लापता मुद्रिका का रहस्य
संक्षिप्त परिचय: वाराणसी की घनी गलियों में बसे एक प्रतिष्ठित परिवार की पारिवारिक विरासत — एक प्राचीन हीरे जड़ी अंगूठी — रहस्यमय तरीके से गायब हो जाती है। यह मुद्रिका केवल एक आभूषण नहीं, बल्कि एक गुप्त दस्तावेज़ की कुंजी भी थी, जो एक ज़माने के राजा द्वारा छिपाई गई संपत्ति और पुराने राजनीतिक षड्यंत्रों की ओर संकेत करती है। जब परिवार ने थक-हारकर डिटेक्टिव शिवा और सोनिया से संपर्क किया, तो यह मामला केवल चोरी का नहीं रहा, बल्कि इतिहास, लालच, प्रेम और विश्वासघात की परतों से सना एक जाल बन गया।
कहानी:
वाराणसी के मशहूर दरभंगा मोहल्ले में स्थित श्रीराम हवेली की चकाचौंध भरी इमारतें आज भी नब्बे के दशक की समृद्धि की गवाही देती हैं। हवेली के मुखिया विजय नारायण मिश्रा अपनी अस्वस्थता के चलते अब अपने सबसे छोटे पुत्र निखिल मिश्रा के साथ निवास कर रहे थे। मिश्रा परिवार की धरोहर रही एक बेशकीमती मुद्रिका — ‘राजमुद्रा’ — पिछले तीन सौ वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी सौंपे जाने की परंपरा का हिस्सा थी।
हर वर्ष सावन पूर्णिमा पर हवेली में ‘राजमुद्रा दर्शन’ का आयोजन होता था, जहाँ परिवार और प्रतिष्ठित अतिथियों को मुद्रिका दिखाई जाती थी। लेकिन इस वर्ष, जब तिज़ोरी खोली गई, तो वह मुद्रिका नहीं थी।
विजय नारायण का रक्तचाप बढ़ गया, और तुरंत पुलिस को सूचना दी गई। पर तीन दिनों की जांच के बावजूद कोई सुराग नहीं मिला। तब उनके मित्र, न्यायाधीश वीरेन्द्र पांडे, ने डिटेक्टिव शिवा को बुलवाया।
शिवा और सोनिया जब हवेली पहुँचे, तो वहाँ पहले ही अव्यवस्था और तनाव का वातावरण था। परिवार के सभी सदस्य एक-दूसरे पर संदेह कर रहे थे।
परिवार में प्रमुख सदस्य थे:
- निखिल मिश्रा – सबसे छोटा पुत्र, जो पिता की देखभाल करता है।
- शोभा मिश्रा – विजय नारायण की पुत्रवधू, बड़े बेटे की विधवा।
- दुर्गेश मिश्रा – मंझला बेटा, जो व्यापार में घाटे के कारण पिता से कटुता रखता है।
- मीनाक्षी – परिवार की बड़ी बहू, जो संस्कृतियों और परंपराओं की रक्षक मानी जाती थी।
- रघुवीर पांडे – पुराना सेवक, जो हवेली के रहस्यों से भलीभांति परिचित था।
शिवा ने सबसे पहले तिज़ोरी की जाँच की। कोई जबरदस्ती का निशान नहीं था, यानि तिज़ोरी की चाबी किसी परिचित के पास थी। सोनिया ने पिछली सात दिनों की गतिविधियों की सूची माँगी, जिसमें पाया गया कि उसी सप्ताह एक स्वर्णकार आया था — जिसका नाम था हरिकृष्ण वर्मा।
शिवा ने जब हरिकृष्ण से पूछताछ की, तो उसने कहा, “मैंने मुद्रिका को छुआ तक नहीं, बस उसका फोटो लेकर गया था ताकि उसकी सफाई और जड़ाई की नकल बनवा सकूं।”
सोनिया ने उस फोटो को देखकर तुरंत कहा, “यह फोटो उसी दिन शाम को खींचा गया है, जबकि परिवार दावा करता है कि मुद्रिका दो दिन बाद खोली गई थी। इसका मतलब है, किसी ने पहले ही चोरी कर ली थी और फिर सबको भ्रमित करने की योजना बनाई।”
शिवा ने हवेली की पुरानी पुस्तकालय की तलाशी ली। एक किताब मिली — राजगुप्त विधान — जिसमें लिखा था:
“राजमुद्रा वह चाबी है, जिससे गुप्त द्वार खुलता है। द्वार वह है, जो प्रकाश में नहीं, छाया में है।”
शिवा ने हवेली के तहखाने की खोज शुरू की। वहाँ एक दीवार पर कुछ छाया पड़ती थी — जिससे संकेत मिला कि दीवार अंदर से खोखली है। जब उसे ठोंककर देखा गया, तो एक छोटा सा हिस्सा पीछे धकेला जा सका, और वहाँ से एक गुप्त द्वार खुला।
अंदर एक पत्थर की चेस्ट रखी थी — लेकिन उसमें भी ताला था, जिस पर मुद्रिका जैसी आकृति उकेरी गई थी।
अब स्पष्ट हो गया कि यह चोरी केवल आभूषण के लिए नहीं, बल्कि हवेली के इतिहास और किसी छुपे खजाने तक पहुँचने के लिए की गई थी।
शिवा ने शोभा मिश्रा के कमरे की तलाशी ली। वहाँ एक कोना हाल ही में पुनः प्लास्टर किया गया था। जब उसे खोला गया, तो वहाँ एक नकली मुद्रिका मिली। यह इतनी उत्कृष्ट नकल थी कि कोई भी धोखा खा जाए।
शोभा ने घबराते हुए कहा, “मैंने कुछ नहीं किया! मुझे नहीं पता वह वहाँ कैसे आई!”
लेकिन सोनिया ने देखा कि उसी कमरे में एक पुरानी डायरी थी — जिसमें शोभा ने वर्षों पहले की प्रविष्टियों में हवेली की असल वसीयत की चर्चा की थी। वसीयत के अनुसार, राजमुद्रा जिसकी होगी, वही हवेली की असल उत्तराधिकारी होगी।
अब शक और गहरा गया।
शिवा ने रघुवीर पांडे को अकेले में बुलाकर पूछा, “तुम इतने वर्षों से हवेली में हो, क्या तुमने कभी मुद्रिका को असामान्य जगह पर देखा है?”
रघुवीर ने थोड़ी चुप्पी के बाद कहा, “बाबूजी, मैं सच बताऊँ? उस रात मुझे निखिल बाबू, शोभा बहू के कमरे से निकलते दिखे थे। उनके पास कुछ चमक रहा था। पर मैंने कुछ नहीं कहा।”
अब शिवा ने निखिल की गतिविधियों की जांच की। उसके बैंक स्टेटमेंट में हाल ही में एक बड़ी राशि एक अनजान खाते में ट्रांसफर की गई थी। जब उस खाते की जानकारी निकाली गई, तो वह हरिकृष्ण के भाई के नाम निकला।
निखिल ने कबूल किया —
“मैंने यह सब इसलिए किया क्योंकि मैं जानता था कि वसीयत बदल दी गई है। हवेली मुझे नहीं मिलने वाली थी। मैंने नकली मुद्रिका बनवाई और असली चुरा कर हरिकृष्ण के पास रखवा दी, ताकि मैं असली तिज़ोरी खोल सकूं। लेकिन बाद में मैंने उसे वहीं तहखाने के अंदर ही बंद कर दिया था, क्योंकि डर लगने लगा था।”
शिवा ने तहखाने से असली मुद्रिका और गुप्त चेस्ट बरामद करवा ली। चेस्ट के अंदर प्राचीन दस्तावेज़ और भूमि की रजिस्ट्री थी — जो साबित करते थे कि हवेली पर असली अधिकार मीनाक्षी का था।
कोर्ट में सबूत पेश किए गए और हवेली की कानूनी उत्तराधिकारी घोषित हुईं मीनाक्षी।
शिवा ने अंत में कहा, “कभी-कभी एक आभूषण, केवल आभूषण नहीं होता — वह इतिहास, विश्वास और लालच के बीच की डोर होता है।”
सोनिया मुस्कराई, “और उस डोर को थामने वाला ही असली उत्तराधिकारी कहलाता है।”
समाप्त