धागों का सच
धागों का सच एक युवा टेक्सटाइल डिज़ाइनर, इशिता, शहर की चकाचौंध से थककर अपने गाँव लौटती है। उसे अपनी दादी, सुमित्रा, की एक पुरानी डायरी मिलती है, जिसमें एक खोई हुई बुनाई तकनीक का राज़ छिपा है। गाँव का एक शक्तिशाली व्यापारी, रघुबीर, उनकी ज़मीन और बुनाई वर्कशॉप को खरीदना चाहता है। इशिता, एक युवा इतिहासकार मयंक की मदद से, अपनी दादी और रघुबीर के पिता, अमरनाथ, के बीच के...