स्वार्थ का अंत
संक्षिप्त सारांश:
यह कहानी है ‘राहुल जैन’ नाम के एक सफल और चतुर युवा व्यवसायी की, जो हर रिश्ता, हर अवसर और हर निर्णय को केवल अपने लाभ के तराजू पर तौलता था। उसका मानना था कि दुनिया में अगर जीतना है, तो केवल अपने हित को प्राथमिकता दो। पर जब जीवन ने उसे एक ऐसी स्थिति में डाल दिया जहाँ स्वार्थ से निकलने का कोई मार्ग नहीं था, तब उसने जाना कि सच्चा सुख और स्थायित्व केवल परोपकार और निस्वार्थ कर्म से मिलता है। यह कहानी बताती है कि स्वार्थ की बुनियाद पर बने महल एक दिन ज़रूर ढहते हैं।
कहानी:
राहुल जैन, 33 वर्षीय एक स्मार्ट और आकर्षक युवक, दिल्ली की बिज़नेस दुनिया में एक बड़ा नाम बन चुका था। वह एक रियल एस्टेट कंपनी का मालिक था, जिसने सिर्फ़ पाँच वर्षों में सौ से अधिक फ्लैट्स और कॉर्पोरेट टावर बना दिए थे।
राहुल की पहचान उसकी व्यावसायिक कुशलता, त्वरित निर्णय और तेज़ दिमाग से थी — लेकिन उसके काम करने के तौर-तरीक़ों पर हमेशा सवाल उठते थे। वह हमेशा वही निर्णय लेता जिससे उसका लाभ हो — चाहे वह किसी कर्मचारी की नौकरी छीनना हो या किसी साथी व्यापारी का सौदा हथियाना।
उसके लिए रिश्ते भी लाभ और हानि की चीज़ थे। उसका मानना था — “दुनिया में कोई निस्वार्थ नहीं होता। जो जितना अपने लिए सोचता है, वही सबसे सफल होता है।”
उसकी कंपनी में सैकड़ों लोग काम करते थे, पर कोई भी उसे अपना नहीं समझता था। वह अपने कर्मचारियों को सिर्फ़ ‘इस्तेमाल योग्य संसाधन’ समझता था।
एक दिन एक पुराना दोस्त, आदित्य, जो इंजीनियर था, राहुल के पास आया। उसका छोटा सा स्टार्टअप आर्थिक संकट में था। उसने राहुल से मदद माँगी — एक छोटा निवेश, ताकि उसका सपना ज़िंदा रह सके।
राहुल ने सारी बातें सुनीं, फिर कहा —
“अगर मैं तेरे प्रोजेक्ट में पैसे लगाऊँ, तो 80% हिस्सा मेरा होगा। और मैं तुझे केवल टेक्निकल हेड बनाकर रखूँगा, मालिक नहीं।”
आदित्य स्तब्ध रह गया। उसने कहा —
“पर ये तो धोखा होगा, मैंने विचार और मेहनत लगाई है…”
राहुल मुस्कराया —
“दुनिया में इमोशन नहीं चलता, केवल दिमाग़ चलता है।”
आदित्य भारी मन से चला गया।
समय बीता। राहुल का व्यापार और बढ़ता गया, पर साथ ही उसके आस-पास लोगों की नाराज़गी, असंतोष और नफ़रत भी बढ़ती गई। उसे कोई दिल से नहीं चाहता था।
फिर एक दिन अचानक उसके जीवन में एक मोड़ आया — उसकी कंपनी पर एक बड़े वित्तीय घोटाले का आरोप लगा। एक बिल्डिंग प्रोजेक्ट में घटिया निर्माण सामग्री और फर्जी मंज़ूरी के दस्तावेज़ पकड़े गए। मीडिया ने खबर फैला दी। प्रशासन ने जाँच बैठाई। बैंक ने फंडिंग रोक दी।
राहुल को लगा कि यह किसी प्रतिद्वंद्वी की साज़िश है, पर जब उसने अपनी टीम से समर्थन माँगा, तो सबने चुप्पी साध ली।
उसने अपने लॉयर से कहा —
“मैं सब संभाल लूंगा, बस एक कवर स्टेटमेंट चाहिए।”
पर लॉयर ने जवाब दिया —
“माफ़ कीजिए राहुल जी, अब आपसे जुड़ना मेरी साख को नुकसान पहुँचा सकता है।”
राहुल अकेला पड़ चुका था। कुछ हफ्तों में उसके ऑफिस पर ताले लग गए। प्रोजेक्ट्स बंद हो गए। कोर्ट में केस चल रहा था और उसका बैंक खाता फ्रीज़ हो चुका था।
उसने जिन लोगों को कभी इस्तेमाल किया था, आज वे उसकी मदद को तैयार नहीं थे।
एक दिन वह एक कैफे में चुपचाप बैठा था, बेहद थका हुआ, टूटा हुआ। तभी उसके सामने एक आवाज़ आई —
“तू ही है ना, राहुल जैन?”
राहुल ने नज़र उठाई — सामने आदित्य खड़ा था।
राहुल को शर्म आ गई। वह सिर झुकाकर बोला —
“मुझे माफ़ कर दो दोस्त… मैंने सिर्फ़ अपने बारे में सोचा…”
आदित्य ने कुर्सी खींची और बैठ गया। बोला —
“मैं जानता हूँ… पर तूने जो किया, उसी से मैंने सीखा कि इंसान को अपने सपने ज़रूर पूरे करने चाहिए — पर दूसरों की पीठ पर चढ़कर नहीं। आज मेरा स्टार्टअप सफल है, पर मैं तेरे जैसा नहीं बना।”
राहुल की आँखों में आँसू आ गए।
आदित्य ने एक कागज़ राहुल को थमाया —
“यहाँ एक NGO है, जो युवाओं को व्यवसाय की ट्रेनिंग देता है। वहाँ एक गाइड की ज़रूरत है — कोई ऐसा जो जीवन की दोनों तरफ़ देख चुका हो।”
राहुल ने काँपते हाथों से कागज़ लिया। वह कुछ नहीं बोला, लेकिन दिल से पहली बार किसी के सामने छोटा महसूस किया।
कुछ हफ्तों बाद राहुल उस NGO से जुड़ गया। शुरुआत में लोग उसे संदेह से देखते थे, लेकिन धीरे-धीरे उसने अपनी कहानी को दूसरों के लिए सीख बना दिया।
अब वह हर युवा को यह बताता था —
“स्वार्थ से रास्ते बनते हैं, लेकिन अकेले। पर जब आप दूसरों के साथ चलना सीखते हैं, तो मंज़िल छोटी लगती है और यात्रा सुंदर।”
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में स्वार्थ कभी स्थायी नहीं होता। चाहे वह संबंधों में हो या व्यापार में — जब हम केवल अपने हित की सोचते हैं, तो हम स्वयं को एक गड्ढे में धकेलते हैं। सच्ची सफलता और संतोष तब ही मिलते हैं जब हम दूसरों को साथ लेकर आगे बढ़ते हैं। देना, जोड़ना और निभाना — यही जीवन की असली जीत है।
समाप्त