जाता है, तो उन्हें अहसास होता है कि यह दरवाज़ा अब केवल परीक्षा नहीं लेता — यह चुनाव करता है।
📖 भाग 1 – रायगढ़ की रहस्यमयी लाइब्रेरी
रायगढ़ की सरकारी लाइब्रेरी में पिछले दस वर्षों से कार्यरत वरिष्ठ कर्मचारी गोविंद पंडित की मौत अचानक एक पुस्तकालय की पुरानी तहखाने में हो जाती है।
मौत का कारण बताया गया – “हृदय गति रुकना”, लेकिन पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट कहती है – “चेहरा भय से विकृत, जैसे उसने कुछ ऐसा देखा जो इंसान की समझ से परे था।”
लाइब्रेरी के प्रबंधक ने दिल्ली संपर्क किया –
“हमें फिर से शिवा की ज़रूरत है। कुछ तो है… जो हमारी समझ से बाहर है। और हाँ, मौत वाली जगह पर एक लाल दरवाज़ा बना हुआ है।”
📖 भाग 2 – रहस्य की पुनरावृत्ति
शिवा और सोनिया रायगढ़ पहुँचे।
लाइब्रेरी बेहद शांत और पुरानी थी।
तहखाने में एक कोना था, जहाँ ईंट की दीवार में एक लाल दरवाज़ा उभरा था — बिल्कुल वैसा ही जैसा दिल्ली की हवेली में था।
“ये दरवाज़ा यहाँ पहले नहीं था,” प्रबंधक ने कहा।
“गोविंद पंडित ने कुछ किताबें हटाईं और पीछे ये मिला। उसी रात उसकी मौत हो गई।”
दरवाज़ा बंद था, लेकिन उसके पास बैठी एक लड़की बड़बड़ा रही थी —
“दरवाज़ा सब जानता है… सब सुनता है… उसने मेरी सोच पढ़ ली थी…”
📖 भाग 3 – गुमनाम किताब
शिवा ने आसपास छानबीन की। तहखाने में रखी किताबों में एक बिना नाम की मोटी पुस्तक मिली।
उसे खोला गया तो उसमें केवल एक ही पंक्ति थी –
“जिसने झूठ बोया है, वह सत्य से भस्म होगा।”
शिवा ने उसे ध्यान से देखा। पन्नों में कुछ और छिपा था –
हर कुछ पन्नों के बाद एक नाम और एक तारीख – सब मृत लोगों के।
और आखिरी नाम?
“शिवा रंजन – ???”
“मेरा नाम?” शिवा चौंका।
“यह दरवाज़ा अब मुझे बुला रहा है…”
📖 भाग 4 – दरवाज़े की परीक्षा
शिवा ने तय किया – “अब इस दरवाज़े से भागना नहीं है। इस बार इसे खत्म करना है।”
वह सोनिया के साथ दरवाज़े के ठीक सामने खड़ा हुआ।
“क्या तू मेरी आत्मा की परीक्षा लेना चाहता है?” शिवा ने धीरे से कहा।
तभी दरवाज़ा खुद से खुल गया।
भीतर ज़मीन नहीं, बल्कि अंधेरे में तैरती एक रहस्यमयी दुनिया थी –
जहाँ हर आवाज़ गूंजती थी, हर स्मृति जीवित थी।
शिवा ने देखा – उसका अतीत… उसकी असफलताएँ… उसके झूठ…
वो क्षण जब उसने एक केस में निर्दोष को अपराधी समझ लिया था…
सोनिया ने उसकी हथेली पकड़ी – “माफ कर दो खुद को। यही दरवाज़ा चाहता है।”
📖 भाग 5 – दरवाज़े का अंतिम युद्ध
जैसे ही शिवा ने अपने भीतर के झूठ को स्वीकार किया, दरवाज़ा जलने लगा।
वह दहाड़ने लगा – जैसे उसके भीतर का रहस्य उसे ही खा रहा हो।
आवाज़ें आईं –
“तुमने सत्य को स्वीकार कर लिया… अब मैं समाप्त होता हूँ…”
दरवाज़ा ज़मीन में समा गया।
लाइब्रेरी का तहखाना सामान्य हो गया।
किताबें अब सामान्य भाषा में थीं, वह गुमनाम पुस्तक भी गायब हो गई।
📖 भाग 6 – एक आखिरी पन्ना
शिवा और सोनिया वापस दिल्ली लौटे।
उनकी मेज़ पर एक पैकेट रखा था — बिना किसी नाम के।
पैकेट में वही गुमनाम पुस्तक थी…
लेकिन अब उसका शीर्षक था:
“दरवाज़ा – भाग 3: अंत नहीं”