नरकध्वनि का आह्वान : अग्निवीर
संक्षिप्त झलक:
जब हिमालय की गुफाओं में हज़ारों वर्षों से बंद एक प्राचीन नरकद्वार खुलता है, तो ध्वनि की तरंगें पूरे भारत में डर और पागलपन फैलाने लगती हैं। यह कोई शौर्यगाथा नहीं, बल्कि राक्षसी ऊर्जा की वापसी है। दुनिया की कोई तकनीक इस ध्वनि को रोक नहीं सकती। परंतु अग्निवीर, जिसे अब तक केवल अग्नि की शक्ति से जाना गया था, इस बार अपने भीतर के मौन से एक युद्ध लड़ेगा — यह कथा है अग्निशक्ति और ‘नरकध्वनि’ की भयंकर टक्कर की।
कहानी
ध्वनि जो आत्मा को चीर दे
काशी में एक रहस्यमयी घटना घटी। आधी रात को गंगा तट पर बैठे सैकड़ों लोग एक साथ चिल्लाते हुए गंगा में कूद पड़े। डॉक्टरों ने बताया कि उनके कानों में ऐसी ध्वनि सुनाई दी जो कोई और नहीं सुन पा रहा था — जैसे कोई आत्मा को भीतर से खींच रहा हो।
फिर यही हुआ महाराष्ट्र, बिहार और पंजाब में भी। लोग पागल होने लगे, चिल्लाने लगे — “वो आ रहा है… वो लौट रहा है… वो… नरक से…”
सरकारी एजेंसियाँ असहाय थीं। हर ध्वनि रिकॉर्डिंग में एक अनजाना कंपन था — जो वैज्ञानिक यंत्रों से भी समझ नहीं आ रहा था। उसे नाम दिया गया — “नरकध्वनि”।
अग्निवीर की पुकार
हिमालय की घाटियों में ध्यानस्थ अग्निवीर को यह ध्वनि एक झटका देकर जागा गई। उसके भीतर की अग्नि भी इस बार कांप रही थी। यह कोई सामान्य शक्ति नहीं थी। यह ध्वनि नहीं, एक बुलावा था — एक आह्वान।
वह उठा और गहरे ध्यान में गया। वहां उसे दिखा — एक प्राचीन द्वार, जहाँ हज़ारों आत्माएँ एक ध्वनि में कैद थीं।
एक वाक्य गूंजा —
“अगर नरक खुला, तो अग्नि ही उसका द्वार बंद कर सकती है।”
नरकध्वनि का उद्गम
उत्तराखंड की गुप्त पहाड़ियों में स्थित है — ‘मौनगुफा’। यह गुफा सदियों से बंद थी, एक शिला से। परंतु एक लालची शोध दल ने वहां खुदाई की, और वह शिला हट गई।
वहाँ से उठी ‘ध्वनि’ कोई सामान्य ध्वनि नहीं थी — वह आत्मा की चेतना को तोड़ती थी, स्मृति को मिटा देती थी, और इंसान को जानवर बना देती थी।
इस ध्वनि के मूल में था — ‘रावणसूत्र’।
मान्यता थी कि लंका का राजा रावण, मृत्यु से पूर्व अपने ‘रुद्रवीणा’ की एक ध्वनि में आत्मा को बंद करके गया था। वह ध्वनि अगर मुक्त हुई, तो सम्पूर्ण मानवजाति को पागल कर देगी।
अब वह ध्वनि बाहर थी।
और उसका रखवाला भी लौट आया था — ‘तानव्रात’, रावण का वंशज।
तानव्रात — ध्वनि का दानव
तानव्रात, एक प्राचीन संगीतमय तपस्वी था, जो अपनी ध्वनि से चक्रों को नियंत्रित कर सकता था। उसने गुफा के भीतर सात हजार आत्माओं को बंद कर रखा था — और अब वह भारत की आत्मा को कैद करना चाहता था।
उसका उद्देश्य था — “मनुष्य की सोच, भावना और निर्णय को मिटाकर उसे केवल ध्वनि के अधीन कर देना।”
अग्निवीर का संघर्ष
अग्निवीर जब मौनगुफा पहुँचा, तो उसे वहां कुछ न सुनाई दिया, न दिखाई दिया।
केवल एक मौन।
और उस मौन में था — आत्मा का ताप।
अचानक पूरी गुफा में वीणा की ध्वनि गूँजी और अग्निवीर के सिर में हज़ारों यादें टूटने लगीं। वह अपने अतीत को भूलने लगा, अपनी माँ का चेहरा, पिता की पुस्तकें, सब धुंधले पड़ने लगे।
पर तभी उसे याद आया —
“मैं ध्वनि नहीं, अग्नि हूँ।
ध्वनि भ्रमित कर सकती है,
पर अग्नि सब भ्रम को भस्म कर देती है।”
उसने ध्यान लगाकर अपनी भीतर की ऊर्जा को जगा लिया — और फिर पहली बार ‘अग्निनाद’ उत्पन्न किया।
अग्निनाद बनाम नरकध्वनि
गुफा में एक महान युद्ध हुआ। जहाँ अग्निवीर की अग्निनाद से अग्निशिखाएँ बनती थीं, वहीं तानव्रात की वीणा से ध्वनि के भूकंप उठते थे।
हर बार अग्निवीर जब तानव्रात के निकट आता, उसकी स्मृतियाँ मिटतीं — पर अग्निशक्ति उसे पुनः खींच लाती।
अंततः अग्निवीर ने अग्निनाद की अंतिम ज्वाला उत्पन्न की, जिससे उसने वीणा को पिघला दिया। तानव्रात चीखा —
“तू मेरी ध्वनि को नहीं मार सकता! ये अमर है!”
अग्निवीर बोला —
“कोई ध्वनि अमर नहीं होती… अगर मौन उसे निगल जाए।”
और फिर उसने आत्मा की मौन ज्वाला से नरकध्वनि को उसी शिला में बंद कर दिया।
नायक की पुनरावृत्ति
घायल अग्निवीर गुफा से बाहर आया। पूरा भारत पुनः सामान्य हुआ। मानसिक रोगियों को शांति मिली। लोग फिर से गाने लगे।
काशी में एक वृद्ध महिला ने गंगा किनारे एक अजनबी को बैठे देखा, जिसके चारों ओर राख थी और कान पर कोई ध्वनि न थी।
वह बोली —
“तुम कौन हो?”
उसने मुस्कराकर कहा —
“जो शब्दों से नहीं, अग्नि से बात करता है।”
समाप्त।