बिल्लू का बड़ा सपना
एक मामूली नाई की असामान्य उड़ान
बिल्लू एक छोटे कस्बे का नाई था, पर उसका सपना बहुत बड़ा था — प्रधानमंत्री बनने का! न तो उसके पास शिक्षा थी, न पैसे, और न ही कोई राजनीतिक ज्ञान, पर उसके अंदर एक चीज़ कूट-कूट कर भरी थी — आत्मविश्वास और थोड़ी सी पागलपन। इस हास्यास्पद और मजेदार कहानी में, देखिए कैसे बिल्लू अपने झोपड़े से निकलकर राष्ट्रीय टीवी चैनलों पर छा जाता है, और कैसे उसका ‘बाल कटवाओ, देश बनाओ’ अभियान पूरे देश में वायरल हो जाता है। हास्य, व्यंग्य और पागलपंती से भरी यह कहानी आपको हँसी से लोटपोट कर देगी।
कस्बा बुढानपुर। वहाँ के मुख्य चौराहे पर एक झोपड़ी थी, जिसके बाहर एक पेंट से लिखा था — “बिल्लू हेयर कटिंग एंड आइडियाज सेंटर”। इस झोपड़ी में बैठता था बिल्लू — पतला-दुबला, मक्कार आँखों वाला, हर वक्त पान चबाने वाला और सबसे बड़ा बातूनी।
बिल्लू बाल कम काटता था, और बातें ज़्यादा बनाता था। हर ग्राहक से कहता —
“भाई साहब, बाल तो मैं काट दूँगा, पर साथ में एक आइडिया भी दूँगा जो ज़िंदगी बदल देगा!”
लोग हँसते, पर बिल्लू अपनी धुन में मस्त रहता।
एक दिन उसने अपने दिमाग में बिठा लिया — “अब बहुत हो गया बाल काटना, अब मैं देश काटूंगा, मतलब संभालूंगा!”
उसका मतलब था — वो प्रधानमंत्री बनना चाहता है।
चुनाव का ऐलान
एक शाम, कस्बे की पान की दुकान पर बिल्लू ने घोषणा की —
“मैं अगला प्रधानमंत्री बनूँगा!”
सब लोग हँसे, कुछ ने बीड़ी बुझाई, कुछ ने छींक मारी, और एक बुज़ुर्ग ने तो इतना ज़ोर से हँसा कि उनकी नकली दाँत गिर गए।
पर बिल्लू सीरियस था। उसने एक बैनर छपवाया —
“बाल कटवाओ, देश बनाओ” अभियान शुरू!
उसने हर ग्राहक से वादा करना शुरू कर दिया —
“मेरे कटिंग करवाओ, मैं तुम्हें लोकतंत्र का असली मतलब बताऊंगा।”
प्रचार का अंदाज़
बिल्लू का प्रचार बाकी नेताओं से अलग था।
वो हेलमेट पहनकर साइकल पर चढ़कर गलियों में जाता और माइक से चिल्लाता —
“हे कस्बावासियों, मैं वो नाई हूँ जो बालों के साथ-साथ भ्रष्टाचार भी काट सकता हूँ!”
उसने नारा बनाया —
“जहाँ बाल वहाँ सवाल!”
और
“झोपड़ी से संसद तक, बिल्लू का इरादा पक्का!”
उसका प्रचार इतना मजेदार था कि बच्चे उसके पीछे-पीछे दौड़ते, महिलाएँ हँसती, और बूढ़े लोग चश्मा उतारकर उसे देखते।
जनता का समर्थन
धीरे-धीरे लोगों को लगने लगा कि बिल्लू भले ही पागल हो, पर मज़ेदार तो है।
उसने ‘बाल संसद’ शुरू की — हर शनिवार, चाय की दुकान पर चार कुर्सियाँ, एक कैंची, और माइक का तार जो लाउडस्पीकर से जुड़ा था।
वहाँ वो ‘देश की समस्याएँ’ सुलझाता —
“प्याज महंगा हो गया है? तो मत खाओ, बाल में लगाओ, रूसी भी जाएगी और आँसू भी!”
“पानी की कमी है? बाल कम धोओ, राष्ट्र के जल की रक्षा करो!”
भीड़ लगने लगी। सोशल मीडिया वालों को भी बिल्लू का अंदाज़ भा गया। वीडियो वायरल हो गए।
“बिल्लू द हेयर मैन ऑफ इंडिया” नाम से एक वीडियो चैनल भी बन गया।
राष्ट्रीय राजनीति में बिल्लू
अब बात दिल्ली तक पहुँच गई। बड़े-बड़े चैनल वाले आए, बिल्लू को इंटरव्यू में बुलाया गया।
पत्रकार ने पूछा —
“आपका विकास मॉडल क्या है?”
बिल्लू बोला —
“जहाँ सिर वहाँ बाल, जहाँ बाल वहाँ कैंची, और जहाँ कैंची, वहाँ तरक्की!”
एक और पत्रकार ने पूछा —
“आप शिक्षा को कैसे सुधारेंगे?”
बिल्लू ने सीना ठोंककर कहा —
“हर बच्चे को बाल कटवाने की शिक्षा दूँगा, ताकि अनुशासन आए। जो बालों का सम्मान नहीं करता, वो देश का क्या करेगा?”
टीवी स्टूडियो में हँसी के ठहाके गूंज उठे।
विरोधी दलों की फजीहत
बिल्लू के मज़ाक ने बड़े नेताओं की नाक में दम कर दिया था।
एक नेता बोला —
“ये नाई क्या करेगा देश का?”
बिल्लू ने तुरंत कहा —
“आप तो 40 साल से सिर्फ मूंछें ही ऐंठ रहे हो, अब देश को कोई नया स्टाइल चाहिए!”
बिल्लू की बातें लोगों को समझ में नहीं आती थीं, पर सुनने में मज़ा आता था।
लोग कहने लगे —
“कम से कम ये हँसाता तो है, बाकी तो बस रुलाते हैं!”
चुनाव का दिन
आ गया चुनाव का दिन।
बिल्लू ने वोटिंग बूथ के बाहर एक मेज लगाई —
“कटिंग करवाओ, वोटिंग पर जाओ!”
वो हर वोटर को फ्री कटिंग दे रहा था।
एक बूढ़ा वोटर बोला —
“बेटा, बाल तो अब हैं नहीं, फिर?”
बिल्लू बोला —
“कोई बात नहीं चचा, मूंछ में स्टाइल दे देता हूँ, वोट तो दीजिए!”
बिल्लू हार गया। वोट उसे मिले, पर कुर्सी नहीं।
पर उसकी हार भी जीत जैसी थी।
बिल्लू का फिनाले
बिल्लू अब भी झोपड़ी में बैठता है, बाल काटता है, पर हर ग्राहक से कहता है —
“भले ही मैं पीएम न बना, पर हँसी का मंत्री तो हूँ ही!”
अब उसके झोपड़ी के बाहर लिखा है —
“यहाँ बाल ही नहीं, तनाव भी काटे जाते हैं!”
लोग अब भी उसके पास सिर्फ बाल कटवाने नहीं, दिल का बोझ हल्का करने भी आते हैं।
बिल्लू कहता है —
“मक्खन की तरह बाल काटता हूँ और गप्पों की तरह राजनीति!”
और इस तरह, एक पागल नाई ने देश को कुछ हफ्तों के लिए ज़रूर हँसाया, सोचने पर मजबूर किया, और यह साबित कर दिया कि असल नेता वही होता है जो जनता के दिलों में जगह बना ले — भले ही वह संसद में न हो।
समाप्त
📚 All Stories • 📖 eBooks