सत्य का सार
सत्य का सार एक लालची व्यापारी धनंजय, एक मिथकीय 'स्वर्ण-मिश्रण' की तलाश में निकलता है, जो किसी भी धातु को सोने में बदल सकता है। उसकी यात्रा उसे एक प्राचीन सभ्यता के खंडहरों में ले जाती है, जहाँ एक साधारण किसान उसे सिखाता है कि सच्चा धन बाहरी वस्तुओं में नहीं, बल्कि ईमानदारी, परिश्रम और दूसरों के प्रति करुणा में है। वह अपने जीवन का असली उद्देश्य पाता है। वैश्यपुर...