खून से सना पुस्तकालय
संक्षिप्त परिचय: वाराणसी के एक पुराने पुस्तकालय ‘शारदा ग्रंथालय’ में रात के समय एक दुर्लभ पांडुलिपि की सुरक्षा के दौरान, एक बुज़ुर्ग पुस्तकपालक की हत्या हो जाती है। कमरे में न तो ताला टूटा है, न कोई जबरदस्ती का निशान, पर उसकी उंगलियों पर स्याही और खून के धब्बे होते हैं। पुलिस उलझ जाती है, लेकिन जब मृतक के बेटे को एक प्राचीन संस्कृत श्लोक लिखा नोट मिलता है, तब रहस्य और गहराने लगता है। डिटेक्टिव शिवा और सोनिया इस हत्या की तह तक जाते हैं, जहाँ विद्या, लालच और विश्वासघात एक ही ग्रंथ में बंद हैं।
कहानी:
वाराणसी की तंग गलियों में एक पुराना पुस्तकालय स्थित है — ‘शारदा ग्रंथालय’। यह पुस्तकालय लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुराना है, और उसमें दुर्लभ पांडुलिपियाँ और हस्तलिखित शास्त्र संग्रहित हैं। इसका रखरखाव संभालते थे हरिनारायण अवस्थी, जो 72 वर्षीय वृद्ध थे, और अपने जीवन के अंतिम तीस वर्षों से वहाँ से कभी अलग नहीं हुए।
हरिनारायण जी की मौत एक रात पुस्तकालय के भीतर संदिग्ध परिस्थिति में हो जाती है।
घटना 15 जुलाई की रात की है। उस दिन पुस्तकालय की रात की निगरानी के लिए हरिनारायण स्वयं रुके थे। अगली सुबह उनका शव मुख्य ग्रंथ कक्ष में पाया गया। उनके मुँह से खून बहा हुआ था, पर शरीर पर कोई घाव नहीं था। हाथ में एक अधूरी पांडुलिपि थी — जिसका एक पृष्ठ फटा हुआ था। दीवार पर खून से लिखा था:
“ज्ञान की हत्या तब होती है, जब चुप्पी बिक जाती है।”
मामला डिटेक्टिव शिवा को सौंपा गया। उनके साथ सोनिया भी वाराणसी पहुँची।
प्रथम चरण – घटनास्थल की जाँच
शिवा ने पुस्तकालय के हर हिस्से को बारीकी से देखा। ग्रंथ कक्ष एक लंबा हॉल था, जिसमें लकड़ी की अलमारियों में हस्तलिखित ग्रंथ संग्रहित थे। जिस स्थान पर शव मिला, उसके पीछे एक छोटी मेज़ थी, और एक तेल की बोतल, जो नियमित पन्ने संरक्षण के लिए प्रयोग होती थी।
शिवा ने पूछा, “क्या यहाँ कोई सीसीटीवी नहीं है?”
पुस्तकालय का सहायक — विनीत शास्त्री — बोला, “सर, यहाँ तकनीक नहीं है। यह स्थान पूरी तरह पारंपरिक है।”
सोनिया को खून के पास गिरी एक सूखी नीम की पत्ती मिली।
“पुस्तकालय में नीम?”
शिवा ने छत की ओर देखा — “वह देखो, छत के कोने में घोंसला बना है। कोई चिड़िया या जानवर यहाँ आया होगा। पर यह पत्ती यहाँ कैसे पहुँची, यह जानना ज़रूरी है।”
द्वितीय चरण – मृतक के परिवार की भूमिका
हरिनारायण अवस्थी के बेटे दयानंद अवस्थी, जो एक प्राइवेट कॉलेज में प्रोफेसर थे, ने कहा:
“पिताजी किसी बात से बहुत चिंतित थे पिछले हफ्ते से। उन्होंने कहा था कि ‘कुछ लोग किताबों की आत्मा को खरीदना चाहते हैं।’ मुझे समझ नहीं आया। फिर दो दिन पहले उन्होंने मुझे एक चिट्ठी दी और कहा कि अगर कुछ हो जाए तो इसे शिवा को देना।”
चिट्ठी एक प्राचीन श्लोक में थी:
“यत्र धर्मः तत्र सत्यं, यत्र सत्यं तत्र मृत्यु।”
शिवा बोले, “जहाँ धर्म है, वहाँ सत्य है, और जहाँ सत्य है, वहाँ मृत्यु है। क्या हरिनारायण जी किसी श्लोक या ग्रंथ को छिपा रहे थे?”
तृतीय चरण – पांडुलिपि का रहस्य
हरिनारायण के कक्ष से एक संदूक बरामद हुआ। उसमें कुछ पुराने दस्तावेज़, नक्शे, और एक हस्तलिखित पुस्तक का अंश था — “वज्र-संहिता“।
यह पुस्तक इतिहास में लुप्त मानी जाती थी, जिसका उल्लेख केवल कुछ विदेशी संग्रहालयों की फाइलों में था।
वज्र-संहिता के अनुसार, उसमें अद्भुत मानसिक शक्तियों को जागृत करने की विधियाँ थीं — जिसे आज विज्ञान नहीं मानता, पर कई इसे रहस्यमयी और ख़तरनाक मानते हैं।
अब यह स्पष्ट हो गया कि कोई उस ग्रंथ के पीछे था।
चतुर्थ चरण – संदिग्ध व्यक्ति
पुस्तकालय में कुछ दिन पूर्व एक शोधार्थी आया था — राहुल सोमानी, जो खुद को इंदौर विश्वविद्यालय का छात्र बता रहा था। उसने विशेष अनुमति से कुछ ग्रंथों की प्रतियाँ बनवाई थीं।
जब शिवा ने राहुल के दिये हुए विश्वविद्यालय पहचान पत्र की जांच की, तो पाया कि वह फर्जी था।
राहुल अब गायब था, और उसका मोबाइल बंद।
पंचम चरण – जाल में फँसा हत्यारा
शिवा और सोनिया ने ग्रंथालय के एक पुराने कर्मचारी जगमोहन पांडे को चुपचाप निगरानी में रखा, जो हरिनारायण जी का घनिष्ठ मित्र था। उन्होंने देखा कि जगमोहन एक रात पुस्तकालय के गुप्त तहखाने में गया और कुछ निकालने की कोशिश कर रहा था।
वहाँ छापे में राहुल सोमानी भी मिला — घायल अवस्था में। वह भागते समय सीढ़ी से गिर गया था।
राहुल ने कबूल किया:
“हरिनारायण जी ने वज्र-संहिता का रहस्य मुझे बताया था, पर जब मैंने उसे पाने की कोशिश की, तो उन्होंने विरोध किया। मैं बस उसे बेचना चाहता था। जगमोहन ने कहा था कि वह मेरा साथ देगा, लेकिन… लेकिन उसने ही धक्का दिया था।”
जगमोहन ने कहा:
“मैंने बस अपने हिस्से की माँग की थी, पर राहुल ने लालच में हत्या कर दी। मैंने दीवार पर ‘खून’ से नहीं, स्याही में मिलाया हुआ लाल रंग से वह लिखा था — ताकि लगे कि कुछ रहस्य है और जांच देर से हो।”
निष्कर्ष:
राहुल और जगमोहन दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया। ग्रंथ ‘वज्र-संहिता’ को राष्ट्रीय पुरातत्व संग्रहालय को सौंपा गया।
शिवा बोले: “ज्ञान की रक्षा केवल शास्त्र नहीं, चरित्र से होती है।”
सोनिया ने मुस्कराकर कहा: “और जब चरित्र डगमगाने लगे, तब सच्चाई की रक्षा के लिए किसी शिवा का आना ज़रूरी हो जाता है।”
समाप्त