सफ़ेद साया
संक्षिप्त भूमिका
मुंबई के उपनगर अंधेरी में एक मशहूर लेखक की रहस्यमयी आत्महत्या पूरे शहर को हिला देती है।
पुलिस इसे एक मानसिक तनाव से जुड़ा मामला मानकर फाइल बंद कर देती है,
लेकिन जब एक पत्रकार को एक ऐसा पत्र मिलता है जो कभी डाक में नहीं डाला गया था,
तो एक पूरी नई कहानी जन्म लेती है —
एक साज़िश, एक कवर-अप, और एक सफ़ेद साया,
जो सब कुछ होते हुए भी कहीं नहीं दिखता।
पहला दृश्य — वो जो बाहर से शांत था
अनिरुद्ध घोष, 42 वर्षीय हिंदी उपन्यासकार,
जो मनोवैज्ञानिक थ्रिलर लिखने के लिए जाने जाते थे,
मृत पाए गए।
वह अंधेरी (पश्चिम) की एक बहुमंज़िला इमारत ‘मयूरी हाइट्स’ के 15वें मंज़िल पर अकेले रहते थे।
पुलिस रिपोर्ट के अनुसार, 17 जून की रात उन्होंने बालकनी से छलांग लगाई।
कोई सुसाइड नोट नहीं मिला।
पड़ोसियों का कहना था कि वह कई हफ़्तों से घर से बाहर नहीं निकले थे।
बिल्डिंग वॉचमैन का बयान:
“वो रोज़ बालकनी में बैठते थे, कभी लिखते, कभी चुप रहते। वो चुप्पी बहुत भारी थी साहब।”
पुलिस ने पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पर यह मान लिया कि मानसिक अस्थिरता के कारण उन्होंने आत्महत्या की।
मामला वहीं बंद हो गया।
पर किसी के लिए नहीं — श्रुति पाटिल के लिए नहीं।
दूसरा दृश्य — जो छूट गया था
श्रुति पाटिल, 31 वर्षीया खोजी पत्रकार,
जो अनिरुद्ध के साथ एक प्रोजेक्ट पर काम कर रही थी —
“भारत में आत्महत्या और मनोविज्ञान” पर एक डॉक्यूमेंट्री।
अनिरुद्ध के साथ उसकी बातचीत अंतिम बार दस दिन पहले हुई थी,
जब उन्होंने कहा था:
“श्रुति, जो मैं लिख रहा हूँ वो कहानी नहीं, दस्तावेज़ है।
अगर कुछ हो जाए तो समझना — कुछ बहुत बड़ा लिखा जा चुका है।”
श्रुति ने तब इसे लेखक की आदत समझा।
पर अब जब वह उनके फ्लैट में गई — पुलिस के अनुमति पत्र के बाद —
तो उसने एक ऐसा लिफाफा देखा जो कभी डाक में नहीं डाला गया था।
लिफाफा अनिरुद्ध के हाथ से लिखा था,
प्रेषक: अनिरुद्ध घोष
प्राप्तकर्ता: श्रीमान अर्जुन भल्ला, वरिष्ठ संपादक — “जन संवाद” मासिक पत्रिका
और ऊपर लिखा था — “प्रकाशन से पहले केवल पढ़ें — अत्यंत गोपनीय”
श्रुति ने वह पत्र पढ़ा।
और उसकी दुनिया पलट गई।
तीसरा दृश्य — जो कहानी नहीं थी
पत्र में लिखा था:
“अर्जुन,
मैं एक ऐसे उपन्यास पर काम कर रहा हूँ जो पूरी तरह सच्ची घटनाओं पर आधारित है।
यह उपन्यास नहीं — बल्कि सबूत है।
मुंबई की एक बहुराष्ट्रीय दवा कंपनी — ‘ज़ीनोफार्मा’ —
ने पिछले दो वर्षों में तीन नवाचारों के परीक्षण के दौरान 12 लोगों की मृत्यु छुपाई है।
मैंने एक गवाह से बात की है — एक नर्स जिसने सब देखा है।
उसका नाम मैं नहीं लिख सकता — पर उसने मुझे अंदरूनी दस्तावेज़ दिए हैं।
यदि यह किताब छपी, तो कई बड़े नाम बेनकाब हो जाएंगे — जिनमें एक राज्य मंत्री का बेटा भी है।
मेरी किताब का नाम है — सफ़ेद साया।
यह न सिर्फ़ औद्योगिक अपराध की कहानी है,
बल्कि इस देश की उस न्याय व्यवस्था की कहानी है,
जो सफ़ेद कपड़े पहनकर स्याह खेल खेलती है।
अगर कुछ होता है तो श्रुति को सब देना।
वह जानती है मैं कहाँ तक गया हूँ।
— अनिरुद्ध”
चौथा दृश्य — वो फ़ाइल जो कहानी नहीं थी
श्रुति को अनिरुद्ध का लैपटॉप और हार्ड ड्राइव पुलिस ने लौटा दिए थे, क्योंकि मामला बंद हो चुका था।
उसने तुरंत खोज शुरू की।
एक फ़ोल्डर मिला:
“साया/FinalDraft”
ड्राफ्ट में 230 पृष्ठों की एक पांडुलिपि थी।
हर अध्याय किसी एक मरीज़ की मौत का विवरण था।
उसकी पृष्ठभूमि, दवा का नाम, और उस समय उपस्थित डॉक्टरों के बयान।
कुछ अध्यायों के अंत में एक संकेत था:
“PV117/A2” —
जो बाद में पता चला कि “प्रायोगिक वैकल्पिक 117 / परीक्षण खंड A2” का कोड था।
पांडुलिपि में अनिरुद्ध ने कुछ कथित ईमेल के चित्र भी जोड़े थे —
जो ज़ीनोफार्मा और एक निजी अस्पताल के शोध विभाग के बीच थे,
जिनमें परीक्षणों के विफल होने पर “डेटा स्मूद करने” का निर्देश था।
श्रुति को सब समझ आ गया था।
पर वह जानती थी कि यह किसी सामान्य मंच पर नहीं छप सकता।
उसने फ़ाइल को कई बार पढ़ा, जांचा, सत्यापित किया।
और फिर एक निर्णय लिया।
अंतिम दृश्य — जब साया बोल पड़ा
श्रुति ने उस पांडुलिपि को एक अंतरराष्ट्रीय खोजी मंच को सौंपा।
उन्होंने उसकी गहराई से जाँच की, और फिर एक विशेष रिपोर्ट के रूप में प्रकाशित किया —
“The White Shadow of Indian Pharma”
रिपोर्ट में कंपनी का नाम, मंत्री का बेटा, और अस्पतालों की मिलीभगत सब था।
देश भर में भूचाल आया।
ज़ीनोफार्मा ने मुकदमा दायर किया,
पर धीरे-धीरे गवाह सामने आए —
और उस गुमनाम नर्स ने भी बयान दिया।
कुछ गिरफ्तारियाँ हुईं।
राज्यसभा में सवाल उठे।
अनिरुद्ध की मौत की जांच दोबारा शुरू हुई।
और तब पहली बार बिल्डिंग के एक गार्ड ने बताया कि
उसने एक रात दो लोग अनिरुद्ध के फ्लैट से निकलते देखे थे,
पर जब उसने सवाल किया तो उन्हें पत्रकार बताया गया।
वह सीसीटीवी फुटेज गायब थी।
पर अब उस कहानी को कोई ‘कहानी’ नहीं कह सकता था।
समाप्त