शेर का पंजा: आज़ादी चौक की जंग
संक्षिप्त परिचय
वर्ष २०९८ — भारत के दिल मुंबई के बीचोंबीच स्थित है आज़ादी चौक, एक क्षेत्र जिसे ‘युवा शक्ति’ और ‘शहरी गर्व’ का प्रतीक कहा जाता है। परंतु जब सरकार एक निजी मिलिट्री कॉन्ट्रैक्ट के तहत चौक को सुरक्षा ज़ोन घोषित करती है और वहाँ तैनात करती है अत्याधुनिक हथियारों से लैस PMC-X टीम, तब यह क्षेत्र एक दिन अचानक आम जनता के लिए प्रतिबंधित कर दिया जाता है।
शहर की जनता, खासकर वहाँ के मजदूर, कलाकार, खिलाड़ी और सामाजिक कार्यकर्ता, विरोध करते हैं। लेकिन उस विरोध को हथियारों से कुचलने की कोशिश होती है। तभी एक टोली खड़ी होती है — सड़क से निकले योद्धा, जिनमें कोई बाउंसर है, कोई बॉक्सर, कोई लोक कलाकार, कोई रिटायर्ड वेटलिफ्टर, और कोई महिला गार्ड। इन लोगों के पास न कोई संगठन है, न किसी पार्टी का साथ — उनके पास है सिर्फ हथियार चलाने और हाथों से लड़ने की हिम्मत। यह कहानी है उन छह लोगों की जो न थ्रिलर हैं, न रहस्य, न जासूस — ये हैं सीधे युद्ध के मैदान में उतरे भारत के असली योद्धा।
भाग १: चौक को कैद करने का आदेश
मुंबई के बीच स्थित आज़ादी चौक एक खुला सांस्कृतिक केंद्र था — यहाँ युवा क्रिकेट खेलते थे, महिलाएं सेल्फ-डिफेंस क्लास लेती थीं, बुज़ुर्ग योग करते थे, और कलाकार चित्र बनाते थे।
परंतु एक आदेश के तहत, सरकार ने इस चौक को “हाई-सेंसिटिव सिक्योरिटी ज़ोन” घोषित किया और वहाँ तैनात की गई निजी सुरक्षा फोर्स — PMC-X, जो अमेरिका की एक पूर्व युद्ध कंपनी का भारत में नया विस्तार था।
PMC-X के जवान काले कवच, हेलमेट, बुलेटप्रूफ जैकेट और ऑटोमेटिक गन से लैस थे।
लेकिन ये जवान जल्द ही अधिकार से बाहर जाने लगे — आम जनता को पीटना, युवाओं पर आरोप लगाना, महिलाओं को डराना, और पूरे चौक को निजी युद्ध क्षेत्र में बदलना शुरू कर दिया।
भाग २: शहर की आत्मा जागती है
शहर के भीतर धीरे-धीरे आक्रोश पनपने लगा।
तभी एक दिन PMC-X की एक टीम ने दो स्कूली छात्रों को इसलिए पीटा क्योंकि वे दीवार पर “फ्री चौक” लिख रहे थे।
इस घटना के बाद उठता है एक नाम —
राजा गायकवाड़, ४२ वर्षीय रिटायर्ड वेटलिफ्टर और अब आर्टिफिशियल लिम्ब फैक्टरी का मैकेनिक।
राजा अकेले PMC-X के एक जवान से भिड़ जाता है और उसे बिना हथियार के बेहोश कर देता है।
फिर वह आवाज़ लगाता है:
“ये चौक तुम्हारा नहीं है, ये हमारा है। अब तुमसे लड़ना पड़ेगा — सीधे, खुले में!”
राजा के साथ जुड़ते हैं:
-
अनामिका रॉय – २८ वर्षीय महिला सुरक्षा गार्ड, जो शहर की सबसे कठिन झुग्गी बस्तियों में काम कर चुकी है
-
सलमान कुरैशी – २५ वर्षीय बॉक्सर, जो इंटरनेशनल मैच से बाहर कर दिया गया था बिना कारण
-
हीरा भाई – ५५ वर्षीय लोक कलाकार, जिन्होंने वर्षों तक चौक में नाटक किए हैं और अब बेंत को ही हथियार बनाते हैं
-
सविता दहिया – ३२ वर्षीय महिला बाउंसर, जो क्लब की गार्ड से ज्यादा ताक़तवर बन चुकी है
-
प्रशांत तलरेजा – ३८ वर्षीय एक्स-कैडेट जो अब कबाड़ से हथियार बनाना जानता है
भाग ३: पहला वार – सीधा और खुला
गुरुवार, सुबह ८:३० बजे — PMC-X की गश्त जारी थी, आम लोग अब भी डर से किनारे रहते।
तभी राजा गायकवाड़ और उसकी टीम चौक में खुलेआम आते हैं।
PMC-X के जवान उन्हें रोकते हैं — “यह क्षेत्र प्रतिबंधित है।”
राजा जवाब देता है:
“तुम्हारे जैसे सशस्त्र लोग तोप की तरह डराते हैं, पर हम लात और घूंसे से जवाब देंगे।”
और अगले ही पल —
सलमान मुक्का मारता है एक PMC-X जवान के हेलमेट पर, जिससे हेलमेट नीचे गिर जाता है।
सविता दो जवानों को दोनों हाथों से पकड़कर सीधा ज़मीन पर पटकती है।
अनामिका अपने पुराने बेंत से एक गार्ड की टांग में वार करती है, जिससे वह गिरकर गन छोड़ देता है।
राजा सामने वाले गार्ड के साथ कुश्ती की स्टाइल में भिड़ जाता है और १० सेकंड में उसे नीचे कर देता है।
भाग ४: हथियार के खिलाफ हथेली
PMC-X अपने ऑफिस में बैठे अधिकारी को यह खबर मिलती है —
“गली के लोग हथियारों के बिना तुम्हारी सेना को पछाड़ रहे हैं।”
अब PMC-X अपने दो विशेष हथियारबंद दस्ते भेजता है —
“ब्लैक-फ्लेम यूनिट”, जो निकट दूरी पर मुकाबले में विशेष प्रशिक्षित हैं।
लेकिन वे नहीं जानते कि राजा की टीम कोई ट्रेनिंग लिए बगैर, वर्षों से असल ज़िंदगी की लड़ाई लड़ती आई है।
ब्लैक-फ्लेम सैनिक आते हैं — स्टन गन, बैटन और कवच के साथ।
इस बार प्रशांत अपने हाथ से बनाया हुआ एक स्प्रिंग-ब्लेड रॉड लेता है, जो छूते ही सामने वाले के शरीर में कंपन उत्पन्न करता है।
हीरा भाई छुपे हुए मन्च से चिल्लाते हैं —
“शुरू हो जाओ — यह युद्ध तुम्हारा नहीं, हमारा है!”
राजा और सलमान दोनों एक साथ ब्लैक-फ्लेम यूनिट के सात जवानों से भिड़ जाते हैं।
घूंसे, लातें, बेंत, बाजू, कंधा —
हर वार सीधा होता है।
यह लड़ाई नहीं — युद्ध का नंगा रूप था।
भाग ५: अंतिम मोर्चा – टावर कंट्रोल रूम
PMC-X का नियंत्रण टावर चौक की सबसे ऊँची इमारत में स्थित था।
अब राजा की टीम वहाँ चढ़ने का निर्णय लेती है।
११वीं मंज़िल तक की चढ़ाई — हर मंज़िल पर सैनिक।
प्रशांत कहता है —
“हर मंज़िल एक परीक्षा है, लेकिन हम अपनी मिट्टी नहीं छोड़ेंगे।”
सविता और अनामिका सामने के हमलावरों को रोकती हैं, सलमान सीढ़ियों पर कूदता है और मुक्कों से तीन को एक साथ गिराता है।
राजा आख़िर में नियंत्रण कक्ष तक पहुँचता है।
वहाँ बैठा होता है PMC-X का प्रमुख — एरिक ब्रैडन, एक विशाल अमेरिकी योद्धा।
राजा और एरिक आमने-सामने खड़े होते हैं।
दोनों के पास कोई हथियार नहीं —
सिर्फ लोहे जैसे शरीर, और आग जैसी आँखें।
पूरे पाँच मिनट तक घूंसे और लातों का तूफ़ान चलता है।
आख़िर में, राजा का पंच एरिक की नाक तोड़ता है और वह गिर पड़ता है।
भाग ६: जीत की आहट
अब PMC-X की पूरी टीम घुटनों के बल बैठती है।
शहर की जनता वापस चौक पर लौट आती है।
राजा खड़ा होकर कहता है:
“ये हमारा चौक है। और आज से कोई बंदूक़ यहाँ नहीं चलेगी — केवल मेहनत और सम्मान चलेगा।”
अंतिम समापन
“शेर का पंजा: आज़ादी चौक की जंग” एक पूरी तरह आधुनिक, बिना रहस्य, बिना साज़िश, बिना राजनीति — केवल शुद्ध हथियार और हाथों की लड़ाई की कहानी है। यह कहानी उन लोगों की है जो पॉलिसी नहीं, पंच से शहर बदलते हैं। यह कहानी दिखाती है कि असली बहादुरी टीवी कैमरों के पीछे नहीं, बल्कि सीधे मैदान में, खुली सड़कों पर, सीने से सीना भिड़कर जीतने में होती है।
समाप्त।