दर्पण कोना
सारांश:
मुंबई के एक पुराने रेलवे क्वार्टर में रहने वाली 35 वर्षीय चित्रकार मीरा को एक कोने में रखा टूटा हुआ दर्पण रह-रहकर कुछ दिखाता है — कुछ ऐसा जो सामने नहीं, पर शायद कहीं और घट रहा है। वो दर्पण केवल दृश्य नहीं दिखाता, बल्कि उसे वहाँ खींचता भी है। जब उसके पति और दोस्त एक-एक करके लापता होने लगते हैं, मीरा को एहसास होता है कि यह कोई भ्रम नहीं — बल्कि एक बहुत पुरानी योजना है, जो उसे ही केंद्र बनाकर रची गई है।
कहानी:
स्थान — मुंबई, भारत।
समय — अक्टूबर 2025।
मीरा दत्त, एक स्वतंत्र कलाकार, पिछले कुछ महीनों से खार रेलवे कॉलोनी के एक सस्ते किराए के क्वार्टर में रह रही थी। यह क्वार्टर उसे रेलवे के एक पुराने कर्मचारी से मिला था, जो इसे हमेशा “भूला हुआ घर” कहकर संदर्भित करता था।
मीरा एकांत चाहती थी — उसकी पिछली ज़िंदगी में कुछ ऐसा हुआ था जिससे वह टूट चुकी थी। उसके छोटे भाई की रहस्यमयी मौत, उसकी अधूरी शादी, और उसके बाद हुए मानसिक उपचारों ने उसे समाज से अलग कर दिया था।
लेकिन चित्र बनाना — उसके लिए वही एकमात्र ऐसा जरिया था जिससे वह दुनिया को बयाँ कर सकती थी।
घर की हालत जर्जर थी — छत सीलन भरी, दीवारें पुरानी दरारों से सजी, और कोनों में जाले। लेकिन जिस कोने ने उसका ध्यान खींचा, वह था — ड्राइंग रूम का दक्षिणी कोना।
वहाँ एक पुराना, बिना फ्रेम का, दरक चुका दर्पण रखा था — उसकी सतह इतनी धुंधली कि उसमें चेहरा साफ़ नहीं दिखता था।
मीरा ने सोचा था कि वह उसे अगले दिन हटा देगी। लेकिन रात को वह सपने में वही दर्पण देखती रही — एक अंधेरी गली, एक लड़की जो रो रही थी, और उसी दर्पण में कोई परछाईं जो उसकी ओर इशारा कर रही थी।
सुबह जब वह उठी, उसने पाया कि उसके हाथ में वही चित्र बना हुआ था — जो उसने कभी बनाया ही नहीं था। उस पर नीचे लिखा था —
“वापस मत देखना।”
पहली बार मीरा डर गई।
उसने दर्पण को घर से निकाल फेंकने की कोशिश की — पर जैसे ही वह उसे उठाती, उसकी सांसें रुकने लगतीं, हाथ सुन्न हो जाते, और वह ज़मीन पर गिर जाती।
तभी उसके जीवन में दो लोग फिर से आए —
विनय, उसका पुराना मंगेतर, जो अचानक सात साल बाद लौटा, और
अनिकेत, उसका करीबी दोस्त, जो मनोविज्ञान में शोध कर रहा था।
मीरा ने दोनों को अपने अनुभवों के बारे में बताया, और तीनों ने मिलकर दर्पण के पीछे की सच्चाई जानने का फैसला किया।
अनिकेत ने बताया —
“इस कॉलोनी में सालों पहले एक हत्या हुई थी। एक रेलवे इंजीनियर ने अपनी पत्नी को मारकर खुदकुशी कर ली थी — पर मरने से पहले उसने अपनी पत्नी की आत्मा को इसी दर्पण में बंद कर दिया था। कहते हैं, वह पत्नी बहुत सुंदर थी, पर उसे एक चित्रकार से प्यार हो गया था।”
मीरा ने पूछा — “कौन था वो चित्रकार?”
अनिकेत चुप रहा।
उस रात विनय गायब हो गया।
उसका फोन, पर्स, और कपड़े वैसे ही कमरे में पड़े थे — पर वह खुद नहीं था।
मीरा टूट गई। पुलिस ने मामला दर्ज किया, पर कोई सुराग नहीं मिला।
अगली रात, मीरा को दर्पण में विनय दिखा — वह चिल्ला रहा था, भाग रहा था, किसी से छिप रहा था — लेकिन जो चीज़ उसका पीछा कर रही थी, वह इंसान नहीं थी।
मीरा ने दर्पण को देखा और आवाज़ आई —
“चित्रकारों को कभी प्रेम नहीं करना चाहिए।”
अब मीरा को समझ आ गया कि यह दर्पण केवल अतीत नहीं, वर्तमान और भविष्य की चेतना से भी जुड़ा है।
और यह दर्पण उसे ही पुकार रहा था।
अगले कुछ दिनों में अनिकेत ने एक किताब खोजी — ‘विलीन आत्माओं के प्रतीक’ — जिसमें लिखा था कि कुछ दर्पण केवल परछाइयाँ नहीं दिखाते, बल्कि उन चेतनाओं को पकड़ते हैं जो अधूरी मृत्यु से भरी होती हैं।
मीरा ने धीरे-धीरे महसूस किया कि वह अब खुद को खो रही है — उसका शरीर जैसे-जैसे दर्पण के सामने जाता, उसे कंपकंपी होने लगती, और उसकी रेखाचित्र बदलने लगतीं।
अब वह फूल नहीं, खून बहाते चेहरे, चीखते मुँह और गले में रस्सियाँ खींचे आकृतियाँ बनाने लगी थी।
फिर एक रात, उसने अपने कमरे में एक पेंटिंग देखी — खुद की! पर उसमें उसका चेहरा नहीं था — बस एक काला दाग, और नीचे लिखा था —
“तू अब केवल माध्यम है।”
अनिकेत ने उसे दर्पण को छूने से रोका। लेकिन जब वह ऑफिस से लौटा, मीरा गायब थी।
कॉलोनीवालों ने कहा कि उन्होंने उसे दोपहर के बाद नहीं देखा।
लेकिन जब अनिकेत ने ड्राइंग रूम में जाकर दर्पण देखा — उसमें उसकी अपनी परछाईं के पीछे कोई और खड़ी थी — बहुत पास, बहुत शांत।
मीरा की आवाज़ आई —
“मैंने उस आत्मा को प्रेम दे दिया… अब मैं वही हूँ।”
अब दर्पण हट चुका है — उस कोने में अब कुछ नहीं है। लेकिन जो लोग नए किराएदार बनते हैं, कहते हैं कि उन्हें रात को कोने से आवाज़ आती है — जैसे कोई ब्रश चला रहा हो। जैसे कोई चीख रहा हो, पर आवाज़ भीतर कैद है।
अंतिम पंक्ति:
कुछ कोने केवल दीवारों में नहीं होते — वे समय में होते हैं। और जब कोई कलाकार वहाँ पहुँचता है, तो कला केवल रचना नहीं रहती — वह प्रलय बन जाती है।
समाप्त