शून्य रेखा के भीतर
आज के समय की यह एक्शन और एडवेंचर कथा है, जहाँ नायक न तलवार लेकर लड़ता है, न घोड़े पर सवार होता है। यह कहानी है एक साइबर इंटेलिजेंस अफसर की, जो अपने देश को बचाने के लिए डिजिटल दुनिया की अंधेरी सुरंगों में उतरता है, जहाँ हर कोड एक हथियार है और हर क्लिक एक धमाका। अंडरग्राउंड हैकर्स का एक गुट — ‘शून्य रेखा’ — भारत की सुरक्षा प्रणालियों को तहस-नहस करने पर उतारू है। लेकिन जब तक अधिकारी वर्धन मिश्रा जैसे लोग हैं, तब तक कोई भी हमला मौन नहीं रह सकता। यह कथा आधुनिक भारत के उस योद्धा की है, जो कीबोर्ड से युद्ध करता है और खतरे के हर संकेत को चीन्ह लेता है।
प्रारंभ
नई दिल्ली की रातों में चमकते टावर और ऊँचे पुल के नीचे, एक स्क्रीन पर तेज़ी से चलती लाइनों में छिपी होती है असली जंग। वर्धन मिश्रा — एक 37 वर्षीय साइबर इंटेलिजेंस अफसर, सेंट्रल साइबर डिफेन्स यूनिट का सबसे तेज़ और सबसे चुप योद्धा था। उसे न मीडिया जानता था, न उसका कोई सामाजिक चेहरा था। लेकिन सरकार के सबसे ऊँचे गुप्त कक्षों में उसका नाम आदर और भय दोनों से लिया जाता था।
एक सुबह, उसे बुलाया गया राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के कार्यालय में।
“शून्य रेखा फिर सक्रिय हो गई है,” अधिकारी बोले।
“अबकी बार लक्ष्य है — देश की ऊर्जा ग्रिड और रक्षा संचार प्रणाली।”
वर्धन की आँखों में चमक थी, लेकिन चेहरा निश्चल।
“इस बार वे सफल नहीं होंगे,” वह बोला।
शून्य रेखा – वह जो दिखता नहीं
‘शून्य रेखा’ एक अज्ञात लेकिन अत्यंत खतरनाक डिजिटल संगठन था। उनके पास न कोई स्थायी लोकेशन थी, न कोई चेहरा। वे आभासी दुनिया में चलते थे — क्लाउड के कोनों में, गहरे कोड के पर्दों के पीछे। उनकी तकनीक इतनी परिष्कृत थी कि सुरक्षा प्रणाली जब तक हमले को पहचानती, तब तक बहुत देर हो चुकी होती।
उनका उद्देश्य था — भारत को आंतरिक रूप से अपंग करना। इस बार वे ‘प्रोजेक्ट तांडव’ चला रहे थे — एक ऐसा वायरस, जो परमाणु संचार चैनलों को अपने नियंत्रण में ले सकता था।
वर्धन की टीम
वर्धन अकेला नहीं था। उसके साथ थी एक पांच सदस्यीय गुप्त टीम —
अनया – एथिकल हैकर, जिसकी उंगलियाँ कीबोर्ड पर चमत्कारी गति से चलती थीं।
अद्वैत – एआई विशेषज्ञ, जो दुश्मन के हर पैटर्न को कोड के भीतर पढ़ सकता था।
राजीव – नेटवर्क सुरक्षा प्रभारी, जो वैश्विक ट्रैफिक में एक बूंद की हलचल भी पहचान लेता था।
कीर्ति – भाषा विश्लेषक, जो विदेशी हैकरों की सांकेतिक भाषा को तोड़ती थी।
और वर्धन स्वयं – संचालन, रणनीति और अन्तिम टकराव का शिल्पकार।
पहला संकेत
मुंबई की एक तेल शोधन इकाई में अजीब सी तकनीकी गड़बड़ी आई। सारे बैकअप बंद हो गए, फायर अलार्म्स निष्क्रिय हो गए और कुछ मिनटों तक सब नियंत्रण से बाहर हो गया। वर्धन को जानकारी मिली — और उसकी चेतना सक्रिय हो गई।
“यह सिर्फ परीक्षण था,” उसने कहा।
“मुख्य हमला अब दिल्ली की ऊर्जा ग्रिड पर होगा — आज से चौबीस घंटे के भीतर।”
टीम ने तुरंत ‘ब्लैक नेटवर्क मोड’ में काम शुरू कर दिया — वह सिस्टम जो सामान्य इंटरनेट से कट जाता है और केवल गुप्त चैनलों पर चलता है।
डिजिटल सुरंग की यात्रा
वर्धन और अनया ने हैकिंग की गहराई में उतरना शुरू किया।
उन्हें मिला एक ट्रेस — रूस के सर्वर से आता हुआ, लेकिन भाषा थी बांग्लादेशी।
कीर्ति ने संकेत पकड़ा — यह एक नकली मोड़ है। असली लोकेशन कहीं भारत के भीतर ही थी।
राजीव ने ट्रैफिक पैटर्न की जांच की — और पता चला कि चेन्नई के पास एक पुरानी फैक्ट्री से भारी मात्रा में डिजिटल ट्रैफिक प्रवाहित हो रहा था।
अद्वैत ने एक वर्चुअल अवतार तैयार किया — ‘प्रेतछाया’। यह अवतार शून्य रेखा के डिजिटल नेटवर्क में प्रवेश करने वाला था।
“अगर यह सिस्टम ने पकड़ लिया, तो उल्टी दिशा में वायरस भेजा जा सकता है,” अनया ने चेतावनी दी।
“तो हमें तेज़ चलना होगा,” वर्धन ने कहा।
सीधी टक्कर
रात के 2:47 पर ‘प्रोजेक्ट तांडव’ सक्रिय हो गया। दिल्ली की रक्षा संचार प्रणाली में हल्की कंपन हुई। कुछ उपग्रह सिग्नल्स डगमगाए। लेकिन ठीक उसी क्षण वर्धन ने ‘शून्य रेखा’ की मुख्य सुरंग में प्रवेश कर लिया।
उनका वर्चुअल युद्ध शुरू हो गया। स्क्रीन पर कोड ऐसे टकरा रहे थे जैसे तलवारें। दोनों ओर से वायरस और फ़ायरवॉल की भिड़ंत हो रही थी। अद्वैत ने उनकी संरचना का पूर्वानुमान लगाकर एक ‘ब्लैक बूमरैंग’ छोड़ा — जो दुश्मन के कोड को उसी की दिशा में लौटा देता था।
परंतु तभी, एक चेहरा स्क्रीन पर उभरा — मास्क पहना हुआ, कंप्यूटर जनित।
“तुम्हारा युद्ध हमारे विरुद्ध नहीं, समय के विरुद्ध है,” आवाज आई।
“हम शून्य रेखा हैं। सीमा के बाहर नहीं, भीतर से पैदा हुए हैं।”
वर्धन ने अपनी अंतिम चाल चली — वह कोड जो केवल एक बार उपयोग किया जा सकता था। उसे ‘वज्रनाल’ कहा जाता था — एक आत्मघाती डिफेंस कोड।
उसने चाल चली। स्क्रीन सफेद हुआ। शून्य रेखा की फीड बंद। भारत की ग्रिड सुरक्षित।
परिणाम और छाया की वापसी
अगली सुबह अख़बारों में बस एक छोटी खबर थी — “दिल्ली की ऊर्जा व्यवस्था में आई तकनीकी खराबी ठीक की गई”
पर कोई नहीं जानता था कि उस रात एक डिजिटल युद्ध लड़ा गया था, जिसमें एक गुप्त योद्धा ने देश को बचाया।
वर्धन मिश्रा वापस अपने साधारण अपार्टमेंट में लौट आया। मोबाइल पर एक नया मैसेज था —
“शून्य रेखा गई नहीं… अगली बार हम तुम्हारे भीतर से आएँगे।”
उसने स्क्रीन बंद की और धीमे से कहा,
“तो मैं अपने भीतर भी तैयार रहूंगा।”
समाप्त।