नीम के पेड़ के नीचे
संक्षिप्त विवरण:
यह कहानी है अद्वैत शर्मा की — एक 15 वर्षीय बालक, जो जयपुर के बाहरी इलाके की एक शांत कॉलोनी रामबाग में रहता है। अद्वैत की दुनिया बहुत व्यवस्थित है — समय पर उठना, अच्छे अंक लाना, हर बात पर गंभीरता से सोचना। लेकिन एक दिन उसकी मुलाक़ात होती है एक अनोखे बुज़ुर्ग से — हरीश काका, जो कॉलोनी के पुराने नीम के पेड़ के नीचे हर शाम बैठे रहते हैं और जिनकी बातें बच्चों के लिए पहेली जैसी होती हैं। अद्वैत की ज़िंदगी बदलने लगती है, जब वह हर शाम नीम के पेड़ के नीचे बैठना शुरू करता है और वहां उसे ज़िंदगी के वे पाठ मिलते हैं, जो स्कूल की किताबों में नहीं थे।
‘नीम के पेड़ के नीचे’ एक हल्की-फुल्की, दिल को छूने वाली और प्रेरणास्पद कहानी है जो यह बताती है कि खुशियाँ किसी बड़े आयोजन में नहीं, बल्कि छोटे-छोटे क्षणों और रिश्तों में छिपी होती हैं।
पहला भाग – सब कुछ समय पर, पर दिल बेजान
अद्वैत शर्मा एक अनुशासित विद्यार्थी था। उसकी डायरी में सबकुछ लिखा होता —
6:30 – उठना
7:00 – योगा
7:30 – नाश्ता
8:00 – स्कूल
3:00 – होमवर्क
5:00 – गणित अभ्यास
6:00 – कंप्यूटर क्लास
7:00 – डिनर
8:00 – किताब पढ़ना
9:30 – सोना
उसके माता-पिता को उस पर गर्व था। स्कूल में उसे ‘क्लास मॉनिटर’ बना दिया गया था।
पर एक बात थी — अद्वैत की आँखों में कोई चंचलता नहीं थी। उसकी हँसी गिनती की होती, और दोस्ती सीमित।
वह कभी कॉलोनी के बच्चों के साथ न खेलता, न ही बहस करता।
उसके दोस्त निखिल ने एक बार कहा था —
“तू इंसान कम, टाइमटेबल ज़्यादा है!”
अद्वैत मुस्कराकर टाल देता।
दूसरा भाग – नीम के पेड़ के नीचे बैठा बूढ़ा
रामबाग कॉलोनी में एक पुराना नीम का पेड़ था, जो अब बच्चों की नज़रों से ओझल हो चुका था। वहाँ कभी झूले लगते थे, कहानियाँ सुनाई जाती थीं, लेकिन अब बच्चों का ध्यान मोबाइल और वीडियो गेम की ओर था।
नीम के नीचे हर शाम एक बूढ़ा व्यक्ति बैठता था — सफ़ेद कुरता, फटा हुआ जूता, और एक पुरानी लकड़ी की छड़ी। लोग उन्हें हरीश काका कहते थे। किसी को नहीं पता था कि वे कहाँ से आए, पर वे हर बच्चे को नाम से जानते थे।
एक शाम अद्वैत किसी काम से लौट रहा था कि नीम के नीचे रुक गया। हरीश काका बोले —
“अरे, मॉनिटर बाबू! आज देर कैसे हो गई?”
अद्वैत चौंका।
“आपको मेरा नाम कैसे पता?”
“नाम नहीं जानता बेटा, पर चाल बता देती है — जो बच्चा सीधी गर्दन और तेज़ क़दमों से चलता है, वो या तो बड़ा अफसर बनेगा या बड़ा अकेला।”
अद्वैत को पहली बार कोई बात भीतर तक लगी।
तीसरा भाग – पहली बैठकी
अगले दिन अद्वैत फिर नीम के पेड़ के पास आया। काका पहले से इंतज़ार कर रहे थे।
“आज बैठो। एक कहानी सुनाऊँ?”
अद्वैत ने घड़ी देखी।
“कंप्यूटर क्लास है… पर ठीक है, दस मिनट।”
काका ने एक पुरानी कहानी सुनाई —
“एक लड़का जो हर चीज़ समय से करता था, लेकिन उसने कभी अपने दिमाग की बात नहीं सुनी। एक दिन उसे पता चला कि उसने इतने सालों में कभी ‘खुद’ को नहीं जाना।”
अद्वैत चुपचाप सुनता रहा।
उस दिन पहली बार वह कंप्यूटर क्लास में देर से पहुँचा। लेकिन अजीब बात थी — उसे बुरा नहीं लगा।
चौथा भाग – धीरे-धीरे बदलाव
अब अद्वैत हर दिन शाम को नीम के नीचे बैठता। काका उसे कहानियाँ सुनाते — कभी शेर की, कभी चिड़िया की, कभी किसी राजा की।
पर हर कहानी के अंत में एक सवाल होता —
“अगर तुम राजा होते, क्या करते?”
“अगर चिड़िया तुमसे उड़ने से पहले सलाह लेती, तुम क्या कहते?”
अद्वैत सोचता, फिर बोलता।
धीरे-धीरे उसने महसूस किया कि वह बातें कर सकता है, हँस सकता है, और सबसे ज़रूरी — सवाल पूछ सकता है।
एक दिन काका ने कहा —
“तेरा टाइमटेबल बहुत अच्छा है बेटा, पर उसमें दो चीज़ें नहीं दिखीं —
‘खुद से मिलना’ और ‘जिंदगी को महसूस करना’।“
पाँचवाँ भाग – एक नया अद्वैत
अब अद्वैत ने अपने टाइमटेबल में बदलाव किए —
6:30 – उठना
7:00 – पेड़ के नीचे 15 मिनट अकेले बैठना
3:00 – हरीश काका से बात करना
6:00 – मोहल्ले के बच्चों के साथ खेलना
उसके माता-पिता ने देखा — अब वह मुस्कराता है, बहन के साथ खेलता है, और कभी-कभी खुद ही रसोई में सब्ज़ी काटता है।
स्कूल में भी उसके दोस्त बढ़ने लगे।
उसने विज्ञान मेले में एक परियोजना बनाई —
“नीम के नीचे की बातें”, जिसमें उसने यह दिखाया कि कैसे प्रकृति के पास जवाब होते हैं, अगर हम पूछना सीखें।
छठा भाग – हरीश काका की चिट्ठी
एक दिन शाम को अद्वैत नीम के पास पहुँचा, तो काका वहाँ नहीं थे।
नीचे एक लिफ़ाफा रखा था। उस पर लिखा था —
“मॉनिटर बाबू के लिए”
अंदर एक चिट्ठी थी —
“बेटा अद्वैत,
मैं कहीं जा रहा हूँ — शायद किसी और नीम के नीचे बैठने। तू अब उस बच्चा नहीं रहा जो टाइम से चलता था, तू अब ज़िंदगी को समझने वाला यशस्वी बन गया है।
तू बच्चों को कहानियाँ सुना, पेड़ों से बातें कर, और हँसना मत भूल।
तुझे देख के मुझे विश्वास हुआ — कि अगली पीढ़ी समझदार होगी।जब भी हवा में नीम की पत्तियाँ बजें, समझ लेना — मैं हूँ।
— हरीश काका”
अद्वैत की आँखें नम थीं। लेकिन वह मुस्कराया।
अंतिम भाग – अब नीम के नीचे नई कहानी
अब हर रविवार अद्वैत नीम के पेड़ के नीचे बैठता है। मोहल्ले के बच्चे वहाँ आते हैं, और अद्वैत उन्हें वही कहानियाँ सुनाता है —
राजा की, चिड़िया की, और उस लड़के की, जो समय से चलता था पर ज़िंदगी से दूर था।
अभी भी वह पढ़ाई करता है, अनुशासन में रहता है — पर अब उसके जीवन में स्पर्श है, संवाद है, और स्वयं से जुड़ाव है।
उसने अपनी डायरी में लिखा —
“हर बच्चे को एक नीम का पेड़ चाहिए — जहाँ वो ज़िंदगी से मिल सके, और एक हरीश काका — जो बिना बताए भी बहुत कुछ सिखा दे।”
समाप्त