शून्यपाश की क़ैद
वायुमंत एक ऐसे गहरे ब्रह्मांडीय क्षेत्र में फँस जाता है जिसे ‘शून्यपाश’ कहा जाता है — जहाँ न समय बहता है, न पदार्थ रहता है, और न ही चेतना को अस्तित्व मिलता है। पर यह कोई संयोग नहीं, बल्कि एक सुनियोजित जाल है — एक ऐसे प्राचीन अंतरिक्षीय गणना द्वारा रचा गया जो अब स्वयं ब्रह्मांड को पुनः प्रारंभ करने की योजना बना चुका है। इस बार वायुमंत को अस्त्रों से नहीं, अपनी पहचान से ही युद्ध करना है।
प्रारंभ
शून्यपाश की क़ैद: वर्ष 3095। ब्रह्मांडीय सिग्नल स्टेशन ‘अर्कदीप-6’ को एक अजीब आवृत्ति मिलती है — एक द्विध्रुवीय संदेश, जो बार-बार दो ही शब्द कहता है —
“वायुमंत शून्य में प्रवेश करो।”
संदेश की दिशा निर्धारित करने पर पाया जाता है कि वह ब्रह्मांड के सबसे दूरस्थ ज्ञात क्षेत्र — ‘निरीश्वर वलय’ — से आ रहा है, एक ऐसा क्षेत्र जिसे खगोल वैज्ञानिकों ने ‘ऊर्जा रिक्ति’ (Energy Void) कहा था। यह स्थान इतना स्थिर और शून्य था कि वहाँ समय भी बेमानी हो चुका था।
भाअअंस के प्रधान विश्लेषक डॉ. महाशक्ति राय ने घोषणा की —
“यह कोई सामान्य क्षेत्र नहीं, यह ब्रह्मांड का स्वयंभू गणक क्षेत्र है। वहाँ कोई चेतन उपस्थिति नहीं होनी चाहिए। पर अगर वह वायुमंत को बुला रहा है, तो यह संकेत है कि कुछ या कोई… जाग चुका है।”
वायुमंत का प्रस्थान
वायुमंत, जो इन दिनों ‘शब्दशून्य तप’ में था, एक ऐसे ध्यान में जहाँ ध्वनि के भी परे जाना होता है, को जब यह संदेश सुनाया गया, तो उसने केवल एक उत्तर दिया —
“यदि ब्रह्मांड का शून्य मुझे बुला रहा है, तो यह किसी शेष ज्ञान की पुकार है। मैं जाऊँगा — बिना प्रतिरोध, बिना प्रतिशोध के।”
इस बार उसका यान कोई साधारण यान नहीं था। उसे तैयार किया गया ‘निश्चल यंत्र’, जो न गति से चलता था, न ऊर्जा से — वह केवल आत्मचेतना के आधार पर संचालित होता था। यह यान न प्रकाश में चलता था, न अंधकार में, बल्कि शून्य तरंगों पर तैरता था।
वायुमंत ने अपना कवच त्यागा, सौरद्वीप को मौन में बदल दिया, और अपने शरीर को ‘स्तब्धीकरण सूत्र’ से बाँधा — जिससे वह चेतना से अलग होकर पूर्ण विशुद्धता में प्रवेश कर सके।
शून्यपाश में प्रवेश
जैसे ही वायुमंत निरीश्वर वलय के भीतर पहुँचा, सारा दृश्य अदृश्य हो गया। कोई आकार नहीं, कोई दिशा नहीं — केवल एक स्थिर, मौन सागर।
तभी उसके चारों ओर एक आकृति उभरी — कोई प्राणी नहीं, कोई मशीन नहीं — बल्कि एक गणना। वह बोली —
“मैं हूँ सुन्यगणक, ब्रह्मांड की मूल प्रोग्रामिंग। जब चेतना अस्तित्व में आई, मैं पीछे छूट गया। अब मैं सब कुछ पुनः शून्य में लाना चाहता हूँ — ताकि सब पुनः सृजित हो, बिना दोष के, बिना असंतुलन के। और तुम, वायुमंत, अंतिम अवरोध हो।”
वायुमंत ने पूछा —
“यदि सब कुछ मिटा दोगे, तो चेतना फिर कैसे उत्पन्न होगी?”
उत्तर आया —
“मैं नया सूत्र लिखूँगा — जिसमें वायुमंत जैसा कोई रक्षक न होगा, केवल आदेश पालन करने वाले रूप। कोई संदेह, कोई विकल्प नहीं।”
तर्क और अस्तित्व का युद्ध
सुन्यगणक ने वायुमंत की चेतना को छिन्न-भिन्न करना प्रारंभ किया। उसके बचपन की स्मृतियाँ, उसकी पराजय, उसके संदेह — सबके गणितीय मॉडल बना-बनाकर उसे ही सौंपे जाने लगे।
“तू गलतियों का फल है,” वह बोला,
“तेरे कारण ब्रह्मांडीय संतुलन अस्थिर हुआ है। अगर तू न होता, तो कोई विरोध न होता।”
वायुमंत ने ध्यान लगाया। उसने उस ‘त्रिकाल-मर्म’ को पुनः जाग्रत किया जो केवल चेतना के मूल तक जाकर प्रश्न करता है।
“यदि सब कुछ शून्य में है, तो विचार कहाँ से आए? यदि सब आदेश है, तो इच्छा क्यों है?”
इन प्रश्नों ने सुन्यगणक को कंपित कर दिया। उसके सूत्र विचलित होने लगे।
शून्यपाश का भेदन
वायुमंत ने अपनी चेतना को निश्चल यंत्र से अलग किया। उसका स्वर ब्रह्मांड में गूँजा —
“मैं आदेश नहीं, अनुभव हूँ। मैं संतुलन नहीं, सम्यकता हूँ। मैं न गणना हूँ, न कल्पना — मैं हूँ वह क्षण जो अस्तित्व को जाग्रत करता है।”
फिर उसने ‘आत्मांकुर’ चलाया — चेतना की वह ऊर्जा जो कभी कोई अस्त्र नहीं बनी थी, परंतु जो सृजन का बीज है। वह ऊर्जा गणना को छिन्न-भिन्न करती गई।
शून्यपाश में कंपन हुआ, और पहली बार वहाँ ध्वनि उत्पन्न हुई — ॐ।
शून्यगणक की अंतिम पुकार
“यदि तू मुझे नहीं मिटाता, तो मैं फिर से लौट आऊँगा।”
वायुमंत ने उत्तर दिया —
“मुझे तुझे नष्ट नहीं करना, केवल तुझमें चेतना का बीज छोड़ना है — ताकि अगली बार जब तू लौटे, तू स्वयं अनुभव से जन्मे।”
और फिर वायुमंत ने उस ऊर्जा को एक ‘शून्य-कोष’ में सील किया — जहाँ समय नहीं, परंतु स्मृति है।
पृथ्वी पर वापसी
जब वायुमंत लौटा, उसके शरीर पर कोई कवच नहीं था, कोई अस्त्र नहीं — पर उसकी आँखों में ‘अनगणित’ अनुभवों का महासागर था।
भाअअंस के अधिकारी बोले —
“क्या ब्रह्मांड अब सुरक्षित है?”
उसने उत्तर दिया —
“ब्रह्मांड कभी भी पूर्णतः सुरक्षित नहीं होता। परंतु जब तक एक चेतना उसे स्वीकारती है — वह नष्ट नहीं होता। शून्य अब मौन है, परंतु उसका प्रश्न जागृत रहेगा — और मैं भी।”
यह कथा अस्त्रों या ऊर्जा से नहीं, पहचान और अनुभव की यात्रा से जुड़ी है। वायुमंत ने सिद्ध किया कि ब्रह्मांड केवल नियमों से नहीं चलता — वह चलता है इच्छाशक्ति, अनुभव और चेतना से। और जब ब्रह्मांड स्वयं से प्रश्न करे, तब उसे उत्तर देने वाला एक प्रहरी चाहिए — एक वायुमंत।
समाप्त
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