शून्य मार्ग की खोज
संक्षिप्त परिचय: दक्षिण भारत की सीमा से लगे एक वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र में एक रहस्यमयी घटना सामने आती है। एक प्रतिभाशाली युवा वैज्ञानिक की मृत्यु प्रयोगशाला में संदिग्ध परिस्थितियों में होती है। इस घटना के बाद एक अदृश्य गलियारे की अफवाहें फैल जाती हैं, जिसे ‘शून्य मार्ग’ कहा जाता है — जहाँ प्रवेश करने वाला कभी लौटकर नहीं आता। जाँच की जिम्मेदारी डिटेक्टिव शिवा और सोनिया को सौंपी जाती है। यह कहानी विज्ञान, मनोविज्ञान, षड्यंत्र और सत्य की उलझनों से बुनी गई एक लंबी खोज है।
कहानी:
केरल के तटीय नगर ‘नालमपुर’ में स्थित था ‘भारतीय विज्ञान अनुसंधान केंद्र (BSRC)’, जहाँ उन्नत ऊर्जा तकनीकों पर कार्य चल रहा था। इस केंद्र में कार्यरत थे — डॉ. रघुवीर अय्यर और उनकी टीम। टीम में सबसे प्रतिभाशाली सदस्य थीं — 27 वर्षीय डॉ. गायत्री मणि, जो ‘क्वांटम स्टेबिलिटी ज़ोन’ नामक परियोजना पर कार्य कर रही थीं। यह परियोजना ब्रह्मांडीय ऊर्जा को स्थिर कर अंतरिक्ष में स्थायी मार्ग खोजने से संबंधित थी।
10 अप्रैल की रात, केंद्र की मुख्य प्रयोगशाला में विस्फोट होता है और अगली सुबह, डॉ. गायत्री का शव वहाँ पाया जाता है। रिपोर्ट के अनुसार, मृत्यु विस्फोट से नहीं, हृदय गति रुकने से हुई थी। उनके चारों ओर अजीब चिह्न बने थे और दीवार पर लिखा था — “शून्य में प्रवेश मत करना।”
डिटेक्टिव शिवा और सोनिया को विशेष विमान से केरल बुलाया गया। उन्हें निर्देश दिए गए — “यह मामला बेहद संवेदनशील है, मीडिया को कुछ नहीं पता चलना चाहिए।”
प्रयोगशाला की पहली झलक:
शिवा और सोनिया जब बीएसआरसी पहुँचे, तो सुरक्षा अत्यंत कड़ी थी। प्रयोगशाला में वह स्थान अब भी सील था। सोनिया ने चारों ओर देखा — दीवार पर जलने के हल्के निशान थे, लेकिन कोई आग नहीं फैली थी। शिवा ने ज़मीन पर बने गोल चिह्नों की तस्वीर ली।
“ये कोई वैज्ञानिक प्रतीक नहीं हैं,” उन्होंने कहा। “यह कुछ और है… शायद मनोवैज्ञानिक भ्रम उत्पन्न करने वाली कोई प्रक्रिया।”
वहीं एक सुरक्षा गार्ड वेलायुधन ने बताया कि घटना की रात डॉ. गायत्री अकेली थीं। लेकिन एक घंटे बाद उन्हें एक तेज़ नीली रोशनी और कंपन महसूस हुआ। जब वे पहुँचे, तब तक गायत्री मृत थीं।
गायत्री की निजी डायरी:
शिवा को गायत्री का कमरा दिखाया गया। वहाँ उन्हें एक पर्सनल लॉकर में एक छोटी सी डायरी मिली। उसके अंतिम पृष्ठ पर लिखा था:
“मैंने कुछ ऐसा देखा है जो इंसानी समझ से बाहर है। शायद यही वह गलियारा है जिसकी तलाश में रघुवीर थे — शून्य मार्ग। लेकिन अब मुझे डर लग रहा है… क्या मैं उस मार्ग में जा रही हूँ?”
सोनिया ने एक चित्र देखा — जिसमें एक दरवाज़ा था, जिसके भीतर अंधकार था और ऊपर लिखा था: “शून्य प्रवेश द्वार।”
डॉ. रघुवीर का रहस्य:
डॉ. रघुवीर अय्यर ने गायत्री की मृत्यु के बाद मीडिया से दूरी बना ली थी। पूछताछ में उन्होंने कहा:
“गायत्री एक असाधारण मस्तिष्क वाली वैज्ञानिक थीं। लेकिन वह कुछ ज़्यादा ही आगे बढ़ने की कोशिश कर रही थीं। शून्य मार्ग एक अवधारणा थी — जहाँ समय और स्थान का अस्तित्व नहीं होता।”
शिवा ने पूछा, “क्या यह मार्ग वास्तव में कोई भौतिक स्थान था या केवल एक प्रयोग?”
रघुवीर ने उत्तर दिया, “विज्ञान और मन कभी-कभी एक सीमित रेखा पर मिलते हैं। गायत्री उस रेखा को पार कर गई थीं।”
सोनिया इस उत्तर से संतुष्ट नहीं थीं। उन्होंने बीएसआरसी के सर्विलांस रिकॉर्ड की माँग की। वहाँ एक वीडियो मिला जिसमें घटना से एक घंटे पहले, गायत्री एक विशाल धातु दरवाज़े के सामने खड़ी थीं। उनके पीछे एक व्यक्ति और था — लेकिन चेहरा अस्पष्ट था।
प्रयोगशाला का दूसरा प्रवेश:
शिवा और सोनिया ने उस गुप्त धातु दरवाज़े की जांच की। वह दरवाज़ा एक विशेष एआई लॉक से बंद था, जिसे केवल उच्चस्तरीय वैज्ञानिक ही खोल सकते थे। सोनिया ने डेटा रिकॉर्ड से उस व्यक्ति की पहचान की — डॉ. सुदर्शन मेनन, जो तीन वर्ष पहले लापता हो गए थे। वह शून्य मार्ग पर कार्य करने वाले पहले वैज्ञानिकों में से एक थे।
तो क्या सुदर्शन लौटे थे? यदि हाँ, तो कैसे?
शिवा बोले, “इसका अर्थ है — शून्य मार्ग कोई कल्पना नहीं, बल्कि एक वास्तविक प्रयोग था — जिसे अब छिपाया जा रहा है।”
अंतिम प्रवेश और सच्चाई:
एक रात, जब सुरक्षा कम थी, शिवा और सोनिया ने प्रयोगशाला के नीचे बने उस विशेष कक्ष में प्रवेश किया, जहाँ शून्य मार्ग परियोजना की मूल मशीनें थीं। वहाँ एक विशेष कांच का चैंबर था, जिसे ‘जैविक प्रवेश द्वार’ कहा गया था।
चैंबर में एक कंप्यूटर चालू था। उसमें एक संदेश चमक रहा था:
“मैं गया था। वापस आ गया हूँ। लेकिन कुछ छूट गया है।” — सुदर्शन
फिर उन्हें एक रिकॉर्डिंग मिली, जिसमें सुदर्शन कह रहे थे:
“हमने शून्य मार्ग खोला — एक ऐसी स्थिति, जहाँ चेतना का स्वरूप बदल जाता है। मैं वापस आया, लेकिन गायत्री ने कुछ देखा था जो वह सहन नहीं कर पाई। वह गलियारे में प्रवेश कर चुकी थी — और उसका मन वहीं रह गया।”
शिवा ने कहा, “तो उसकी मृत्यु शरीर से नहीं, चेतना के टूटने से हुई।”
न्याय और समापन:
डॉ. सुदर्शन को खोजकर पुनः केंद्र में लाया गया। उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने गायत्री को उस प्रयोग में प्रवेश की अनुमति दी थी — जबकि वह मानसिक रूप से तैयार नहीं थीं। यह एक वैज्ञानिक भूल थी। केंद्र के निदेशक पर लापरवाही का मुकदमा दर्ज हुआ।
गायत्री को अब ‘विज्ञान की अमर आत्मा’ कहा जाने लगा। उनके नाम पर केंद्र में एक नई अनुसंधान इकाई स्थापित हुई — ‘गायत्री चेतना अनुभाग’।
शिवा ने अंतिम रिपोर्ट में लिखा: “कभी-कभी खोज केवल ज्ञान की नहीं होती, बल्कि इंसानी सीमाओं की भी होती है। और जब वह सीमा टूटती है — तो प्रश्न रह जाता है: क्या हम उस उत्तर के लिए तैयार हैं?”
समाप्त