सातवीं सीढ़ी
सारांश:
एक पुरानी हवेली में घटती रहस्यमयी घटनाओं के बीच, एक युवा स्थापत्य अभियंता ‘अर्जुन’ एक रिनोवेशन प्रोजेक्ट पर आता है। वहाँ उसे एक रहस्यपूर्ण सीढ़ी मिलती है, जिसकी सातवीं सीढ़ी पर पैर रखते ही हर व्यक्ति या तो पागल हो जाता है या गायब। अर्जुन इसके पीछे छिपे रहस्य को जानने का प्रयास करता है, लेकिन जो सच्चाई सामने आती है, वो न केवल डरावनी होती है बल्कि उसके अपने अतीत से जुड़ी होती है।
कहानी:
उत्तराखंड के नारायणबाग नामक एक अर्ध-पहाड़ी कस्बे में स्थित थी एक बेहद पुरानी, टूटी-फूटी हवेली — शिवराज कोठी। हवेली कभी किसी दीवान शिवराज सिंह की थी, जो आज़ादी से पहले के ज़माने में मशहूर हुआ करते थे। आज हवेली वीरान, जर्जर और डरावनी थी, लेकिन एक स्थानीय विधायक ने उसे रिनोवेट कर एक संग्रहालय में बदलने का फैसला किया।
दिल्ली से एक नामी स्थापत्य अभियंता अर्जुन मल्होत्रा को बुलाया गया। अर्जुन युवा था, होशियार था और रहस्यों में रुचि रखता था। वह अकेला ही प्रोजेक्ट के निरीक्षण के लिए हवेली पहुँचा।
पहले दिन से ही उसे अजीब-सी बातें महसूस होने लगीं। जैसे ही वह हवेली में घुसा, वातावरण अचानक भारी हो गया। दीवारें सीलन से भरी थीं, और छत से झड़ते जाले पुराने ज़माने की साँसें लेते लगते थे। लेकिन जो चीज़ सबसे अजीब थी, वो थी हवेली का मुख्य दालान, जिसमें एक संकरी सीढ़ी नीचे तहखाने की ओर जाती थी।
उस सीढ़ी पर एक चेतावनी की पट्टी लगी थी —
“यहाँ सातवीं सीढ़ी पर पाँव न रखें।”
अर्जुन मुस्कराया।
“पुराने ज़माने की अंधविश्वास,” उसने बुदबुदाया।
दूसरे दिन, स्थानीय मजदूर काम पर पहुंचे। अर्जुन ने उन्हें तहखाने की तरफ भेजा, लेकिन तभी उनमें से एक, महेश, गलती से सातवीं सीढ़ी पर पैर रख बैठा। तभी वह चीखता हुआ नीचे गिरा, आँखें चौड़ी, शरीर काँपता हुआ। उसने ज़मीन पर बैठकर ज़ोर से सिर पीटना शुरू किया और फिर बेहोश हो गया।
अर्जुन उसे अस्पताल भिजवाया, पर डॉक्टर बोले — “इस पर कोई गहरा मानसिक आघात हुआ है। ये अपनी चेतना खो चुका है।”
अर्जुन सोच में पड़ गया। कुछ तो गड़बड़ थी।
अगले दिन, अर्जुन खुद तहखाने में गया। वह सीढ़ियाँ गिनने लगा। जब वह छठी सीढ़ी तक पहुँचा, हवा भारी हो गई। नीचे अंधेरा था, जैसे रौशनी ही वहाँ घुसने से डरती हो।
लेकिन वह सातवीं सीढ़ी पर नहीं चढ़ा।
उसने अपने लैपटॉप से हवेली का पुराना नक्शा निकाला। वहाँ तहखाने का ज़िक्र नहीं था। कोई सीढ़ी नहीं दर्शाई गई थी।
रात को, अर्जुन को कमरे में कुछ खड़खड़ाहट सुनाई दी। उसने देखा — उसके लैपटॉप की स्क्रीन अपने आप ऑन हुई थी। उस पर एक पुराना स्कैन खुला हुआ था — दीवान शिवराज का निजी डायरी का पृष्ठ।
पढ़ा:
“मैंने उसे सातवीं सीढ़ी में बंद कर दिया है। उसकी भूख अब मेरे खून से शांत होती है।”
अर्जुन हड़बड़ा गया। किसे बंद कर दिया था? और सातवीं सीढ़ी का इससे क्या संबंध था?
अब अर्जुन ने तहखाने में जाने का निर्णय लिया — पूरी तैयारी के साथ। हेलमेट पर कैमरा, टॉर्च, रस्सी, और GPS ट्रैकर।
वह नीचे उतरा। सातवीं सीढ़ी तक आया… और कुछ सोचकर सीधा कूदकर आठवीं पर गया।
नीचे एक अजीब सुरंग थी — संकरी, लंबी, दीवारों पर नुकीले चिन्ह — जैसे खून से बनाए गए हों। आगे एक बड़ा कक्ष था, जिसमें लोहे की भारी सलाखों से ढका एक दरवाज़ा था।
और उस दरवाज़े के पीछे — कोई साँस ले रहा था। भारी, रुक-रुक कर, जैसे वर्षों की नींद से कोई जाग रहा हो।
अर्जुन पास गया। कैमरा चालू था। उसने टॉर्च उस दरवाज़े की दरारों से अंदर डाली।
एक चेहरा दिखा — मनुष्य जैसा, पर आँखें सफ़ेद, होंठ पर ताज़ा खून के निशान। वह चीज़ गूँगी थी लेकिन उसकी साँसों से दीवार काँप रही थी।
वह अचानक दरवाज़े से टकराई — “धड़ाम!!”
अर्जुन डर के मारे पीछे गिर पड़ा।
और तब — उसकी टॉर्च बंद हो गई।
पूरे तहखाने में घना अंधकार छा गया। उसके कैमरे की बैटरी खत्म हो गई।
उसने भागना चाहा — लेकिन सीढ़ियाँ गायब थीं।
हवेली के बाहर श्रमिक अर्जुन की आवाज़ सुन नहीं पा रहे थे। और अगले दिन से वह भी लापता घोषित कर दिया गया।
कुछ ही हफ्तों में हवेली का नवीनीकरण रुक गया। विधायक ने आदेश दिए — हवेली को बंद कर दिया जाए।
पर रात में स्थानीय लोग अब भी कहते हैं कि हवेली के तहखाने से कोई ज़ोर-ज़ोर से सीढ़ियाँ चढ़ता है, लेकिन कभी ऊपर नहीं आता।
अर्जुन के कैमरे का फुटेज बाद में GPS द्वारा एक सिग्नल से प्राप्त हुआ — अंतिम दृश्य में बस अंधकार और एक धीमी, खरखराती आवाज़ थी — “अब अगला कौन?”
अंतिम पंक्ति:
कभी-कभी पुराने निर्माण केवल ईंट-पत्थर नहीं छुपाते, वे किसी भूले हुए प्रेत, किसी भूख को — जिंदा रखते हैं। और जब वह भूख जागती है, तो उसे सीढ़ियाँ गिननी नहीं पड़तीं… बस इंतज़ार करना होता है कि कोई सातवीं सीढ़ी तक पहुँचे।
समाप्त