नीले गुलाबों वाला विज्ञान मेला
(एक ऐसे किशोर की कहानी जो रंगों में विज्ञान खोजता है)
संक्षिप्त विवरण:
यह कहानी है अनवेष माथुर की — एक 14 वर्षीय किशोर जो विज्ञान का विद्यार्थी होते हुए भी रंगों का दीवाना है। वह रंगों में विज्ञान देखता है, और विज्ञान में कविता। उसके स्कूल के वार्षिक विज्ञान मेले में जब सभी बच्चे रोबोटिक्स, एआई और एनर्जी से जुड़ी मशीनें बना रहे होते हैं, तब अनवेष सिर्फ एक नीला गुलाब बनाने में जुटा होता है — एक ऐसा नीला गुलाब, जो न केवल जैविक रूप से संभव नहीं है, बल्कि विज्ञान की किताबों के अनुसार असंभव है।
यह कहानी उन किशोरों की है जो दुनिया के तय किए गए खाँचों में नहीं आते। जो यह मानते हैं कि विज्ञान का सबसे बड़ा प्रयोगशाला खुद मनुष्य का मन है। और यह कहानी हमें यह सिखाती है कि सबसे बड़ी खोजें वे होती हैं जो पहले दिल में जन्म लेती हैं।
पहला भाग – रंग, जो किताबों में नहीं होते
अनवेष माथुर जयपुर के एक सरकारी आवासीय विद्यालय में कक्षा नौवीं का छात्र था।
वह हर विषय में औसत था — सिवाय विज्ञान और चित्रकला के।
वह विज्ञान की प्रयोगशाला में जितना समय बिताता, उतना ही समय रंगों से खेलने में भी लगाता।
कभी पत्तियों को पीसकर रंग बनाता, कभी पुराने फूलों से जल रंग तैयार करता।
उसके दोस्तों को यह विचित्र लगता —
“तू विज्ञान का छात्र है या चित्रकार?”
वह हँसकर कहता —
“मैं रंगों में विज्ञान खोजता हूँ।”
उसकी नोटबुक की हर प्रयोग रिपोर्ट के नीचे एक स्केच बना होता — कभी एक पत्ती का, कभी रंग बदलते सूरजमुखी का, और कभी सिर्फ एक नीला गुलाब।
दूसरा भाग – विज्ञान मेले की तैयारी और असंभव प्रयोग
उस वर्ष विद्यालय में “वार्षिक विज्ञान मेला” आयोजित होने वाला था।
शिक्षक ने घोषणा की —
“हर छात्र को कोई तकनीकी मॉडल या वैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित प्रोजेक्ट प्रस्तुत करना होगा।”
बच्चे उत्साहित थे —
कोई सोलर सिस्टम बना रहा था, कोई मोबाइल से कंट्रोल होने वाली गाड़ी।
अनवेष चुपचाप बैठा रहा।
शिक्षक ने पूछा —
“तुम क्या बनाने वाले हो?”
उसने कहा —
“नीला गुलाब।”
सारी कक्षा हँस पड़ी।
“यह कोई फूलों की प्रदर्शनी है क्या?”
“नीला गुलाब होता ही नहीं!”
वह शांत रहा, बस एक पंक्ति बोली —
“मैं वही बनाना चाहता हूँ, जो अभी तक नहीं बना।”
तीसरा भाग – असंभव की प्रयोगशाला
अनवेष ने स्कूल की लाइब्रेरी से किताबें पढ़ीं — प्लांट जेनिटिक्स, पिगमेंट स्ट्रक्चर, रंगद्रव्य विज्ञान।
उसे पता चला कि गुलाब में नीले रंग का पिगमेंट — डेल्फिनिडिन — प्राकृतिक रूप से नहीं होता।
लेकिन उसने हार नहीं मानी।
उसने प्रयोगशाला में 6 प्रकार के फूलों से रंग निकाले — नीला जकारांडा, अपराजिता, शंखपुष्पी और कुछ विदेशी फूलों के पाउडर।
रात में वह चुपचाप प्रयोगशाला में जाता, रंगों को मिलाता, गुलाब की सफेद पंखुड़ियों को धीरे-धीरे डुबोता।
तीन सप्ताह तक वह बार-बार असफल हुआ —
रंग या तो पंखुड़ियों पर नहीं टिकता, या भूरा हो जाता।
मगर वह रोज़ डायरी में लिखता:
“मैं विज्ञान को रंगों से दोस्ती करना सिखा रहा हूँ।”
चौथा भाग – जब जादू ने विज्ञान का हाथ थामा
अंतिम सप्ताह की रात थी।
पूरे स्कूल में तैयारी चल रही थी।
अनवेष अपनी टेबल पर बैठा था।
उसने अंतिम बार एक नया रंग संयोजन तैयार किया — नीले जकारांडा और शंखपुष्पी से निकाले रंग को उसने एक विशेष तापमान पर स्टोर किया और धीरे से एक सफेद गुलाब की पंखुड़ियों को उसमें डुबो दिया।
उसने उसे एक घंटे तक ऐसे ही रखा।
सुबह जब वह उठा —
उसकी आँखों के सामने था एक हल्के नीले रंग का गुलाब।
पूरी तरह नीला नहीं, पर इतना नीला कि किसी ने कभी ऐसा न देखा हो।
उसकी हथेलियाँ कांप रही थीं।
वह खुशी से रो पड़ा।
पाँचवाँ भाग – मेला, जिसमें रंगों ने जीत ली मशीनें
विज्ञान मेले में एक से बढ़कर एक प्रोजेक्ट थे —
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर भाषण, स्मार्ट बिन, वॉटर प्यूरीफायर।
अनवेष का प्रोजेक्ट था — “प्राकृतिक रंगों द्वारा उत्पन्न नीला गुलाब”
बच्चे हैरान थे।
शिक्षक चुप।
विज्ञान क्लब के अध्यक्ष ने फूल को हाथ में लेकर कहा —
“यह रंग है या सपना?”
अनवेष मंच पर आया और बोला —
“हम विज्ञान को हमेशा तारों और मशीनों से जोड़ते हैं। पर विज्ञान वो भी है जो मन को छू जाए।”
अंत में उसे ‘सर्वश्रेष्ठ नवाचार पुरस्कार’ दिया गया।
अंतिम भाग – नीला गुलाब अब सोच है
उस दिन के बाद, अनवेष के स्कूल में हर साल “रंग विज्ञान सप्ताह” मनाया जाने लगा।
जहाँ बच्चे फूलों, पत्तियों, बीजों से रंग निकालते, और उससे जुड़ी वैज्ञानिक बातें खोजते।
राज्य विज्ञान केंद्र से एक अधिकारी ने लिखा —
“इस छात्र ने हमें बताया कि विज्ञान सिर्फ प्रयोग नहीं, सौंदर्य भी होता है।”
अनवेष अब भी वही नीला गुलाब अपनी किताबों में रखता है।
उसकी डायरी की आखिरी पंक्ति है —
“सपने वही होते हैं जो पहले असंभव लगते हैं। फिर धीरे-धीरे, वे रंग पकड़ लेते हैं।”
समाप्त
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