राजमहल का रहस्य
संक्षिप्त परिचय: उत्तर भारत के एक पुराने शहर ‘नवगढ़’ में स्थित ‘शाहविलास महल’ वर्षों से वीरान पड़ा था। यह महल किसी ज़माने में नवगढ़ के अंतिम राजा, महाराज प्रतापसिंह का निवास हुआ करता था। अचानक शहर में यह चर्चा फैलने लगी कि महल के खंडहरों में रात को किसी औरत की चीख़ सुनाई देती है, और उसके बाद उसी रात शहर के किसी प्रतिष्ठित नागरिक की रहस्यमयी मृत्यु हो जाती है। जब चार लगातार हत्याएं हो गईं, तो मामले की जाँच के लिए डिटेक्टिव शिवा और सोनिया को बुलाया गया। यह केस केवल आत्माओं और अफवाहों का नहीं, बल्कि इतिहास के भीतर छिपी ऐसी सच्चाई थी, जो किसी ने दशकों से जानबूझकर दफना रखी थी।
कहानी:
नवगढ़ का शाहविलास महल अब सरकारी संरक्षण में था, पर वहाँ जाने की अनुमति नहीं थी। लेकिन शहर के चार प्रमुख लोगों की मौत—हर बार महल के पास से चीख़ सुनने के बाद—ने पूरे प्रशासन को हिला दिया था। मरने वालों में से दो व्यापारी, एक शिक्षक और एक पूर्व मंत्री थे। दिलचस्प बात यह थी कि इन चारों ने कुछ महीने पहले मिलकर शाहविलास महल को एक निजी होटल में बदलने की योजना सरकार के पास पेश की थी।
शिवा और सोनिया जब महल पहुँचे, तो उन्होंने पाया कि वहाँ जाने की रोक के बावजूद, महल के पिछले हिस्से में ज़मीन पर ताज़ा पैरों के निशान थे। साथ ही दीवार पर एक काले चारकोल से बनी हुई आकृति थी—एक स्त्री जिसे ज़ंजीरों से बांधा गया था, और नीचे लिखा था: “न्याय दो”।
सोनिया ने तुरंत पूछा, “क्या कोई औरत कभी इस महल में क़ैद रखी गई थी?”
पुरालेख विभाग की फ़ाइलों से पता चला कि महाराज प्रतापसिंह की एक रक़ासा प्रेमिका थी—गुल अफ़शां—जिसे उन्होंने चोरी और जासूसी के शक में ज़िंदा दीवार में चिनवा दिया था। लेकिन इस घटना का कोई औपचारिक दस्तावेज़ नहीं मिला था।
शिवा ने शहर की पुरानी अदालतों के रेकॉर्ड खंगाले और पाया कि एक अंग्रेज़ अफसर ने 1935 में इस मामले की सुनवाई की थी, लेकिन उसे तुरंत बंद कर दिया गया।
तभी एक नई मौत हुई—इस बार एक महिला पत्रकार प्रियंका शेखर की, जो गुल अफ़शां पर डॉक्यूमेंट्री बना रही थी। उसकी डायरी शिवा को उसके घर से मिली, जिसमें लिखा था:
“महल के नीचे सुरंग है… उसमें गुल अफ़शां का कमरा अब भी वैसा ही है।”
शिवा और सोनिया रात के समय महल में घुसे। पुराने नक्शे के अनुसार, उन्होंने फर्श के नीचे पत्थर हटाया, और वहाँ एक संकरी सीढ़ी मिली। सीढ़ियों के नीचे एक पुराना तहखाना था—दीवारें नम थीं, पर दीवार पर वही आकृति उकेरी गई थी। एक कोने में राख और टूटी चूड़ियों का ढेर था। और एक पत्थर की पट्टी जिस पर खुदा था:
“यहाँ गुल अफ़शां को 17 अगस्त 1931 को अंतिम बार देखा गया।”
अब प्रश्न था—आख़िर कौन मार रहा था इन लोगों को? आत्मा, या कोई जीवित इंसान?
शिवा ने अंतिम पीड़ितों की कॉल रिकॉर्डिंग निकलवाई। सभी को किसी महिला ने कॉल कर महल बुलाया था—नाम नहीं बताया गया। लेकिन कॉल ट्रेस करने पर पाया गया कि वह सिम कार्ड एक ही व्यक्ति के नाम पर जारी हुआ था—मेहरून्निसा बेगम, जो नवगढ़ की एक कलाविद और शास्त्रीय गायिका थीं। वे गुल अफ़शां की वंशज थीं, और उनके पूर्वजों ने उस दौर में दरबार में सेवाएँ दी थीं।
मेहरून्निसा से पूछताछ करने पर पहले उन्होंने सब नकारा, लेकिन जब सबूत दिखाए गए, तो टूट पड़ीं:
“उन लोगों ने मेरी परदादी को धोखा दिया, उसका प्यार छीन लिया और उसे ज़िंदा दफ़ना दिया। मैं इस अन्याय का हिसाब माँग रही थी। जो चार लोग मरे, वही इस योजना के पीछे थे कि महल को रिसॉर्ट बनाकर उसमें ‘कल्चर शो’ में गुल अफ़शां को अश्लील अंदाज़ में चित्रित किया जाए। ये मेरे खून का अपमान था।”
लेकिन जब सोनिया ने पूछा कि पत्रकार प्रियंका को क्यों मारा, तो मेहरून्निसा चुप हो गईं। तभी शिवा बोले:
“क्योंकि वह सच्चाई दिखाना चाहती थी, बदला नहीं। उसे मारकर आपने खुद को उसी हिंसा के रास्ते पर डाल दिया, जिसकी आप निंदा करती थीं।”
मेहरून्निसा को गिरफ़्तार किया गया। अदालत ने उन्हें मानसिक अस्थिरता के आधार पर मनोवैज्ञानिक निगरानी में भेजा, लेकिन गुल अफ़शां की कब्र को सम्मानपूर्वक समाधि में बदला गया। उसकी स्मृति में एक स्मारक बनाया गया, जिसमें लिखा गया:
“जिसे न्याय नहीं मिला, उसे अब सम्मान मिले।”
शिवा बोले, “इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि वह कभी अपने पीड़ितों की आवाज़ नहीं दर्ज करता… लेकिन अगर हम सुनें, तो वे अब भी चीख़ते हैं।”
समाप्त