बबलू बन गया नेता जी: एक हास्यपूर्ण संघर्ष
संक्षेप
यह कहानी है बबलू की, जो एक छोटा-मोटा पान बेचने वाला था, पर अचानक उसे लगा कि देश सेवा करनी चाहिए और नेता बनना चाहिए। बस यहीं से शुरू होती है उसकी हास्य से भरी अनोखी यात्रा – भाषणों की भ्रांति, जुमलों की जुगाली, रैली की रेलमपेल और चुनावी वादों की बारिश। बबलू के नेतागिरी के सफर में जो कुछ घटता है, वो न सिर्फ पेट पकड़कर हंसाने वाला है, बल्कि आज की राजनीति का व्यंग्यात्मक आइना भी है।
कहानी
शहर का नाम था गप्पापुर, और वहाँ का सबसे चर्चित इंसान था – बबलू पान वाला। उसका पान ऐसा चलता था कि लोगों ने अपनी शादी की तिथि भी उसकी दुकान के मुहूर्त से तय करनी शुरू कर दी थी।
बबलू दिन भर “मीठा पान लगे छप्पन भोग” जैसे जुमले बोलता रहता और हर ग्राहक को एक बोनस चुटकुला फ्री में देता – “अरे सुनो सुनो, नेता जी के घर बिजली नहीं थी, तो उन्होंने मोमबत्ती पर GST लगा दी।”
एक दिन बबलू दुकान पर बैठा-बैठा ऊंघ रहा था कि एक नारा सुनाई दिया — “देश बदलना है तो वोट दो सच के साथ!”
बबलू चौंका, आँख मलते हुए बोला, “सच के साथ? मतलब पान के साथ नहीं?”
उसी रात उसने बड़ा फैसला लिया – अब वो नेता बनेगा!
नेतागिरी की शुरुआत
बबलू ने अगले ही दिन अपने दुकान के बगल में एक बोर्ड टांग दिया —
“जनहित में घोषणा: अब पान के साथ विचार भी मिलेगा। वोट दीजिए बबलू को, आपका अपना पानवाला नेता।”
लोगों ने समझा कोई मज़ाक है, लेकिन बबलू ने इसे अपना मिशन बना लिया।
उसने पचास पोस्टर छपवाए जिसमें उसका चेहरा इतना बड़ा था कि एक बच्चा डर के मारे रो पड़ा —
“मम्मी, दीवार से कोई आदमी निकल आया!”
उसने अपने दो पुराने ग्राहकों को अपनी पार्टी में शामिल किया — पप्पू लस्सी वाला और गुड्डू पकोड़ी वाला।
अब उनकी पार्टी का नाम बना — “खाओ-पिओ-राज करो पार्टी”।
भाषणों की बाढ़
बबलू ने भाषण देना शुरू किया। हर गली, हर नुक्कड़ पर उसकी सभा लगती, लेकिन उसके भाषण इतने विचित्र होते कि लोग हँस-हँस के लोटपोट हो जाते। जैसे—
“भाइयो और बहनो, अगर मैं चुनकर आया, तो हर घर में मुफ्त पान और हर मोहल्ले में लस्सी फव्वारा लगवाऊँगा।”
“हम चांद पर नहीं, पड़ोस की छत पर पहुँचे हैं, क्योंकि वहीं से सबसे ज़्यादा टोपी उड़ती है।”
एक बुजुर्ग बोले, “बेटा, देश का क्या करोगे?”
बबलू बोला, “देश को हँसाऊँगा बाबा, फिर सब दुख खुद-ब-खुद भाग जाएगा।”
रैली का रंग
रैली का आयोजन हुआ। बबलू ने रैली के लिए ऑटो रिक्शा बुक कराए और सबको मुफ्त पान की घोषणा की। भीड़ उमड़ी, लेकिन सब पान खाने आए। मंच पर चढ़कर बबलू ने कहा —
“मैं नेता नहीं, जन-सेवक बनना चाहता हूँ। और मेरा पहला काम होगा – मोहल्ले की नाली में गुलाबजल बहाना।”
इतना सुनते ही भीड़ में से एक आदमी चिल्लाया, “पहले अपनी भाषा में गुलाबजली बंद कर!”
चुनाव का दिन
चुनाव आया, वोटिंग हुई। बबलू ने खुद को वोट दिया, लेकिन बाकी जनता ने उसे केवल हँसी में लिया। कुल मिलाकर बबलू को मिले कुल 7 वोट, जिनमें से दो उसके खुद के ग्राहक थे, एक उसकी अम्मा, और चार वो जो ईवीएम चलाना नहीं जानते थे।
बबलू दुखी नहीं हुआ। वह बोला –
“मैं हार नहीं मानता। जब तक देश में हँसी ज़िंदा है, तब तक बबलू पानवाला जिंदा है।”
बबलू का नया रूप
अब बबलू नेता नहीं रहा, पर लोगों का मनोरंजन मंत्री बन गया। वह हर रविवार को “चाय-पान-राजनीति” नाम से चुटकुलों की सभा करता, जहाँ लोग आते, पान खाते और देश की राजनीति को हँसी में उड़ाते।
अब उसके दुकान का बोर्ड बदल चुका है —
“यहाँ पान कम, विचार ज़्यादा मिलते हैं। बबलू एक्स-नेता, वर्तमान मनोरंजन मंत्री।”
अंत
बबलू नेता तो नहीं बन पाया, पर हँसी का राजा बन गया। उसकी कहानी आज भी गप्पापुर की दीवारों पर चाय के कप के साथ गूँजती है।
सीख नहीं, केवल हँसी। क्यूंकि बबलू की तरह, राजनीति को अगर थोड़ा हल्का लिया जाए, तो शायद दिल का बोझ भी हल्का हो जाए।
– समाप्त –