सन्नाटा जो चीखता है
संक्षिप्त भूमिका
यह कहानी है एक नामी उद्योगपति की बेटी की रहस्यमयी गुमशुदगी की।
सभी मानते हैं कि वह अपनी मर्ज़ी से घर छोड़ गई,
लेकिन उसकी बचपन की दोस्त और अब एक पेशेवर मनोवैज्ञानिक को यक़ीन है कि वह कहीं नहीं गई —
बल्कि कहीं रोकी गई है।
जब एक महिला की पहचान उसकी खामोशी बन जाए,
तो सन्नाटा भी कभी-कभी चीखने लगता है।
यह वही कहानी है।
पहला दृश्य – सुबह की एक चुप ख़बर
दिल्ली के एक प्रतिष्ठित इलाक़े में स्थित शिवराज मल्होत्रा का बंगला सुबह-सुबह हलचल में था।
देश के जाने-माने स्टील उद्योगपति शिवराज को मीडिया हर रोज़ किसी न किसी शीर्षक में घसीटता था,
लेकिन इस बार जो हुआ था — वह निजी था, चौंकाने वाला था, और सवालों से भरा हुआ था।
उनकी ३० वर्षीय बेटी तन्वी मल्होत्रा अचानक लापता हो गई थी।
पिछली रात ८ बजे के बाद से कोई उसका मोबाइल नहीं मिला,
और बंगले की सुरक्षा कैमरों में वह आख़िरी बार रात ७:४५ पर दिखी —
अपने कमरे की सीढ़ियाँ चढ़ती हुई।
शिवराज मल्होत्रा ने पुलिस में गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाई —
पर केवल इस कथन के साथ कि —
“तन्वी मानसिक तनाव में थी, शायद स्वेच्छा से कहीं चली गई हो।”
लेकिन उसे करीब से जानने वाले जानते थे —
तन्वी कभी भागने वालों में नहीं थी।
दूसरा दृश्य – जिसे सब भूल जाते हैं, वही सबसे ज़्यादा याद रखता है
तन्वी की बचपन की सबसे करीबी दोस्त थी डॉ. आर्या जैन —
जो अब एक प्रतिष्ठित मनोवैज्ञानिक बन चुकी थी।
उनका संपर्क पिछले तीन वर्षों से कम हो गया था,
पर तन्वी अक्सर उसके इंस्टाग्राम पोस्ट पर प्रतिक्रिया देती रहती थी।
पिछले महीने, अचानक एक दिन, तन्वी ने आर्या को कॉल किया था —
और सिर्फ़ एक बात कही थी:
“क्या तुमसे मिल सकती हूँ? मुझे अपने दिमाग़ से डर लगने लगा है।”
वे दोनों मिलने वाले थे, लेकिन वह मुलाक़ात कभी नहीं हुई।
अब जब तन्वी लापता थी,
तो आर्या खुद को दोषी मान रही थी —
“काश मैं एक दिन पहले चली जाती।”
पर अब दोष नहीं, समाधान चाहिए था।
तीसरा दृश्य – वो कमरे जो बंद होते हैं, पर कहानियाँ खोलते हैं
आर्या को तन्वी के घर जाने की इजाज़त मुश्किल से मिली,
पर पुराने परिचय और प्रेस के दबाव के चलते शिवराज ने कहा —
“अगर तुम चाहो तो उसका कमरा देख सकती हो।”
तन्वी का कमरा किसी संग्रहालय जैसा सजा था —
हर चीज़ करीने से, हर किताब सीधी कतार में,
पर एक कोना बिखरा था —
साइड टेबल पर आधा पीया हुआ पानी, एक खुली डायरी, और एक बंद लिफ़ाफ़ा।
डायरी के पन्नों में कहीं कोई सीधे शब्दों में हिंट नहीं था,
बस कुछ पंक्तियाँ बार-बार दोहराई गई थीं:
“सच कभी बाहर नहीं आता,
जब तक कोई उसे अंदर से खींच न ले।”
“मेरी आवाज़ बंद दरवाज़ों में गूंज रही है। कोई सुन क्यों नहीं रहा?”
इन वाक्यों में साफ़ था कि तन्वी मानसिक रूप से बेहद अकेली थी —
पर वह टूटने वाली नहीं थी।
लिफ़ाफ़ा खोलने पर एक फ़ोटो निकली —
जिसमें एक आदमी तन्वी के साथ किसी रिसॉर्ट में बैठा था।
उसका चेहरा छुपा था — लेकिन तन्वी की नज़रों में डर झलक रहा था।
चौथा दृश्य – वह नाम जो तस्वीर से मिट गया था
आर्या उस रिसॉर्ट को पहचान गई —
वह देहरादून के पास एक निजी रिट्रीट था,
जहाँ तन्वी दो महीने पहले छुट्टियों पर गई थी।
उसने रिसॉर्ट कॉल किया, और पुराने गेस्ट रिकॉर्ड्स निकलवाए।
तन्वी वहाँ तीन दिन ठहरी थी,
पर उसकी बुकिंग दो लोगों के नाम पर थी।
दूसरा नाम था — रणवीर सैनी।
आर्या ने तन्वी की कॉल हिस्ट्री में भी उसका नाम देखा था।
पर अब उसके सभी सोशल मीडिया अकाउंट्स गायब थे,
न मोबाइल नंबर, न कोई ईमेल,
रणवीर सैनी जैसे कभी था ही नहीं।
शिवराज मल्होत्रा से पूछने पर वह गुस्से से बोले —
“उस नाम का इस परिवार से कोई लेना-देना नहीं।
वह कोई धोखेबाज़ था, जो मेरी बेटी को बहला रहा था।
उसकी वजह से तन्वी परेशान थी।
और शायद उसी ने मेरी बेटी को कहीं गायब कर दिया है।”
लेकिन क्या यह सच था?
पाँचवाँ दृश्य – मनोविज्ञान जो जाँच बन जाए
आर्या ने अब तन्वी की मानसिक स्थिति को समझने के लिए उसका थेरेपी रिकॉर्ड निकलवाया।
तन्वी पिछले छह महीनों से एक निजी साइकोलॉजिस्ट के पास जा रही थी,
जिसका नाम था डॉ. महेश खोसला।
क्लिनिक में आर्या को मिली एक अनाम केस फ़ाइल —
जिसमें हर सत्र का विवरण था।
वहाँ लिखा था:
“रोगी का विश्वास है कि उसके जीवन के निर्णय उसकी इच्छा से नहीं लिए जा रहे।
वह अपने चारों ओर ‘आँखों’ की बात करती है, जो हमेशा उसे देखती हैं।
वह डरती है कि अगर उसने सच बोला, तो कुछ बुरा होगा।”
फाइल के अंत में लिखा था:
“रोगी ने यह कहकर सत्र समाप्त किया —
‘अगर मैं ग़ायब हो जाऊँ, तो मेरी डायरी पढ़ना। उसमें मैं हूँ।’”
अब आर्या जान चुकी थी —
यह ग़ायब होना दुर्घटना नहीं, एक योजना थी।
छठा दृश्य – कैमरे जो सब रिकॉर्ड करते हैं, पर बोलते नहीं
आर्या ने पुलिस से आग्रह किया कि वे दोबारा बंगले की सीसीटीवी फुटेज जाँचें।
नई जांच में पाया गया कि रात ८:१५ पर एक सफेद रंग की इनोवा कार बंगले से निकली थी,
पर उसे किसी ने रिपोर्ट में दर्ज नहीं किया था।
आर्या को उस गाड़ी की जानकारी मिल गई —
वह शिवराज की कंपनी के फ्लिट डिपार्टमेंट से जुड़ी थी।
गाड़ी जिस रास्ते पर गई थी,
वह आख़िरी बार हरियाणा की सीमा पार करती दिखी थी।
आर्या अब जान चुकी थी —
यह मामला एक गुमशुदगी का नहीं,
बल्कि एक योजनाबद्ध बंदीकरण का था।
शिवराज ने शायद अपनी बेटी को खुद ग़ायब करवाया था —
क्योंकि उसने किसी ऐसे व्यक्ति से रिश्ता जोड़ा था,
जो समाज और व्यापार दोनों के लिए “स्वीकार्य” नहीं था।
अंतिम दृश्य – जब सच्चाई खुद चलकर आ जाए
कई हफ़्तों की कोशिशों के बाद,
आर्या को राजस्थान के एक छोटे से विला में तन्वी मिल गई —
जिंदा, लेकिन बंद, डरी हुई, और काफ़ी कमज़ोर।
उसने कहा —
“पापा ने कहा कि मैं उनके नाम पर धब्बा बन चुकी हूँ।
रणवीर एक लेखक था, आत्मसम्मान वाला, पर गरीब।
पापा ने कहा अगर मैं शादी करूँगी, तो कंपनी में मेरा नाम मिटा देंगे।
फिर एक रात मुझे बेहोश कर कहीं भेज दिया गया।”
यह सुनकर आर्या सन्न रह गई।
उसने सबूतों और मेडिकल रिपोर्ट्स के साथ पुलिस में केस दर्ज कराया।
शिवराज मल्होत्रा को ज़मानत खारिज कर दी गई —
और तन्वी को अदालत ने सुरक्षा दी।
तन्वी अब फिर से लिखने लगी है।
उसकी पहली पुस्तक का नाम है —
“सन्नाटा जो चीखता है”
समाप्त