शून्य काल: रक्त और लोहा का दिन
संक्षिप्त परिचय
वर्ष २०९६ — दिल्ली का दिल कहलाने वाला क्षेत्र इंडिया ज़ोन-० अचानक एक अप्रत्याशित सैन्य संकट का गवाह बनता है। कोई साज़िश नहीं, कोई षड्यंत्र नहीं, कोई रहस्यमय तकनीक नहीं — बस सीधी जंग। एक निजी सुरक्षा एजेंसी “ZK-सिक्योरिटी” के 400 जवान, जो वर्षों से दिल्ली के व्यावसायिक क्षेत्र में तैनात थे, अपने करार के विरुद्ध, अचानक हथियारों से लैस एक विद्रोही बल बन जाते हैं और एक साथ 11 मुख्य भवनों पर कब्ज़ा कर लेते हैं। प्रशासन और सरकार पीछे हट जाती है क्योंकि ज़ोन-० में भारी नागरिक उपस्थिति है।
लेकिन उस दिन कुछ ऐसे लोग आगे आते हैं जो न तो सरकारी हैं, न विशेष बल — बल्कि साधारण शरीर, असाधारण हिम्मत और हथियार तथा बिना हथियार दोनों से लड़ने की कला में निपुण। ये कहानी है एक ऐसा दिन जब भारत के आधुनिक शहर में खुली सड़कों पर शुद्ध एक्शन हुआ — न कोई रोमांच, न कोई रहस्य, केवल हड्डी तोड़, लोहे चीर, सीने से सीना भिड़ंत।
भाग १: सुबह जो सामान्य थी
५ अप्रैल २०९६ की सुबह दिल्ली में सामान्य थी। इंडिया ज़ोन-०, जो हाई-सिक्योरिटी टेक्नोलॉजी कंपनियों, नीति आयोग, और अंतरराष्ट्रीय कार्यालयों का केंद्र था, अपने सामान्य रूप में जागता है। लेकिन १०:०० बजे अचानक ११ इमारतों में से हर एक की सुरक्षा पर तैनात ZK-सिक्योरिटी बल के जवान अपने हथियार प्रशासन की ओर घुमा देते हैं और नारा लगाते हैं —
“अब यह इलाका हमारा है।”
पूरे ज़ोन को घेर लिया जाता है, बाहरी सिग्नल बंद, पुलिस को रोक दिया जाता है, और आम लोगों को इमारतों में बंधक बना लिया जाता है।
भाग २: एक सीधा निर्णय
पूरे शहर में डर फैल जाता है। सरकार नज़रबंद, सेना को आदेश नहीं मिलता। किसी के पास तुरंत हल नहीं।
तभी एक कॉल आता है —
“हमें रोकना है? तो हमें लड़ना होगा। बात नहीं, वार होगा।”
यह कॉल करता है —
राजवीर मेहरा, ३८ वर्षीय पूर्व आर्मी मरीन-फ़ाइटर, अब एक सेल्फ-डिफेंस कोच जो गरीब बच्चों को दिल्ली के झुग्गियों में आत्मरक्षा सिखाता है।
वह खुद आगे बढ़ता है और पाँच लोगों को साथ लाता है:
-
श्रुति शेखावत – २४ वर्षीय कराटे ब्लैक बेल्ट और स्ट्रीट फ़ाइटर
-
लखविंदर “लक्की” सिंह – ४२ वर्षीय ट्रक मैकेनिक और कुश्ती बाज़
-
नासिर काज़मी – ३५ वर्षीय एक्स-डॉग स्क्वाड हेड, छुरेबाज़ी और डंडा युद्ध में माहिर
-
प्रभाकर सोमैया – ५० वर्षीय कुंग-फू प्रशिक्षक, अब पीठ में स्टील प्लेट लिए, लेकिन अब भी चाल में आग
-
रिचा कौल – २९ वर्षीय बाउंसर, जो बिना हथियार के भीड़ में खुद दीवार बन जाती है
भाग ३: पहला टकराव – नेशनल टॉवर-१
राजवीर की टीम सीधे नेशनल टॉवर-१ पहुंचती है — ८८ मंज़िल की गगनचुंबी इमारत जहाँ ८० से अधिक लोग बंद हैं। टावर के बाहर २० ZK सैनिक गन और स्टन बटन्स के साथ तैनात।
राजवीर कहता है —
“अगर हम उनके हथियार छीन नहीं सकते, तो हम उनके होश छीनेंगे।”
श्रुति उड़ती है — सीधे गार्ड के कंधे पर टेक लगाकर राउंडहाउस किक।
नासिर पीछे से एक गार्ड की कनपटी पर छुरा उलटा घुमा कर उसकी पिस्टल गिरा देता है।
लक्की सिंह लोहे की टूटी पाइप से सीधे तीन सैनिकों को एक ही झटके में ज़मीन पर गिरा देता है।
रिचा चार सैनिकों को भुजाओं में पकड़कर दीवार पर दे मारती है।
राजवीर खुद एक गार्ड की मशीनगन लात मारकर दूर फेंकता है और सीधे मुट्ठी से उसकी जबड़े की हड्डी तोड़ देता है।
भाग ४: सीढ़ियाँ और सीने की लड़ाई
अब टीम सीढ़ियों से ऊपर जाती है — हर फ्लोर पर दो गार्ड तैनात।
सीढ़ियाँ लड़ाई बनती जाती हैं।
प्रभाकर हर मंज़िल पर हाथों से शू-केन स्ट्राइक करता है — वो यथार्थ में घायल है, लेकिन उसकी चाल में अब भी ज़हरीली चालबाज़ी है।
श्रुति को दो सैनिक पकड़ लेते हैं, लेकिन वह पैरों से हवा में स्पिन किक करके खुद को छुड़ाती है।
राजवीर अपने ही बैग से लोहे का चैन निकालता है और उस चैन से दो सैनिकों को बांध देता है।
एक फ्लोर पर, रिचा को धक्का देकर गिरा दिया जाता है, लेकिन वह नीचे से सीधे लात से हमलावर को उड़ा देती है।
४२ मिनट में ८८वीं मंज़िल पर पहुंचते ही टीम इमारत का नियंत्रण ले लेती है।
भाग ५: गगनचुंबी युद्ध — ज़ोन-० टर्मिनल
अब सबसे कठिन मोर्चा — ज़ोन-० टर्मिनल, जो पूरे क्षेत्र का नियंत्रण केंद्र है। वहाँ ६० से अधिक ZK जवान तैनात हैं, जिनके पास हैं गन, शील्ड, बॉडी आर्मर, नाइट विज़न।
राजवीर कहता है:
“अब समय है खुले युद्ध का — या हम रहेंगे, या वो। बीच कुछ नहीं।”
टीम दो हिस्सों में बँट जाती है — एक पीछे से प्रवेश करती है, दूसरी सामने से।
नासिर सामने से लड़ते हुए सीधा गार्ड की राइफल लात मारकर गिरा देता है।
श्रुति और रिचा सामने खड़ी हो जाती हैं — दो औरतें, लेकिन पूरी दीवार।
राजवीर और लक्की अंदर सेंध लगाते हैं और मेन कंट्रोल रूम तक पहुँचते हैं।
प्रभाकर दो सैनिकों को अपनी कोहनी से मारकर ज़मीन पर गिरा देता है — ५० की उम्र में भी उसकी कोहनी हथौड़ा है।
सिर्फ ३२ मिनट के भीतर, टर्मिनल साफ़ होता है।
भाग ६: सामना – ZK का कमांडर
अब सामने आता है ZK का शीर्ष अधिकारी — कमांडर आरोन डिसूजा।
६ फीट ६ इंच लंबा, शरीर लोहे जैसा, काला कवच पहने।
वह कहता है:
“राजवीर मेहरा, तुम्हारे जैसे लोग हमें रोक नहीं सकते। मैं सेना से लड़ चुका हूँ।”
राजवीर हँसता है:
“सेना से लड़े हो, पर मुहल्ले के पहलवान से नहीं।”
दोनों भिड़ते हैं — सीधे, कोई नियम नहीं।
पाँच मिनट तक केवल घूंसे, लात, धक्का, मुक्का।
आरोन एक लोहे की कुर्सी उठाकर राजवीर पर फेंकता है — राजवीर उसे पकड़कर उल्टा उसकी पीठ पर दे मारता है।
अंत में, एक पंच — जो राजवीर अपने दाएँ कंधे से मोड़कर सीधे जबड़े पर देता है — और आरोन गिर जाता है।
भाग ७: ज़ोन फिर से जनता का
१२ घंटे के भीतर ZK के सभी सैनिकों को गिरफ़्तार कर लिया जाता है।
किसी रहस्य का पर्दाफ़ाश नहीं हुआ, कोई षड्यंत्र नहीं निकला —
यह केवल पैसा, वर्चस्व और बल प्रयोग की लड़ाई थी।
लेकिन जीत उन्हीं की हुई जो मैदान में उतरे — बिना पूछे, बिना पीछे हटे।
राजवीर और उसकी टीम को शहर की जनता के सामने सम्मानित किया जाता है। लेकिन वह कहता है:
“हमें ट्रॉफी नहीं चाहिए — हमें ये चाहिए कि अगली बार किसी को हिम्मत की ज़रूरत हो, तो वो भी कहे — मैं राजवीर की तरह लड़ूँगा।”
अंतिम समापन
“शून्य काल: रक्त और लोहा का दिन” एक आधुनिक भारतीय शहर की एक ऐसी दोपहर की कहानी है, जब बंदूकें हावी थीं, लेकिन जवाब मुट्ठियों ने दिया। यह किसी भी रहस्य, रोमांच या कल्पना से दूर, केवल सीधी भिड़ंत, लोहे की लड़ाई, खाल पर पड़े घूंसे, और हड्डी चटकने वाली आवाज़ से भरी एक शुद्ध Action कहानी है, जिसमें युद्ध का मतलब है — खून, पसीना और ज़िंदा रहकर जीतने की ताकत।
समाप्त।