नाम न मिलने वाली नदी
संक्षिप्त विवरण:
यह कहानी है उज्ज्वल चौहान की — एक 15 वर्षीय लड़का जो मध्यप्रदेश के एक हरे-भरे पहाड़ी क्षेत्र धाराखोड़ी में रहता है। उज्ज्वल न तो टॉपर्स की कतार में है, न ही कोई खिलाड़ी है, लेकिन उसमें एक विशेषता है — वह सोचता है, बहुत गहराई से। जब उसके स्कूल में भूगोल की परियोजना दी जाती है कि बच्चों को अपने क्षेत्र की किसी विशेष भौगोलिक संरचना पर शोध करना है, तब उज्ज्वल एक ऐसी नदी के पीछे लग जाता है, जो मानचित्रों में दर्ज नहीं है। यह नदी बहुत छोटी है, पर गाँव के कई जीवन उससे जुड़े हैं — लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि उसका कोई नाम नहीं है।
यह कहानी खोज, आत्म-संवाद, सामाजिक सोच और एक किशोर की परिपक्वता की लंबी यात्रा है — जिसमें वह न केवल एक नदी को नाम देता है, बल्कि अपनी पहचान भी खोज लेता है।
पहला भाग – वो जो सब से अलग सोचता था
उज्ज्वल हमेशा से थोड़ा अलग था।
वह खेलता भी था, हँसता भी था, लेकिन किसी एक ग्रुप का हिस्सा नहीं था।
उसकी दुनिया में उसकी दादी की कहानियाँ, पिता की चुप्पियाँ और माँ की गुनगुनाहट थीं।
उसका पसंदीदा काम था — स्कूल से लौटकर पहाड़ियों के बीच बने छोटे रास्तों पर चलना, अकेले, चुपचाप।
कभी-कभी वह घर लौटने में देर कर देता, तो माँ डाँट देतीं —
“हर समय बस सोचता रहता है, एक दिन खो जाएगा!”
लेकिन उज्ज्वल जानता था, वह खो नहीं रहा — वह ढूंढ़ रहा है।
दूसरा भाग – भूगोल की परियोजना और एक सवाल
एक दिन भूगोल अध्यापिका वर्षा मैम ने एक परियोजना दी —
“अपने क्षेत्र की किसी नदी, झील या पहाड़ पर एक विस्तृत रिपोर्ट बनाओ। नक्शा बनाओ, इतिहास समझो, और सामाजिक प्रभाव का अध्ययन करो।”
पूरी कक्षा उत्साहित हो गई — किसी ने नर्मदा को चुना, किसी ने सतपुड़ा पहाड़ी श्रृंखला को।
उज्ज्वल चुप रहा।
वह जानता था कि उसे कुछ अलग करना है।
उसे याद आई वह छोटी सी नदी — जो पहाड़ियों से नीचे बहती थी, बहुत ही पतली, शांत, और अनजानी।
वह अक्सर उसके किनारे बैठा करता था, मगर आज तक कभी यह नहीं सोचा कि उसका कोई नाम नहीं।
वह घर लौटा और दादी से पूछा —
“दादी, उस नदी का क्या नाम है जो मंदिर के पीछे बहती है?”
दादी मुस्कराईं —
“नाम? अरे बेटा, उसे तो लोग ‘पछुआ नाला’ कहते हैं, क्योंकि वह पश्चिम से बहती है।”
“लेकिन क्या वो असली नदी नहीं है?”
“सबसे असली वही है, बेटा। वही तो खेतों को पानी देती है। पर किसी को उसका नाम रखने की फुरसत नहीं थी।”
उज्ज्वल की आँखों में चमक थी।
तीसरा भाग – नदी की आत्मा की खोज
अगले कई दिनों तक उज्ज्वल उसी नदी के किनारे बैठकर हर बात दर्ज करता —
कहाँ से बहती है, किस रास्ते जाती है, कितने मोड़ हैं, कितने खेतों में जाती है, और कितने जानवर उसकी मिट्टी से पानी पीते हैं।
वह अपने दोस्त ईशान को भी साथ ले गया, जो फोटोग्राफी करता था।
दोनों ने नदी के किनारे के गाँवों में जाकर बुज़ुर्गों से बात की।
एक वृद्ध किसान बोले —
“जब हम बच्चे थे, तब इसी पानी से हमने फसलें बोईं। तब इसे कोई ‘जिया’ कहते थे।”
दूसरे ने कहा —
“हमने इसे कभी नाम से नहीं पुकारा, पर ये है हमारी माँ जैसी।”
उज्ज्वल के दिमाग में विचार कौंधा —
“जिस नदी ने पीढ़ियों को जीवन दिया, उसे कभी कोई नाम क्यों नहीं मिला?”
चौथा भाग – प्रस्ताव और विरोध
परियोजना में एक नई बात जोड़ते हुए उज्ज्वल ने प्रस्ताव रखा —
“मैं इस नदी को नाम देना चाहता हूँ — ‘जीवनी’।”
शब्द सरल था, पर भाव गहरे।
कक्षा में जब वह प्रस्तुतिकरण दे रहा था, तब कुछ बच्चे हँस पड़े —
“क्या नाम रखा है! किसी छोटी नाली को नदी बनाकर नाम दे दिया?”
पर वर्षा मैम चुपचाप सुनती रहीं।
उज्ज्वल ने अपने दस्तावेज़, नक्शे, गांववालों के बयान, पानी के नमूने, और चित्र दिखाए।
और अंत में कहा —
“हम हमेशा बड़ी नदियों की पूजा करते हैं, लेकिन जो छोटी हैं, जो चुपचाप बहती हैं — वो भी तो ज़रूरी हैं।
हर नदी को नाम चाहिए, पहचान चाहिए।”
पूरा कक्ष स्तब्ध था।
वर्षा मैम की आँखों में नमी थी।
उन्होंने खड़े होकर ताली बजाई — और पूरी कक्षा ने उनका अनुसरण किया।
पाँचवाँ भाग – गाँव में एक नया उत्सव
कुछ दिन बाद स्कूल के माध्यम से उज्ज्वल की परियोजना को जिला स्तर की प्रदर्शनी में भेजा गया।
वहीं, गाँव में यह खबर फैली कि एक बच्चा उस नदी को नाम दे रहा है।
ग्राम पंचायत ने उस विषय पर बैठक बुलाई।
सभी ने मिलकर तय किया कि अब उस नदी को ‘जीवनी नदी’ के नाम से पुकारा जाएगा।
गाँव के बच्चे रंगों से नदी के पत्थरों पर चित्र बनाने लगे, युवाओं ने किनारों की सफाई की, और स्कूल ने एक बोर्ड लगवाया —
“जीवनी नदी — धरती की चुप बहती बेटी”
अंतिम भाग – उज्ज्वल का नया रास्ता
उज्ज्वल की परियोजना को राज्य स्तर पर सम्मान मिला।
अखबारों में खबर छपी —
“15 वर्षीय छात्र ने गुमनाम नदी को नाम देकर दी नई पहचान”
वर्षा मैम ने स्कूल में ‘स्थानीय भूगोल क्लब’ शुरू कराया, जिसमें उज्ज्वल को संयोजक बनाया गया।
अब वह केवल सोचने वाला बच्चा नहीं रहा — वह करने वाला बना।
एक दिन दादी ने उससे पूछा —
“अब आगे क्या करेगा बेटा?”
उसने कहा —
“मैं ऐसे ही और जगहों को पहचान दिलाना चाहता हूँ।
जो अनकही हैं, जो अनसुनी हैं — उन्हें बोलना सिखाना चाहता हूँ।”
उसने अपनी डायरी के आखिरी पन्ने पर लिखा —
“मुझे अब नाम चाहिए — उन सभी के लिए, जो अब तक बिना नाम के जिए हैं।”
समाप्त
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