मुरली की मूंछ
जब एक मूंछ ने पूरे शहर को हिला दिया
यह कहानी है मुरलीलाल गुप्ता की — जिनकी उम्र थी 47 साल, काम था मिठाई की दुकान, और शौक था मूंछों को ऐसे ताव देना जैसे हर सुबह उनका इंटरव्यू टी.वी. पर हो। मुरली को अपनी मूंछों पर इतना गर्व था कि वो अपने आधार कार्ड की फोटो में भी उन्हें दो उंगलियों से ऊपर उठा कर खिंचवाना चाहता था। पर एक दिन जब उसकी मूंछ अपने ‘मूड’ में नहीं आई, तो शुरू हुई एक ऐसी हास्यास्पद यात्रा, जिसमें शामिल हुए नाई, डॉक्टर, बाबा, टीवी रिपोर्टर, और अंत में तो एक विदेशी वैज्ञानिक भी। यह कहानी है एक आदमी और उसकी मूंछ के बीच गहराते झगड़े की, जो धीरे-धीरे देश का मुद्दा बन जाती है।
मुरली की दुनिया
मुरली की मिठाई की दुकान का नाम था — “गुप्ता हलवाई और मूंछ केंद्र”।
क्योंकि दुकान में मिठाई भले कम बिके, पर मूंछों की चर्चा ज़्यादा होती थी।
हर ग्राहक से मुरली कहता —
“रसगुल्ला खाओ, मूंछों की कसम खाकर जाओ।”
मुरली की मूंछें इतनी लंबी थीं कि हवा चले तो पहले मूंछें झूलतीं, फिर खुद मुरली पीछे आता।
बच्चे उन्हें देखकर गली में गाना गाते —
“मूंछों वाला मुरली भैया, मारे ताव से बिजली फैला!”
मूंछ का विद्रोह
एक दिन सुबह जब मुरली सोकर उठा और आइने में अपनी मूंछों को ताव देने लगा, तो एक तरफ की मूंछ ने ताव लेने से इनकार कर दिया।
ताव तो क्या, वह एकदम चुपचाप नीचे लटक गई जैसे किसी आशिक का दिल टूट गया हो।
मुरली चीखा —
“हे भगवान! ये मूंछ क्यों नीचे हो गई? ये तो मेरी पहचान है!”
उसने तुरंत अपना मोबाइल निकाला, और दुकान बंद करके सीधा गया — नाई बबलू के पास।
नाई की नई मुसीबत
बबलू ने मुरली की मूंछ देखी, और धीरे से बोला —
“भैया, शायद यह भावनात्मक मूंछ है। नाराज़ हो गई होगी।”
मुरली ने जवाब दिया —
“मूंछ नाराज़ नहीं होती, मूंछ तो आत्मा होती है!”
बबलू ने कई कंघियाँ बदलीं, तीन तरह की जैल लगाई, पर मूंछ ऊपर न हुई।
तब मुरली बोला —
“बबलू, अगर तूने मेरी मूंछ न उठाई, तो मैं तुझे बालों की कसम देकर दुकान बंद करवा दूँगा।”
बबलू ने डरकर कहा —
“भैया, डॉक्टर के पास चलो… अब यह केस मेडिकल हो गया है।”
डॉक्टर का निदान
डॉक्टर शर्मा ने मूंछ की बारीकी से जांच की।
ऑप्टिकल टॉर्च से मूंछ को देखा, स्टेथोस्कोप लगाया (हालाँकि वह सीने के लिए होता है, पर डॉक्टर भी कन्फ्यूज़ था), फिर बोले —
“यह नर्वस ब्रेकडाउन है। आपकी मूंछ तनाव में है।”
मुरली हक्का-बक्का —
“मतलब मेरी मूंछ डिप्रेशन में है?”
डॉक्टर ने सिर हिलाया —
“हाँ। मूंछ शायद रोज़ ताव खा-खाकर थक गई है। अब उसे छुट्टी चाहिए।”
बाबा का बुलावा
अब मुरली पहुँचा शहर के प्रसिद्ध बाबा “घंटानंद” के पास, जो हर चीज़ में घण्टा बजाकर समाधान निकालते थे।
बाबा बोले —
“ओ मूंछे ना उठती? ओ ये तो गहन कर्म बाधा है!”
उन्होंने 21 नारियल फोड़े, मूंछ पर गुलाबजल छिड़का, और फिर बोले —
“अब रोज़ मूंछ को गुड मॉर्निंग मूंछ जी बोलो। थोड़ा प्यार मिलेगा तो ताव खुद आ जाएगा।”
मीडिया का तूफान
अब तक बात फैल चुकी थी।
“एक प्रसिद्ध हलवाई की मूंछों ने किया विद्रोह!”
— इस हेडलाइन के साथ टीवी चैनल वालों ने मुरली की दुकान पर डेरा डाल लिया।
एक रिपोर्टर ने पूछा —
“आप इस मूंछ संकट को कैसे देख रहे हैं?”
मुरली बोला —
“देखिए, ये मेरी व्यक्तिगत नहीं, सामाजिक मूंछ है। यह इज्ज़त का सवाल है। मैं तब तक मिठाई नहीं बेचूंगा, जब तक मूंछ ऊपर नहीं आएगी!”
विदेशी दखल
फ्रांस से एक वैज्ञानिक आया — पिएरे मूंछो।
उसने कहा —
“वी हेव स्टडीड ज़ी इंडियन मूंछ स्ट्रक्चर। इट्स अ लाइविंग आइडेंटिटी।”
उसने मूंछ पर एक मशीन लगाई, जो बोले तो मूंछों की ‘भावनाएँ’ मापती थी।
मशीन ने बीप किया और स्क्रीन पर लिखा आया —
“I feel neglected.”
पूरा देश सन्न।
मुरली बोला —
“हे मूंछ महाराज, हमने ताव ज़्यादा दिया, सम्मान कम… माफ कर दो।”
अंतिम मोड़
अगली सुबह मुरली ने मूंछों को ताव नहीं दिया।
उन्हें गुलाबजल से धोया, मुलायम कंघी की, और धीरे से कान में फुसफुसाया —
“आज से तुम मेरी शान नहीं, मेरी जान हो।”
और चमत्कार हुआ —
मूंछ फिर से ऊपर हो गई, वो भी ज़्यादा घुमाव के साथ।
मुरली खुशी से दौड़ पड़ा गली में, नाचते हुए बोला —
“उठ गई… मूंछ उठ गई!”
मोहल्ले ने ताली बजाई, लड्डू बांटे गए, और बच्चों ने गाना बनाया —
“जो न ताव से उठी, वो प्यार से उठी — मुरली भैया की मूंछ कभी न झुकी!”
और इस तरह, मुरली की मूंछ ने सिखाया कि इज्ज़त जबरदस्ती नहीं दी जाती, वो स्नेह से मिलती है। अब मुरली दुकान पर हर ग्राहक को दो रसगुल्ले के साथ एक सलाह देता है — ‘मूंछ हो या मन, रोज़ बात करना ज़रूरी है।’
समाप्त
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