शून्य सीमा अभियान
संक्षिप्त परिचय
साल २०७२ — एक ऐसा युग जब देशों की सीमाएँ अब केवल नक्शों में रह गई हैं। लेकिन सीमाओं के भीतर छुपे रहस्य और संसाधन अब वैश्विक युद्धों का कारण बनते जा रहे हैं। भारत के उत्तर-पूर्वी सीमांत क्षेत्र अरुण-कंचन बेल्ट में अचानक कुछ ऐसा हुआ जो विज्ञान और भूगोल — दोनों के लिए अनजाना था। एक अनदेखी ऊर्जा दीवार प्रकट हुई, जिसने कई गाँवों को बाहर की दुनिया से काट दिया। सेटेलाइट्स नष्ट हो गए, मौसम बदल गया और वायु में कंपन गूँजने लगे। यह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि एक प्राचीन विज्ञान के पुनर्जागरण की आहट थी — एक खगोल-ऊर्जा सीमा, जो पुनः जागृत हो चुकी थी। भारत सरकार ने एक उच्च गुप्त दल गठित किया — शून्य सीमा अभियान, जिसका नेतृत्व किया कैप्टन प्रणव शेखावत ने, एक पूर्व पर्वत-सेना अधिकारी, जो हिमरेखा विज्ञान और दुर्गम अन्वेषण का अनुभवी था। यह कहानी है आधुनिक साहसिकता की, सीमाओं के पार की अनजानी सच्चाइयों की, और मानव आत्मा के अपराजेय संघर्ष की।
भाग १: सीमा के पार घटित अज्ञात घटना
अरुण-कंचन बेल्ट भारत की सबसे रहस्यमयी पर्वतीय श्रृंखला थी — वहाँ घने वन, बर्फ से ढकी चोटियाँ और कई प्राचीन जनजातियाँ बसी थीं, जो आधुनिक तकनीक से दूर थीं। वहाँ के नागरिकों ने एक अजीब घटना की सूचना भेजी —
“रात को आकाश चमका, और अगले पल से सब कुछ रुक गया। जानवर भाग गए, नदियाँ उलटी बहने लगीं, और एक चमकती हुई दीवार आसमान से उतर आई।”
सेटेलाइट ने उस क्षेत्र में कोई संपर्क नहीं दिखाया। सेना के ड्रोन जब वहाँ भेजे गए, तो वे पलभर में नष्ट हो गए। सरकार के पास कोई विकल्प नहीं बचा — एक विशेष विशेषज्ञ अभियान दल बनाना पड़ा।
भाग २: कैप्टन प्रणव और उसकी टीम
कैप्टन प्रणव शेखावत, पर्वतीय युद्ध में प्रशिक्षित, लेकिन पिछले पाँच वर्षों से एकान्त जीवन जी रहा था, क्योंकि एक मिशन में उसने अपने पूरे दस्ते को खो दिया था। सरकार ने जब उसे बुलाया, तो वह पहले चुप रहा, फिर बोला —
“सीमाएँ केवल देश की नहीं होतीं, अंतरात्मा की भी होती हैं। मैं तैयार हूँ, यदि मुझे एक स्वतंत्र टीम मिले।”
सरकार सहमत हुई।
प्रणव ने चुने:
सिया चक्रवर्ती — ऊर्जा तरंग विश्लेषक, जो विद्युत और ध्वनि तरंगों को पढ़ सकती थी।
लियोन दत्ता — अर्ध-भारतीय पर्वतचढ़ाई विशेषज्ञ, अत्यधिक ऊँचाई पर जीवित रहने की विशेषज्ञता।
रुक्मिणी वर्मा — जनजातीय भाषाओं और संस्कृति की विशेषज्ञ, जिन्होंने अरुण-कंचन की लुप्त भाषाएँ पढ़ रखी थीं।
अग्निमित्र भट्टाचार्य — एक बहिष्कृत खगोलभौतिकी वैज्ञानिक, जिन्होंने “गुरुत्व-जाल सिद्धांत” प्रस्तावित किया था, जिसे अब इस घटना से जोड़ा जा रहा था।
भाग ३: शून्य सीमा की पहली झलक
टीम हेलीकॉप्टर द्वारा सीमांत तक पहुँची, लेकिन वहाँ हवा ठहरी हुई थी। जैसे ही वे सीमा के पास पहुँचे, उन्हें एक चमकदार परत दिखाई दी — यह न कोई दीवार थी, न धुंआ, बल्कि एक ऊर्जा परदा, जो लगातार कंपन कर रहा था।
सिया ने कहा, “यह एक उच्च ऊर्जा घनत्व क्षेत्र है। इसे पार करना असंभव नहीं, परंतु अत्यंत खतरनाक है।”
प्रणव ने आदेश दिया — “किसी को पीछे नहीं हटना है। अगर हम इसको न समझ पाए, तो भविष्य में यह दीवार दिल्ली तक आ जाएगी।”
लियोन और सिया ने विशेष ऊर्जा सूट पहना, और सबने एक-एक कर उस परदे को पार किया।
भाग ४: दीवार के पीछे का संसार
जैसे ही वे अंदर पहुँचे, उन्हें ऐसा लगा जैसे समय और स्थल दोनों बदल गए हों। पहाड़ चमकते थे, आकाश का रंग हल्का नीला था और गुरुत्व बल कम था। वहाँ के लोग स्थिर मुद्रा में जमे हुए थे, जैसे समय ठहर गया हो।
रुक्मिणी को एक प्राचीन मंदिर के खंडहर मिले, जिन पर ‘ताराचक्र‘ और ‘दिक्मण्डल‘ जैसे शब्द अंकित थे —
“ये वैदिक खगोल संकेत हैं, जिनसे दिशाओं को नियंत्रित किया जा सकता है।”
अग्निमित्र ने बताया —
“मुझे अब विश्वास हो गया है कि यह कोई ‘खगोल ऊर्जा सीमांत’ है — एक प्राचीन तकनीक जो आकाशीय शक्तियों से पृथ्वी की सीमाओं को सशक्त या निष्क्रिय कर सकती है।”
भाग ५: संघर्ष और खोज
टीम को एक गुफा में प्रवेश मिला, जहाँ वेदी पर एक ऊर्जा-कणिक यंत्र था — नक्षत्र बिंदु, जिससे निकलती तरंगें संपूर्ण क्षेत्र को नियंत्रित कर रही थीं।
पर उस गुफा में कोई और भी था — एक रहस्यमयी पुरुष, जिसने टीम पर हमला किया। वह ‘पूर्व अनुसंधान निदेशक’ निकला, जो वर्षों पहले लापता हो गया था। उसने स्वयं को इस ऊर्जा से जोड़ लिया था और अब वह ‘मानव-ऊर्जा संलयन’ की अवस्था में था।
“मैंने इस शक्ति को जगा दिया है,” उसने कहा, “क्योंकि सीमाओं की राजनीति ने पृथ्वी को बाँट दिया है। अब सीमाएँ स्वयं को मिटा देंगी।”
एक भयानक युद्ध हुआ — ऊर्जा तरंगों, कंपन बमों और मानसिक क्षमता के स्तर पर।
प्रणव ने उस पुरुष से लड़ते हुए उसका ऊर्जा-संयोजन तोड़ा। लेकिन इससे नक्षत्र बिंदु अस्थिर हो गया, और संपूर्ण सीमांत क्षेत्र काँप उठा।
भाग ६: शून्य बिंदु को स्थिर करना
अब केवल एक ही विकल्प था — ऊर्जा यंत्र को फिर से संतुलित करना।
अग्निमित्र और सिया ने मिलकर एक ‘ध्रुव संरेखन’ योजना बनाई, जिससे खगोलिय यंत्र को पृथ्वी की कक्षा में पुनः केंद्रित किया जा सके।
परंतु इसके लिए किसी एक को उस ऊर्जा स्तम्भ में उतरकर जीवन ऊर्जा समर्पित करनी थी।
इस बार रुक्मिणी आगे बढ़ीं —
“मैं केवल भाषाओं की व्याख्या नहीं करती, मैं उस संस्कृति की उत्तराधिकारी हूँ जिसने इस यंत्र को रचा था।”
रुक्मिणी ने वेदपाठ आरंभ किया, और धीरे-धीरे उसकी चेतना ऊर्जा में विलीन हो गई। नक्षत्र बिंदु पुनः स्थिर हो गया। सीमांत क्षेत्र सामान्य हो गया। लोग फिर से चलने-फिरने लगे।
ऊर्जा दीवार विलीन हो गई।
भाग ७: लौटते हुए
जब दल वापस बाहर आया, तो देशभर में लोग आश्चर्यचकित थे। संपूर्ण घटना को ‘शून्य सीमा संकट’ कहा गया।
सरकार ने पूरी टीम को ‘अस्त्र सम्मान’ से सम्मानित किया। परंतु किसी ने कोई प्रेस बैठक नहीं की।
प्रणव ने बस एक वाक्य कहा —
“हमारे देश की सीमाएँ केवल सुरक्षा के लिए नहीं हैं, वे इतिहास और भविष्य के बीच की रेखाएँ हैं। हमें उन्हें समझना होगा, बाँटना नहीं।”
अंतिम समापन
‘शून्य सीमा अभियान’ केवल सीमाओं की कहानी नहीं है, यह उस चेतना की यात्रा है जहाँ विज्ञान, परंपरा और मानव बलिदान एक होकर पृथ्वी की रक्षा करते हैं। आने वाले युग में जब सीमाएँ फिर धुँधली होंगी, तब यह कहानी एक प्रकाशस्तंभ की तरह उभरेगी — यह बताने कि सीमाओं को मिटाने नहीं, संभालने की आवश्यकता है।
समाप्त।