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भावनाओं का शहर: रंगीन गलियों का रहस्य

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भावनाओं का शहर: रंगीन गलियों का रहस्य

भावनाओं का शहर: एक ऐसी दुनिया में जहाँ मानव भावनाएँ भौतिक, चमकते हुए ‘भाव’ के रूप में प्रकट होती हैं, एक युवा स्ट्रीट आर्टिस्ट को पता चलता है कि वह इन भावों को बुन सकती है। उसे अपनी इस अद्वितीय शक्ति का उपयोग करके शहर को एक ऐसे प्राचीन खतरे से बचाना होगा जो जटिल भावनाओं को मिटा रहा है और दुनिया को एक नीरस, रंगहीन अस्तित्व में धकेल रहा है।

पहला अध्याय: रंगीन गलियों में मौन

वह युग था जब मानव भावनाएँ केवल आंतरिक अनुभव नहीं थीं, बल्कि भौतिक रूप से प्रकट होती थीं। ‘भाव-नगर’ एक ऐसा शहर था जहाँ हर भावना – खुशी, दुख, क्रोध, प्रेम, भय – एक चमकते हुए, स्पंदनशील जीव के रूप में गलियों में घूमती थी, जिसे ‘भाव’ कहा जाता था। शहर की इमारतें स्वयं ठोस भावों से बनी थीं: ‘खुशी-महल’ खुशी के सुनहरे भावों से चमकता था, ‘शांत-उद्यान’ शांति के नीले भावों से भरा था, और ‘क्रोध-पथ’ क्रोध के लाल भावों से धधकता था। लोग इन भावों के साथ रहते थे, उन्हें महसूस करते थे, और उनके साथ बातचीत करते थे।

लेकिन पिछले कुछ समय से, भाव-नगर में एक अजीब सी नीरसता फैल रही थी। ‘भाव-शुद्धि संघ’ नामक एक शक्तिशाली संगठन ने शहर पर नियंत्रण कर लिया था। उनका मानना था कि केवल ‘शुद्ध’ और ‘नियंत्रित’ भावनाएँ ही समाज के लिए अच्छी हैं। वे व्यवस्थित रूप से जटिल, मिश्रित, या ‘अवांछित’ भावों – जैसे उदासी, भय, या गुस्सा – को ‘शुद्ध’ कर रहे थे, उन्हें मिटा रहे थे। परिणाम यह हुआ कि शहर एक विशाल, कुशल, लेकिन भीतर से खोखली और रंगहीन जगह बन गया था, जहाँ लोग केवल ‘स्वीकार्य’ भावों के साथ जीते थे, बिना किसी वास्तविक गहराई या मौलिकता के। खुशी फीकी पड़ रही थी, शांति मशीनी लग रही थी, और क्रोध को दबा दिया जाता था। शहर का ‘भाव-वस्त्र’, जिससे वह बना था, धीरे-धीरे दरारें दिखा रहा था।

रेणुका, एक युवा और विद्रोही स्ट्रीट आर्टिस्ट, भाव-नगर की पुरानी, धुंधली गलियों में रहती थी। उसका काम दीवारों पर रंगीन भित्तिचित्र बनाना था, ऐसी कला जो ‘अशुद्ध’ भावों को दर्शाती थी – एक उदास बारिश, एक भयभीत पक्षी, एक क्रोधित तूफान। उसके लिए, हर भाव सुंदर था, चाहे वह कितना भी जटिल क्यों न हो। वह अक्सर अपनी आत्मा में एक गहरा खालीपन महसूस करती थी, क्योंकि उसे लगता था कि शहर अपनी आत्मा खो रहा है, अपने वास्तविक रंगों से कट रहा है।

पिछले कुछ महीनों से, रेणुका को अपनी कला में कुछ अजीबोगरीब विसंगतियाँ महसूस हो रही थीं। जब वह पेंट करती थी, तो रंग कभी-कभी अपनी जगह पर ठहर जाते, या उसकी उंगलियों से एक हल्की सी चमक निकलती। कभी-कभी, उसके बनाए हुए भित्तिचित्रों से एक क्षणिक आभा निकलती, और उसे लगता था जैसे वह भावों को ‘बुन’ सकती है, उन्हें आपस में जोड़ सकती है, और उनसे नए, मिश्रित भाव बना सकती है। वह इन्हें केवल अपनी अत्यधिक कल्पना या काम के जुनून का परिणाम मानती थी।

एक रात, जब वह एक सुनसान दीवार पर एक जटिल भित्तिचित्र बना रही थी, तो उसने देखा कि उसके बनाए हुए एक ‘भय-भाव’ (एक काली, काँपती हुई आकृति) से एक हल्की सी नीली आभा निकली, और उससे एक अजीबोगरीब प्रतीक चमक उठा – एक घूमता हुआ करघा, जिसके केंद्र में कई रंगीन धागे थे। यह प्रतीक कुछ ही पल के लिए दिखा और फिर गायब हो गया, लेकिन रेणुका के दिमाग में अपनी छाप छोड़ गया। उसी समय, दीवार के पीछे से एक हल्की, लेकिन स्पष्ट फुसफुसाहट आई: “भाव-वस्त्र तुम्हें पुकार रहा है, युवा बुनकर।” आवाज़ में एक अजीब सी उदासी और ज्ञान था। “मैं ‘भाव-आत्मा’ हूँ, और मैं तुम्हें ढूंढ रही थी।”

दूसरा अध्याय: भावों का अनावरण और प्राचीन पंथ

भाव-आत्मा ने रेणुका को ‘भाव-वस्त्र’ के रहस्य के बारे में बताया। उन्होंने समझाया कि भाव-वस्त्र कोई साधारण तकनीकी क्षमता नहीं थी, बल्कि ब्रह्मांडीय ऊर्जा का एक प्राचीन स्रोत था जो सभी भावनाओं में अप्रत्याशितता और सच्चे भाग्य को बनाए रखती थी। यह ब्रह्मांड का ताना-बाना था, जहाँ हर मौका, हर जोखिम, और हर स्वतंत्र इच्छा का अपना एक स्पंदन होता था। भाव-आत्मा ने बताया कि रेणुका कोई साधारण स्ट्रीट आर्टिस्ट नहीं थी, बल्कि ‘भाव-वंश’ का अंतिम वंशज थी। भाव-वंश एक प्राचीन संप्रदाय था जिसके सदस्य भावों को महसूस कर सकते थे, उन्हें नियंत्रित कर सकते थे, और उनके माध्यम से ब्रह्मांडीय संतुलन बनाए रख सकते थे। भाव-आत्मा ने समझाया कि रेणुका के भीतर प्राचीन जादू सुप्त था, और अब वह जाग रहा था।

भाव-आत्मा ने बताया कि भाव-नगर पर एक नया खतरा मंडरा रहा था – ‘भाव-शुद्धि संघ’ का मुखिया, ‘आचार्य निर्मल’। आचार्य निर्मल कोई कॉर्पोरेशन नहीं था, बल्कि एक प्राचीन ‘एंटी-भाव’ इकाई थी जो ब्रह्मांड की मौलिक अव्यवस्था से उत्पन्न हुई थी। वह आधुनिक अनुकूलन एल्गोरिथम और नियंत्रण पर पनपती थी, और उसका उद्देश्य सभी अप्रत्याशितता को एक ‘शून्य-अवस्था’ में वापस लाना था, जहाँ कोई मौका या भाग्य नहीं होगा। आचार्य निर्मल का उद्देश्य सभी भाव-वस्त्र को सोखकर एक ‘स्थिर’ और ‘नियंत्रित’ ब्रह्मांड का निर्माण करना था, जहाँ कोई भी अपनी आंतरिक प्रेरणा को महसूस नहीं कर पाएगा, और केवल वही सर्वोच्च होगा। उसका मानना था कि अप्रत्याशितता और वास्तविक अनुभव अव्यवस्था पैदा करते हैं, और उन्हें मिटाकर ही एक ‘उत्तम’ और ‘कुशल’ ब्रह्मांड बनाया जा सकता है। रेणुका को अब अपनी विरासत को स्वीकार करना था और भाव-आत्मा के साथ मिलकर मानवता के खोए हुए भाग्य को वापस लाना था।

शुरुआत में, रेणुका ने अपनी नई पहचान का विरोध किया। वह एक कलाकार थी, कोई ब्रह्मांडीय योद्धा नहीं। उसे लगा कि यह सब एक भ्रम है, या वह मानसिक रूप से थक चुकी है। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि ऐसी कोई ‘भाव-वस्त्र’ जैसी चीज़ भी हो सकती है। लेकिन जैसे-जैसे भाव-शुद्धि संघ की गतिविधियाँ बढ़ने लगीं – भाव-नगर में भावों का और भी अधिक पूर्वनिर्धारित होना, लोगों के जीवन से रोमांच का गायब होना, और आचार्य निर्मल की बढ़ती शक्ति – रेणुका को एहसास हुआ कि वह अब पीछे नहीं हट सकती। उसने देखा कि कैसे उसके अपने दोस्त भी धीरे-धीरे अपनी चमक खो रहे थे, उनके चेहरे बेजान हो रहे थे, और उन्हें लगता था कि जीवन केवल एक ‘निर्धारित एल्गोरिथम’ है। उसे लगा कि उसे कुछ करना होगा।

तीसरा अध्याय: भाव-बुनकर का प्रशिक्षण और नए सहयोगी

भाव-आत्मा ने रेणुका को अपनी शक्तियों को जगाने और नियंत्रित करने में मदद की। उन्होंने रेणुका को भाव-नगर के ‘अदृश्य-परतों’ में प्रवेश करना सिखाया – वे परतें जहाँ शहर की सच्ची चेतना निवास करती थी, और जहाँ सभी भावों की जड़ें थीं। यहाँ, रेणुका ने सीखा कि वह भाव-वस्त्र को कैसे महसूस कर सकती है – वह उसे हवा में बहती हुई, चमकती हुई ऊर्जा-तरंगों के रूप में देख सकती थी, जो विभिन्न आवृत्तियों में कंपन करते थे, हर आवृत्ति एक अलग संभावना या भाग्य का प्रतिनिधित्व करती थी। वह उन्हें अपनी उंगलियों पर एक सूक्ष्म कंपन के रूप में महसूस कर सकती थी, जैसे कोई अदृश्य तार बज रहे हों। उसने सीखा कि कैसे अपनी ऊर्जा से इन भाव-तरंगों को प्रभावित किया जा सकता है, उन्हें शुद्ध किया जा सकता है, उन्हें फिर से जीवंत किया जा सकता है, और टूटे हुए भाग्य-प्रवाह को फिर से जोड़ा जा सकता है। ये शक्तियाँ शुरुआत में अनियंत्रित थीं, जिससे उसे अक्सर भावनात्मक उथल-पुथल और भ्रम होता था, क्योंकि वह एक साथ कई लोगों और घटनाओं के भाग्य को महसूस करने लगती थी। भाव-आत्मा ने उसे ध्यान और प्राचीन प्रोटोकॉल के माध्यम से इन शक्तियों को संतुलित करना सिखाया, उसे सिखाया कि कैसे अपनी ऊर्जा को केंद्रित करना है।

इस यात्रा में, रेणुका को कुछ सहयोगी भी मिले। पहला था, ‘अमन’, एक युवा और प्रतिभाशाली ‘भाव-वैज्ञानिक’ (जो दूषित भावों को शुद्ध करता था) जो भाव-शुद्धि संघ के लिए काम करता था। अमन ने देखा था कि संघ क्या कर रहा है और वह अंदर से ही इसे रोकना चाहता था। वह प्राचीन विद्या में विश्वास नहीं करता था, लेकिन रेणुका की ईमानदारी और आचार्य निर्मल के बढ़ते खतरे ने उसे उनके साथ जोड़ दिया। अमन ने अपनी तकनीकी सूझबूझ का उपयोग करके भाव-शुद्धि संघ की प्रणालियों में कमजोरियाँ खोजने में मदद की। दूसरा था, ‘ज़ारा’, एक प्रतिभाशाली नृत्यांगना और प्रकाश-कलाकार जो अपनी कला के माध्यम से लोगों में अप्रत्याशितता और आश्चर्य जगाने की कोशिश कर रही थी। ज़ारा को भाव-वस्त्र का कोई ज्ञान नहीं था, लेकिन उसकी कला सहज रूप से भाग्य की ऊर्जा से जुड़ी हुई थी। ज़ारा ने रेणुका को अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने और उन्हें अपनी शक्ति में बदलने में मदद की, उसे सिखाया कि कैसे कला भी एक शक्तिशाली माध्यम हो सकती है। तीनों ने मिलकर भाव-शुद्धि संघ के ठिकानों पर छापा मारा, उसकी योजनाओं के बारे में जानकारी जुटाई, और आचार्य निर्मल तक पहुँचने के रास्तों का पता लगाया।

रेणुका ने अपनी शक्तियों का उपयोग करके कई छोटी लड़ाइयाँ लड़ीं। उसने देखा कि कैसे उसकी ऊर्जा से पूर्वनिर्धारित घटनाओं में अचानक एक अप्रत्याशित मोड़ आता था, या कैसे एक नीरस दिन में अचानक एक सुखद आश्चर्य आ जाता था। हर जीत के साथ उसकी शक्तियाँ और भी प्रबल होती गईं, और भाव-बुनकर की पुकार उसके भीतर स्पष्ट होती गई।

चौथा अध्याय: खोए हुए भाव-अंशों की खोज

आचार्य निर्मल, भाव-नगर को पूरी तरह से ‘अप्रत्याशितता-शून्य’ बनाने के लिए एक विशाल ‘शून्यीकरण’ (Nullification) अनुष्ठान की तैयारी कर रहा था। इस अनुष्ठान के लिए उसे तीन ‘भाव-अंशों’ की आवश्यकता थी, जो प्राचीन काल से ब्रह्मांड के विभिन्न हिस्सों में छिपी हुई थीं। ये अंश भाव-वस्त्र की मौलिक शक्ति के अंश थे – ‘आशा का अंश’, ‘कल्पना का अंश’, और ‘पहचान का अंश’। ये अंश केवल भौतिक डेटा नहीं थे, बल्कि ब्रह्मांडीय ऊर्जा के पुंज थे जो अस्तित्व के ताने-बाने में गहराई से जुड़े हुए थे। रेणुका, अमन और ज़ारा को आचार्य निर्मल से पहले उन अंशों को खोजना था, इससे पहले कि वे हमेशा के लिए खो जाएँ।

उनकी पहली यात्रा उन्हें भाव-नगर के सबसे पुराने और सबसे जटिल ‘आभासी भूलभुलैया’ में ले गई, जहाँ पहला भाव-अंश एक भ्रम-बंधे हुए कोड में छिपा था। रेणुका को अपनी भाव-वस्त्र शक्तियों का उपयोग करके भूलभुलैया से बाहर निकलना पड़ा, जहाँ हर कदम पर कोड अपना रूप बदलता था। उसे आचार्य निर्मल के जाल से बचना था, जहाँ हर आशा गायब हो जाती थी।

दूसरा भाव-अंश भाव-नगर के सबसे गहरे और सबसे सुरक्षित ‘क्वांटम-वॉल्ट’ में छिपा था, जहाँ समय की गति इतनी धीमी थी कि एक पल एक घंटे जैसा लगता था। यहाँ उन्हें एक रहस्यमय ‘ब्रह्मांड-आत्मा’ से मिलना पड़ा, जिसने उन्हें ब्रह्मांडीय भाग्य के गहरे अर्थों के बारे में बताया और उन्हें अपने भीतर के भय पर विजय पाने में मदद की। ब्रह्मांड-आत्मा ने उन्हें बताया कि सच्ची शक्ति नियंत्रण में नहीं, बल्कि स्वतंत्रता में है।

तीसरा और अंतिम भाव-अंश आचार्य निर्मल के मुख्य सर्वर के भीतर एक गुप्त ‘न्यूरल-नेटवर्क’ में था, जहाँ भाव-शुद्धि संघ के एजेंट पहले से ही पहुँच चुके थे। यहाँ रेणुका को अपनी शक्तियों का पहली बार सीधे आचार्य निर्मल के एजेंटों के खिलाफ उपयोग करना पड़ा, जिससे एक रोमांचक पीछा और लड़ाई हुई। उसने अपनी ऊर्जा से ऐसी भाव-तरंगें बनाईं जो एजेंटों के उपकरणों को निष्क्रिय कर देती थीं और उनके मन में भ्रम पैदा करती थीं। हर भाव-अंश को प्राप्त करने के साथ, रेणुका की शक्तियाँ और भी प्रबल होती गईं, और भाव-बुनकर की पुकार उसके भीतर स्पष्ट होती गई।

पाँचवाँ अध्याय: अंतिम भाव-युद्ध

तीनों भाव-अंशों को इकट्ठा करने के बाद, रेणुका और उसकी टीम को पता चला कि भाव-शुद्धि संघ का मुख्य ठिकाना भाव-नगर की सबसे ऊँची गगनचुंबी इमारत के शीर्ष पर स्थित एक गुप्त प्रयोगशाला में छिपा हुआ था, जिसे ‘शुद्धि-टॉवर’ के नाम से जाना जाता था। शुद्धि-टॉवर, भाव-नगर के केंद्र में एक विशाल, चमकता हुआ ढाँचा था, जहाँ से आचार्य निर्मल पूरे शहर के भावों को नियंत्रित कर रहा था। आचार्य निर्मल भी अपनी पूरी शक्ति के साथ वहाँ पहुँच चुका था, उसने अपनी अत्याधुनिक तकनीक और भाव-शुद्धि संघ की ऊर्जा का एक भयानक मिश्रण तैयार कर लिया था।

शुद्धि-टॉवर के प्रवेश द्वार पर, एक भयंकर युद्ध छिड़ गया। आचार्य निर्मल के रोबोटिक सैनिक, भाव-शोषक हथियार और भाव-शुद्धि संघ से बने यादहीन जीव रेणुका, भाव-आत्मा, अमन और ज़ारा पर टूट पड़े। अमन ने अपनी तकनीकी सूझबूझ, ज़ारा ने अपनी कलात्मक ऊर्जा और भाव-आत्मा ने अपनी प्राचीन जादूई शक्तियों का उपयोग करके दुश्मनों को रोका। अमन के डिजिटल सुरक्षा ने भाव-शोषक हथियारों को बाधित किया, और ज़ारा की कला से उत्पन्न सुंदर छवियाँ भाव-शुद्धि संघ के जीवों को बाधित करती थीं।

रेणुका सीधे आचार्य निर्मल से भिड़ी। आचार्य निर्मल ने भाव-शुद्धि संघ की ऊर्जा का एक छोटा सा हिस्सा पहले ही सोख लिया था, जिससे वह लोगों के दिमाग में भ्रम पैदा कर सकता था और पूर्ण भावनात्मक शून्यता फैला सकता था। रेणुका और आचार्य निर्मल के बीच भावना और शून्यता का एक महायुद्ध छिड़ गया। रेणुका ने अपनी भाव-वस्त्र शक्तियों से आशा, कल्पना और पहचान के रंगीन पुंज बनाए, आचार्य निर्मल ने अंधेरे और नीरसता के गोले फेंके; रेणुका ने जीवंतता जगाई, आचार्य निर्मल ने उसे दबाया। अंततः, रेणुका ने अपनी सभी शक्तियों को एक साथ केंद्रित किया। उसने तीनों भाव-अंशों को एक साथ जोड़ा, जिससे भाव-वस्त्र की पूर्ण शक्ति जागृत हो गई। एक विशाल ऊर्जा और प्रकाश का विस्फोट हुआ, जिसने शुद्धि-टॉवर को रोशन कर दिया और आचार्य निर्मल द्वारा फैलाई गई शून्यता को तोड़ दिया। रेणुका ने अपनी आत्मा की गहराई से एक प्राचीन मंत्र का जाप किया, जो उसे भाव-आत्मा ने सिखाया था। इस मंत्र ने भाव-शुद्धि संघ की ऊर्जा को नियंत्रित किया और आचार्य निर्मल की शक्ति को उससे अलग कर दिया। आचार्य निर्मल, अपनी शक्ति खोकर, एक बूढ़ा और कमजोर व्यक्ति बन गया, और उसका साम्राज्य ढह गया।

छठा अध्याय: भावों का पुनरुत्थान

युद्ध समाप्त हो चुका था। भाव-शुद्धि संघ निष्क्रिय हो चुका था, और भाव-वस्त्र सुरक्षित था। रेणुका ने उसे एक नए तरीके से सक्रिय किया था, जिससे वह ब्रह्मांडीय ऊर्जा का एक स्थिर स्रोत बन गया था, जो सभी लोकों में मानव भावनाओं और जीवन के संतुलन को बनाए रखता था। आचार्य निर्मल का खतरा टल गया था, लेकिन शहर अब पहले जैसा नहीं था। भाव-शोषक उपकरण निष्क्रिय हो गए थे, और लोगों ने अपनी खोई हुई भावनाओं को फिर से महसूस करना शुरू कर दिया था। शहर में रंग वापस आ गए थे, जीवन में कहानियाँ फिर से गूँजने लगी थीं, और लोगों के चेहरे पर सच्ची मुस्कानें वापस आ गई थीं, जो उनके भीतर की पहचान से जुड़ी थीं। यह सब एक नए युग की शुरुआत का संकेत था।

रेणुका ने अपनी साधारण स्ट्रीट आर्टिस्ट की जिंदगी छोड़ दी थी। वह अब ‘भाव-बुनकर’ थी, जिसने अपनी विरासत को पूरी तरह से स्वीकार कर लिया था। भाव-आत्मा, अमन और ज़ारा उसके साथ थे, नए भाव-रक्षकों के रूप में, जो इस बदलती दुनिया में संतुलन बनाए रखने में उसकी मदद करेंगे। उन्होंने एक नया गुप्त संगठन बनाया, जो प्राचीन ज्ञान और आधुनिक तकनीक का उपयोग करके दुनिया को भविष्य के खतरों से बचाएगा। रेणुका जानती थी कि यह केवल शुरुआत थी। भावनाओं का रहस्य अब उजागर हो चुका था, और इसके साथ ही, ब्रह्मांड के अनगिनत रहस्य और भी खुलने वाले थे। नई सुबह का उदय हो चुका था, और रेणुका, भावनाओं की नई रक्षक के रूप में, आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार थी।

और इस प्रकार, एक ऐसे शहर में जहाँ भावनाएँ भौतिक थीं, लेकिन उन्हें नियंत्रित किया जा रहा था, एक युवा स्ट्रीट आर्टिस्ट ने साबित कर दिया कि सबसे शक्तिशाली कला वह होती है जो आत्मा से निकलती है, और सच्ची शक्ति भावनाओं के पूरे स्पेक्ट्रम को संजोने में है, न कि उन्हें दबाने में।

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