साँप की परछाईं
एक भयावह हत्या, रहस्यों से भरा एक गाँव, और एक ऐसा अपराधी जिसकी परछाईं तक पहचान में नहीं आती। इस कहानी में डर, धोखा और जुनून सब एक साथ पिघलते हैं – एक ऐसी परछाईं के पीछे, जो किसी साँप से भी ज़्यादा खतरनाक है।
कहानी
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में बसा एक शांत और ठंडा गाँव था – नागधार। यह गाँव अपने नाम की तरह ही रहस्यमयी था, और यहाँ एक किवंदंती प्रसिद्ध थी – “जिसने साँप की परछाईं देखी, वह सात दिनों में मारा गया।” कुछ इसे सिर्फ़ अंधविश्वास मानते थे, लेकिन कुछ ऐसे भी थे जिनके चेहरों पर डर साफ़ झलकता था।
गाँव में अचानक सब कुछ बदल गया, जब एक सुबह मंदिर के पुजारी हरिदत्त की लाश तालाब के किनारे पाई गई। उसका चेहरा नीला पड़ा हुआ था, आँखें खुली थीं और मुँह से झाग निकल रहा था। उसके गले पर काले निशान थे – जैसे किसी साँप ने डसा हो।
गाँव में खलबली मच गई। सबने कहा – “उसे साँप की परछाईं दिख गई थी।”
पर मामला इतना आसान नहीं था। इस रहस्य की तह तक जाने के लिए शहर से एक तेज़-तर्रार अपराध अन्वेषक शिवेंद्र रावत को बुलाया गया। उसके साथ थी उसकी सहायक – तेज दिमाग और धैर्यवान सोनाली कुकरेती।
शिवेंद्र ने आते ही गाँव के हर व्यक्ति से मिलना शुरू किया। उसे सबसे पहले शक हुआ गाँव के नाई कालू पर, जो अक्सर पुजारी से झगड़ता था। लेकिन जब उसकी लोहे की पेटी की तलाशी ली गई, तो उसमें कुछ नहीं मिला। कालू की हरकतें संदिग्ध थीं, पर उसके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं था।
तालाब के किनारे शिवेंद्र ने एक पुराना लकड़ी का पनघट देखा, जिसकी दीवार पर सांप की आकृति उकेरी गई थी। उसके पास ही मंदिर की एक टूटी माला मिली – और उसमें पुजारी का खून लगा था।
“यह माला पुजारी के गले की है,” सोनाली ने कहा।
“मतलब, मारा यहीं गया है,” शिवेंद्र बोला। “लेकिन ये साँप का डंक असली नहीं है, ज़हर इंजेक्ट किया गया है।”
शिवेंद्र को अब यकीन हो गया कि यह हत्या है – और कोई इसे ‘साँप की परछाईं’ की अफ़वाह में छिपाना चाहता है।
एक रात शिवेंद्र और सोनाली मंदिर के पास छुपकर बैठे। उन्हें वहाँ एक महिला दिखी – जो गुपचुप तरीके से मंदिर के पीछे झाड़ियों में कुछ दबा रही थी। जब उन्होंने उसे पकड़ा, तो वह निकली – गौरी, गाँव की विधवा जो हरिदत्त से छुपकर मिलने आती थी।
गौरी ने बताया – “हरिदत्त मुझसे प्रेम करता था, पर समाज के डर से कुछ नहीं कहता था। पिछले महीने उसने कहा था कि वह पुजारी का काम छोड़कर मेरे साथ शहर भाग जाएगा। लेकिन शायद किसी ने हमें देख लिया था।”
शिवेंद्र को यकीन हुआ कि हत्या का कारण व्यक्तिगत दुश्मनी हो सकती है। उसने गाँव के मुखिया – सेठ मधुसूदन से बात की। मधुसूदन ने हर सवाल का उत्तर बड़ी चतुराई से दिया, पर उसकी आँखों में असहजता साफ़ दिख रही थी।
रात को शिवेंद्र ने मंदिर के पीछे दबे उस थैले को निकाला जो गौरी ने छुपाया था। उसमें एक पुरानी डायरी मिली – पुजारी हरिदत्त की – जिसमें एक नाम बार-बार लिखा था – “जयंत…जयंत…वह सब जानता है।”
जयंत था गाँव का पुराना दवाखाना चलाने वाला। जब उससे पूछताछ की गई तो वह काँपने लगा और बोला – “मैंने कुछ नहीं किया… मुझसे गलती हो गई थी… मैंने उसे देखा था… जब वह ज़हर चुभा रहा था…”
“कौन?” शिवेंद्र ने चीखकर पूछा।
“मधुसूदन… सेठ मधुसूदन… उसे डर था कि हरिदत्त गाँववालों के सामने उसके ज़मीन हड़पने की पोल खोल देगा… इसलिए उसने ‘साँप की परछाईं’ के नाम पर उसे मार डाला।”
सेठ मधुसूदन को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया। जब पुलिस ने उसकी कोठी की तलाशी ली, तो वहाँ एक इंजेक्शन, ज़हर की शीशी और साँप की खाल मिली – जो वह अपराध को प्राकृतिक दिखाने के लिए इस्तेमाल करता था।
गाँव में डर का माहौल कम हुआ। पर अफ़वाहें अभी भी थीं। कई लोगों ने पूछा – “साँप की परछाईं क्या सच में होती है?”
शिवेंद्र ने उत्तर दिया – “साँप की परछाईं कभी नहीं होती… पर इंसान की लालच और स्वार्थ की परछाईं सबसे जहरीली होती है।”
समाप्त